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मंगलवार, 26 जनवरी 2010

                                          आप सभी को गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें  

२६ जनवरी के अवसर पर एक कविता प्रस्तुत है ,यदि राष्ट्रीय ध्वज बोल पाता तो वो अपनी अभिलाषा कैसे प्रकट करता , कहीं  कोई  बात आपके मन को छू जाये ,तो आशीर्वाद की कामना करती हूँ ,
                                                                                                             धन्यवाद .
राष्ट्रीय ध्वज की अभिलाषा 
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ध्वज हूँ मैं भारत का मेरी छोटी सी है अभिलाषा ,
पूर्ण करेंगे भारतवासी ऐसी मुझ को है आशा ,
किन्तु इस से पहले कि मैं बात करूँ अभिलाषा की, 
कुछ ऐसे पन्ने मैं खोलूँ जो अतीत के हैं साक्ष


देश का जब अस्तित्व मिटाने शत्रु थे भारत आये 
धोखे से थे गाँव, नगर और राज्य हमारे हथियाए, 
जब पूरे भारत को बैरी दास  बना कर के ख़ुश था, 
    तब सच्चे भारतवासी को उसी दासता का दुःख था.


ऐसे में अगणित वीरों ने मुझ को जीवनदान दिया, 
और देश को आज़ादी का मूल्यवान वरदान दिया ,
जब मैं पहली बार पवन के झोंकों से लहराया था ,
मेरी आँखों में उस दिन ये पहला सपना आया था.


मैं ने देखा देश में चारों ओर थी फैली हरियाली ,
भारतवासी ख़ुश थे  बिखरी सभी ओर थी ख़ुशहाली,
पर जब मेरी आंख खुली मैं चकित हुआ घबराया था ,
देखा चारों ओर थी हिंसा अंधकार सा छाया था .


सहसा मेरे मन में कुछ अभिलाषा के अंकुर फूटे ,
इच्छा है कि जुड़ जाएँ जो सपने थे मेरे टूटे ,
सब भारतवासी हैं भाई ,सभी इसी  को  सच मानें,
भारत माता के लहराते आँचल को पावन जानें . 


नेता सोचें देश के हित में ,निज हित से ऊपर आयें
महाशक्ति के किसी प्रभाव में देश न हम अपना खोएं 
आदर हो ,सम्मान बड़ों का ,बलिदानों का अर्चन हो 
द्वेष भाव ,कुकर्म ,शत्रुता का दृढ़ता से तर्जन हो


खेतों में गेहूं ही बोयें ,रोपें नहीं वहां हथियार 
बच्चों को दें ज्ञान की ज्योति ,मजदूरी का ले लें भार
अपराधी को मिले सज़ा और  दुखियों को इंसाफ़ मिले 
नारी जाति का आदर हो ,कहीं न कोई नार जले 


ऐसा भारत देश बनाओ जिस पर सब अभिमान करें 
प्रेम ,एकता  और समानता के ही अब तो दीप जलें 
मानवता की औषधि से तुम रोगी का उद्धार करो 
विपदा में हो गर दुश्मन भी ,तुम उसको स्वीकार करो 


मैं भारत की गरिमा हूँ,तुम सब की ज़िम्मेदारी हूँ 
अभिलाषा परिपूर्ण हुई तो मैं सब का आभारी हूँ 


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