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रविवार, 28 फ़रवरी 2010

अन्तर्मंथन




आप सभी सुधिजनों को रंगों के इस पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएं 


अंतर्मंथन
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क्या सच होलिका दहन हुआ ?
क्या क्रोधाग्नि का शमन हुआ ?
या सच्चाई का दमन हुआ ?
और कर्तव्यों का हनन हुआ?

पर्वत ,धरती ,जल और गगन
कितना सुंदर है मेरा चमन,
कौन आया है इस् में  रावण ?
बगिया को मेरी रखे रहन

क्यों होती इक दूजे से जलन ?
क्यों भाई -भाई में अनबन ?
क्यों भूल गए हम भरत मिलन ?
क्या अब भी है धरती पावन ?

है कौन जो इन प्रश्नों को सुने ?
है कौन जो इन के उत्तर दे ?
अब अपने ही अन्दर झांकें
और अपनी सच्चाई आंकें 

क्या हम ने सच्ची कोशिश की ?
नफ़रत हरने की ख़्वाहिश की ?
क्या हम ने प्यार की बारिश की ?
हां ,राजनीति ने साज़िश की 

अब बातें मत तोड़ो मोड़ो ,
जो हुआ उसे पीछे छोड़ो ,
नफ़रत का हर धागा तोड़ो ,
बस ,रंगों से नाता जोड़ो 

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