२६ जनवरी के अवसर पर एक कविता प्रस्तुत है ,यदि राष्ट्रीय ध्वज बोल पाता तो वो अपनी अभिलाषा कैसे प्रकट करता , कहीं कोई बात आपके मन को छू जाये ,तो आशीर्वाद की कामना करती हूँ ,
धन्यवाद .
राष्ट्रीय ध्वज की अभिलाषा
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ध्वज हूँ मैं भारत का मेरी छोटी सी है अभिलाषा ,
पूर्ण करेंगे भारतवासी ऐसी मुझ को है आशा ,
किन्तु इस से पहले कि मैं बात करूँ अभिलाषा की,
कुछ ऐसे पन्ने मैं खोलूँ जो अतीत के हैं साक्ष
देश का जब अस्तित्व मिटाने शत्रु थे भारत आये
देश का जब अस्तित्व मिटाने शत्रु थे भारत आये
धोखे से थे गाँव, नगर और राज्य हमारे हथियाए,
जब पूरे भारत को बैरी दास बना कर के ख़ुश था,
तब सच्चे भारतवासी को उसी दासता का दुःख था.
ऐसे में अगणित वीरों ने मुझ को जीवनदान दिया,
और देश को आज़ादी का मूल्यवान वरदान दिया ,
जब मैं पहली बार पवन के झोंकों से लहराया था ,
मेरी आँखों में उस दिन ये पहला सपना आया था.
मैं ने देखा देश में चारों ओर थी फैली हरियाली ,
भारतवासी ख़ुश थे बिखरी सभी ओर थी ख़ुशहाली,
पर जब मेरी आंख खुली मैं चकित हुआ घबराया था ,
देखा चारों ओर थी हिंसा अंधकार सा छाया था .
सहसा मेरे मन में कुछ अभिलाषा के अंकुर फूटे ,
इच्छा है कि जुड़ जाएँ जो सपने थे मेरे टूटे ,
सब भारतवासी हैं भाई ,सभी इसी को सच मानें,
भारत माता के लहराते आँचल को पावन जानें .
नेता सोचें देश के हित में ,निज हित से ऊपर आयें
महाशक्ति के किसी प्रभाव में देश न हम अपना खोएं
आदर हो ,सम्मान बड़ों का ,बलिदानों का अर्चन हो
द्वेष भाव ,कुकर्म ,शत्रुता का दृढ़ता से तर्जन हो
खेतों में गेहूं ही बोयें ,रोपें नहीं वहां हथियार
बच्चों को दें ज्ञान की ज्योति ,मजदूरी का ले लें भार
अपराधी को मिले सज़ा और दुखियों को इंसाफ़ मिले
नारी जाति का आदर हो ,कहीं न कोई नार जले
ऐसा भारत देश बनाओ जिस पर सब अभिमान करें
प्रेम ,एकता और समानता के ही अब तो दीप जलें
मानवता की औषधि से तुम रोगी का उद्धार करो
विपदा में हो गर दुश्मन भी ,तुम उसको स्वीकार करो
मैं भारत की गरिमा हूँ,तुम सब की ज़िम्मेदारी हूँ
अभिलाषा परिपूर्ण हुई तो मैं सब का आभारी हूँ
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मोहतरमा इस्मत साहिबा, आदाब
जवाब देंहटाएंअपने राष्ट्रीय ध्वज को प्रतीक बनाकर
आपने कितने गहन सवाल उठाये हैं
अल्लाह से दुआ है, हमारे गौरव तिरंगे की
आन-बान-शान बढ़ती ही जाये
और वो तमाम अभिलाषाएं भी पूरी हों
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
इस्मत, ये तुम्हारी ये कविता तो मुझे तब से पसन्द है जब तुमने इसे लिखा था. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना है ये. ध्वज की तमाम अभिलाषाएं पूरी हों ऐसी दुआ करती हूं.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना!
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.
मानवता की औषधि से तुम रोगी का उद्धार करो
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक रचना!
बहुत ही सार्थक रचना!
जवाब देंहटाएंकविता बहुत पसंद आई
हर शब्द सच हो, ध्वज की अभिलाषा पूरी हो
भारत बहुत उन्नति करे
इस्मत गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
वन्देमातरम !
जवाब देंहटाएंध्वज की पूरी हो अभिलाषा ! यही कामना उपजती है मन में, तुम्हारी ये कविता पढ़ के !
सप्रीत-आ.
