एक और हिंदी ग़ज़ल आप के समक्ष प्रस्तुत है
ग़ज़ल
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कैसे बिसराऊं भला बीता हुआ पल कोई
कल्पनाओं में जो बजती रहे पायल कोई
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कोई संवाद नहीं और कोई संबंध नहीं
भाव जीवन में नहीं रह गया कोमल कोई
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कितनी चिंताओं का वो बोझ लिये फिरता है
अब न बचपन है, न बच्चा रहा चंचल कोई
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कैसी संवेदना, कैसी करुणा और दया
हम ने जब छोड़ दिया रस्ते पे घायल कोई
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कामना है कि बनूँ ऐसी बयारें इक दिन
कर सकूँ तपता हुआ मन कभी शीतल कोई
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अब न करना कभी साहस उसे तुम छलने का
हिरनियाँ भी हैं सबल, समझे न निर्बल कोई
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ऐ ’ शेफ़ा’ छोड़ गई माँ तेरी जब से तुझ को
वैसा स्पर्श मिला तुझ को न आँचल कोई
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कैसी संवेदना, कैसी करुणा और दया
जवाब देंहटाएंहम ने जब छोड़ दिया रस्ते पे घायल कोई
गहन वेदना से भरी ....बहुत अच्छी रचना ...
धन्यवाद अनुपमा जी
हटाएंवाह दी.....
जवाब देंहटाएंलाजवाब ग़ज़ल है......
दाद कबूल करें.
सादर
अनु
शुक्रिया अनु
हटाएंदुखद खबर। अफ़सोस ।
जवाब देंहटाएंहौसला बनायें रखें।
जी अनूप जी ,,ये तो ऐसी क्षति है जो कभी पूरी नहीं हो सकती
हटाएंजी अनूप जी, ये कमी तो हमेशा रहेगी
हटाएंकितनी चिंताओं का वो बोझ लिये फिरता है
जवाब देंहटाएंअब न बचपन है, न बच्चा रहा चंचल कोई
गज़ब की अभिव्यक्ति हमेशा की तरह ..
आप लाजवाब है..
मंगल कामनाएं आपको !
बहुत बहुत शुक्रिया सतीश जी
हटाएं.बहुत लाजबाब .......
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अशोक जी
हटाएंकामना है कि बनूँ ऐसी बयारें इक दिन
जवाब देंहटाएंकर सकूँ तपता हुआ मन कभी शीतल कोई....
अच्छी ग़ज़ल हुई है. लेकिन पता नहीं क्यों मुझे लग रहा है कि आजकल तुम ग़ज़ल कहने के पहले तय कर लेती हो कि हिंदी में कहनी है या उर्दू में. अपनी गजलों की भाषा बदलने की कोशिश कर रही हो. यदि ऐसा है तो मैं कहूँगा कि ग़ज़ल के शेरों को अपने लफ्ज़ खुद ढूँढने दो चाहे वह जिस भी ज़ुबान के हों. उन्हें अपनी भाषा खुद तय करने दो. यदि ऐसा कोई प्रयास नहीं है तो कोई बात नहीं.
बधाई हो ..इन खुबसूरत भावो पर !
जवाब देंहटाएंकैसी संवेदना, कैसी करुणा और दया
हम ने जब छोड़ दिया रस्ते पे घायल कोई
धन्यवाद अशोक जी
हटाएंअब न करना कभी साहस उसे तुम छलने का
जवाब देंहटाएंहिरनियाँ भी हैं सबल, समझे न निर्बल कोई
वाह बहुत खूबसूरत गजल
बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी
हटाएंशुक्रिया संगीता जी
हटाएंवाह....बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल ,एक-एक शेर पर दाद देती हूँ...
जवाब देंहटाएंआज की इनसानी फितरत को गहराई से रेखांकित करती ग़ज़ल....
साभार....
शुक्रिया अदिति जी
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंक्या बात
शुक्रिया महेन्द्र जी
हटाएंइस्मत आपा!
जवाब देंहटाएंआज बस खड़े होकर तालियाँ बजा रहा हूँ... ये हिन्दी और उर्दू ग़ज़ल से अलग एक मुख्तलिफ अन्दाज़ में दिल से निकली गज़ल... और मक्ता आँखों में नमी छोड़ जाता है!! बहुत खूबसूरत!!
बहुत बहुत शुक्रिया सलिल जी
हटाएंजीवन के विभिन्न पहलु और सरोकार तलाशता हुआ इक अनोखा प्रयास .... अच्छा सम्प्रेषण है !
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें
"आया भी मैं, गया भी मैं,
जवाब देंहटाएंगीत है ये गिला नहीं,
हमने ये कहा भला,
हमको कोई मिला नहीं?"
शानदार गीत है इस्मत. मैं तुम्हारे खयालात का कायल हूँ और तुम्हारे कलम की दाद देता हूँ...!
शुक्रिया आनंद भैया
हटाएंआपका आशीर्वाद मिलता रहा तो कुछ सार्थक लिख पाऊं शायद
कैसी संवेदना, कैसी करुणा और दया
जवाब देंहटाएंहम ने जब छोड़ दिया रस्ते पे घायल कोई ..
आपकी ग़ज़लें हमेशा की तरह ताजगी का एहसास लिए ... सामाजिक सरोकार लिए ... भावनाओं से ओत-प्रोत कुछ न कुछ कहती हुई होती हैं ...
हर शेर इस गज़ल का अलग अंदाज लिए है ... बहुत खूब ...
बहुत बहुत शुक्रिया दिगम्बर जी
हटाएंग़ज़ल की हर शेर आपकी संवेदनशीलता को शब्द देते है . अद्भुत दी.
जवाब देंहटाएंकामना है कि बनूँ ऐसी बयारें इक दिन
जवाब देंहटाएंकर सकूँ तपता हुआ मन कभी शीतल कोई
वाह!
शुक्रिया अनुपमा जी
हटाएंशहरोज के रंचाना संसार से आपके ब्लॉग का लिंक मिला और य़कीन मानिये यहां आकर मुझे बहुत अच्छा लगा. आपके ब्लॉग के साथ जुड़ रही हूं जादुई शब्दों को पढ़ने के लिए...
जवाब देंहटाएंमाही एस
बहुत बहुत शुक्रिया माही जी
हटाएंस्वागत है
अब न करना कभी साहस उसे तुम छलने का
जवाब देंहटाएंहिरनियाँ भी हैं सबल, समझे न निर्बल कोई
वाह बहुत बहुत बहुत खूबसूरत गजल
बहुत बहुत शुक्रिया संजय
हटाएंआपके ब्लाग पर पहली बार आना हुआ,वाकई मन मोह लिया।
जवाब देंहटाएंढेरों बधाई इस सुन्दर भावाभ्यक्ति के लिए आदरेया।
सादर
बहुत बहुत बधाई वंदना जी
हटाएंकोई संवाद नहीं और कोई संबंध नहीं
जवाब देंहटाएंभाव जीवन में नहीं रह गया कोमल कोई
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ .बहुत उम्दा पोस्ट हैं यहाँ बार बार आना होगा अब यहाँ ... निशब्द करती रचनाये पढने का मोह रहेगा हमेशा
कभी हमारे ब्लॉग के लिय समय निकालिएगा