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गुरुवार, 22 मार्च 2012

ग़ज़ल

एक तरही ग़ज़ल पेश ए ख़िदमत है जिस का तरही मिसरा था 
"इब्ने मरियम हुआ करे कोई "
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ख़्वाब बन कर मिला करे कोई
दर्द की यूँ  दवा करे कोई 

ज़िदगी की तरफ़ जो ले आए
"इब्ने मरियम हुआ करे कोई "

अपनी जाँ पर सहे सितम सारे
ऐसे भी तो वफ़ा करे कोई

ज़ुलमतें दूर कर दे ज़हनों से 
शम ’अ बन कर जला करे कोई

क़स्र ए सुल्ताँ में कौन सुनता है 
कुछ कहे तो कहा करे कोई

ज़िंदगी में मिले सुकूँ लेकिन 
ख़्वाहिशों से वग़ा करे कोई

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ज़ुल्मतें = अँधेरे ; क़स्र = महल ; वग़ा = युद्ध