माननीय इस्मत जैदी साहिबा
जवाब देंहटाएंजो तिरंगा हमारी आन बान शान है
जिसके लिए आज़ादी की जंग में सपूतों ने कुर्बानियां दी
सुहागिनों ने अपने सिंदूर दे दिए कल भी और आज भी हर हिदुस्तानी अपना
सब कुछ निछावर करना अपना धर्म मानता है राष्ट्र धर्म -फिर भला उसकी
अभिलाषा पूर्ण होने में कोई संदेह ही नहीं -बहुत उम्दा बहुत अच्छे ख्याल हैं आपके ह्रदय से
धन्यवाद आपको इतनी अच्छी रचना के लिए
जगदीश तपिश
इस्मत जी, आपकी यह कविता बहुत महत्वपूर्ण है. रचना काबिले-तारीफ़ तो है ही राष्ट्रीयता से लबरेज़ है.
जवाब देंहटाएंमैं भारत की गरिमा हूँ,तुम सब की ज़िम्मेदारी हूँ
जवाब देंहटाएंअभिलाषा परिपूर्ण हुई तो मैं सब का आभारी हूँ ..
कुछ बहुत ही संजीदा प्रश्न खड़े किए हैं आपने इस प्रभावी रचना के द्वारा ......... बहुत अच्छी लगी ये कविता .........
तिरंगे की अभिलाषा को अपनी जबान दे कर आप ने अपने पाक जज्बों का जो इज़हार किया है, हर भारतवासी के मन में उस के लिए प्यार और अकीदत होना लाजिमी है.
जवाब देंहटाएंआप अच्छा ही नहीं, बहुत अच्छा लिख रही हैं. इतने मुश्किल टॉपिक को जिस आसानी से आपने डील किया है, मुबारकबाद की मुसतहिक़ हो गईं हैं आप.
बहुत उम्दा रचना शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंshahid sahab,
जवाब देंहटाएंvandana ji
sameer ji
shahroz sahab
shraddha ji
anand ji
tapish ji
sulabh ji
sarwat sahab
digambar ji aur
kapila ji
aap sab ka bahut bahut shukriya ki
aap sab ne rachna padhne ki zahmat ki ,aap logon ki duaen mujhe kuchh likhne ka hausla bakhshti hain.
खेतों में गेहूं ही बोयें ,रोपें नहीं वहां हथियार
जवाब देंहटाएंबच्चों को देंज्ञान कीज्योति ,मजदूरी का ले लें भार
अपराधीको मिले सज़ाऔर दुखियों को इंसाफ़ मिले
नारी जाति का आदर हो ,कहीं न कोई नार जले
ऐसी मंशा ,,,
ऐसी इच्छा,,,
ऐसी कामना,,,
काश हर भारतवासी के मन में जागृत हो पाए
कविता की अभिव्यक्ति ही कविता का सार है
आपकी भावनाएं
किसी सुखद आमंत्रण का संकेत बन कर
स्वयं ही इन शब्दों में मुखर हो रही हैं
"मानवता की औषधि से तुम
रोगी का उद्धार करो
विपदा में हो गर दुश्मन भी,
तुम उसको स्वीकार करो"
इन पंक्तियों को पढ़ लेने मात्र से ही
ह्रदय में दिव्यता की किरणें फूटने लगती हैं ..
प्रार्थना से सदजीवन की प्रेरणा मिलती है
और
आपकी इस पावन प्रार्थना में हम सब शामिल हैं
इस अनुपम रचना के लिए आभार स्वीकारें
बहुत अच्छा लिखा है मैम...कवि की कल्पना और फिर ध्वज की अभिलाषा के जरिये उस कल्पना को इतना सुंदर रुप दे देना...वाकई...hats off!
जवाब देंहटाएंmuflis sahab, ap ne sach kaha prarthna se sadjeevan, ki prerna milti hai ap meri is prarthna men shamil hain bahut bahut dhanyavad
जवाब देंहटाएंgautam ji ,bahut bahut shukriya
सुंदर कविता ।
जवाब देंहटाएंजैदी साहब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
आभार
देशभक्ति की भावना जगाती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंdhwaj ke bhavo sakaar ho aisee hee hum sabhee kee abhilasha hai.......
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachana.......
yahi bhavna har dil me lahraye ,jan-jan aapas me ladna bhul jaaye .ek subah wo hum dekhe jab tirango ke sabhi rango me khile sachi muskaan .maathe par na ho sikan ,aur saarthak ho jaaye in rango ke bhav .bahut hi sachchi aur achchhi rachna .
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