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शनिवार, 12 मार्च 2011

............ऐसा असर कहाँ

सब से पहले तो जापान में होने वाली तबाही के सिलसिले से उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ
जो अब इस दुनिया में नहीं रहे और दुआ करती हूं कि ख़ुदा सभी को अपने हिफ़्ज़ ओ अमान में रखे (आमीन)

और अब
एक ग़ज़ल पेश ए ख़िदमत है 

........ऐसा असर कहाँ
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माँ बाप की दुआ सा किसी में असर कहाँ
दौलत हो गर ये पास तो ला’ल ओ गुहर कहाँ
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क़िस्मत की यूरिशों पे भी वो मुस्कुराए है
हर इक में ऐसा सब्र कहाँ और जिगर कहाँ
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निकलें दुआएं दिल से तो होंगी वो मुस्तजाब 
वरना तो इस ज़बान में ऐसा असर कहाँ
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ग़रक़ाब हो जो बह्र में ,मोती वो पाएगा
ख़ुद आए सतह ए आब पे ऐसा गुहर कहाँ
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जब आस्माँ पे चाँद भी रोटी दिखाई दे 
कैसे नुजूम ,कैसा फ़लक और क़मर कहाँ
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पत्ते भी टूट टूट के बिखरे इधर -उधर
पहले सा सायादार हमारा शजर कहाँ
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छू ले बलंदियों को ये ख़्वाहिश तो है ’शेफ़ा’
लेकिन उड़ान के लिये वो बाल ओ पर कहाँ

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ला’ल= gem ; गुहर = मोती ; यूरिश = हमला ; मुस्तजाब = क़ुबूल ; ग़रक़ाब =  डूबना
नुजूम = सितारे ; फ़लक = आसमान ; क़मर = चाँद ; शजर = पेड़