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शनिवार, 2 अप्रैल 2011

एक  कविता प्रस्तुत है
इसे शायद आप ने रश्मि प्रभा जी के blog पर भी पढ़ा होगा
ये विषय भी उन का ही दिया हुआ है
आभारी हूँ रश्मि जी की ,  जिनके कारण इस कविता का अस्तित्व है
उन के विषय पर मेरे भावों का जो प्रभाव है वो आप के समक्ष है


 उसके नाम
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लिख पाती ’उस के नाम’ अगर
मैं अपने सारे सुख लिखती
उस के मन की अंगनाई में
वासंती रुत छाई रहती
उस के जीवन की बगिया में
फूलों के रंग बिखर जाते
वो जिस की बातों में खो कर
सदियों से प्यासी रूहें भी
सपने बुनतीं ख़ुशहाली के
वो जिस के शब्दों की माया
वो जिस की मर्यादित काया
मानवता के पथ पर चलकर
करती उद्धार चरित्रों का
करती उपचार विचारों का

’उस’ जीवन की अफ़रा तफ़री
’उस’ मन के अंतर्द्वन्द्व सभी
’उस’ दिल में बसे दुख दर्दों को
मैं हर न सकी तो जीवन क्या ?

पर वो जो भाग्य विधाता है
बस वो ही क़िस्मत लिखता है
कुछ वश में अगर मेरे होता
मैं उस के सारे दुख हरती
लिख पाती उस के नाम अगर

                                                           तो अपने सारे सुख लिखती