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गुरुवार, 30 मई 2013

एक हिंदी ग़ज़ल प्रस्तुत करने का साहस कर रही हूँ
जो कमियाँ हों उन से अवगत कराने की कृपा अवश्य करें
धन्यवाद !
ग़ज़ल

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हम कर्तव्यों को पूर्ण करें, माँगें केवल अधिकार नहीं
मानव से मानव प्रेम करे,संबंधों का व्यापार नहीं

जिस धरती माँ में सहने की शक्ति का पारावार न हो
उस का मत इतना दमन करो ,वह कह दे तुम स्वीकार नहीं

जैसे सागर में सरिता हो,जैसे पुष्पों से भ्रमर मिले
निस्सीम प्रेम आधार बने, उपकार रहे अपकार नहीं

नि:स्वार्थ प्रेम के भाव लिये ये कौन है मन के द्वार खड़ा
आगंतुक तुम ही बतला दो, क्यों पहले आए द्वार नहीं

कंगन,चूड़ी,पायल,बिछिया,मेंहदी,रोली,झूमर,टीका
सब भावों के संवाहक हैं ,केवल सज्जा-श्रंगार नहीं

सर्वस्व निछावर करने को,तय्यार है सैनिक सीमा पर
है देश प्रेम ही बल उसका, बंदूक़ नहीं , तलवार नहीं

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