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बुधवार, 18 नवंबर 2009

कविता

महिला आरक्षण
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वह नहीं चाहती आरक्षण
वह नहीं चाहती संरक्षण
इस दौर की नारी सबला है
ये मत सोचो वह अबला है
नारी में अक्षुण शक्ति है
बुद्धि है उसमें युक्ति है
वह राजनीति हो ,शिक्षा हो
या धर्म के क्षेत्र की दीक्षा हो
विज्ञानं हो या साहित्य विधा
हो क्षेत्र चिकित्सा का ,कि कला
हो मदर टेरेसा या इंदिरा
वह बचेंद्री हो या हो कल्पना
वह बनी कभी रानी झाँसी
वह हेलेन है ,वह है curie
हर क्षेत्र में उसने सिद्ध किया
अब नहीं चाहिए निर्भरता
आरक्षण की क्यों बात उठी ?
क्या कोई कमी नारी में दिखी?
तैयार है वह लड़ने के लिए
स्वदेश पे मर मिटने के लिए
क्यों उस की वीरता पर है शक ?
क्या उसकी बुद्धि से है डर?
छोड़ो नारी अधिकार ,हनन
मत बहलाओ ,दे आरक्षण
वह कहीं पुरूष से नहीं है कम
हैं उसमें भी सारे दम ख़म
वह पात्र तो है सम्मानों की
न बलि चढ़े अरमानों की
वह दूजे के सब दुःख हर ले
अन्याय परन्तु नहीं सहे
केवल सहयोग की है इच्छा
वह नहीं चाहती है भिक्षा
वह न्याय की ही अधिकारी है
अनुकम्पा उस पर भारी है
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