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शनिवार, 22 दिसंबर 2012

मुझे लगता है कि इस कविता से पहले मुझे कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है 
बस इतना कहना चाहूंगी कि ये किसी एक दुर्घटना पर व्यक्त की गई संवेदना नहीं है 


.....हम तेरे साथ हैं
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सृष्टिकर्ता ने तेरी 
आँख बनाई थी जब
सोचा होगा कि भरूँ 
नैन में सपने इसके
इसकी आँखों मेंसदा
प्यार की इक जोत जले
सोचा होगा कि अधर 
इसके सदा मुस्काएं
सोचा होगा कि रखूँ नेह
मैं इसके हिस्से
उसने ऐसा ही किया
प्रीत दी ,नेह औ’ मुस्कान दिया

तूने संसार में आ कर लेकिन
उसके उपकार के बदले पल-छिन
सिर्फ़ धोखा ही दिया
तूने उस पालने वाले की हर इक रचना से
सिर्फ़ खिलवाड़ किया
उस ने रक्खे थे जहाँ ख़्वाब 
हवस ले आया?
खिलने से पहले ही 
इक फूल को नोचा तूने 
उसके कोमल से हर इक 
भाव को कुचला तूने
तू तो मासूम तमन्नाओं 
का हत्यारा है
तूने इक फूल नहीं 
बाग़ को ही मारा है

फिर भी आरोप के घेरे में 
खड़ा फूल ही है
फिर भी ये सोच के
 उस फूल की ग़लती होगी
कुछ ने आरोप के घेरे में
उसे छोड़ दिया
कुछ ने दिखलाई दया और 
उसे छोड़ दिया

कोई भी हाथ न उट्ठा 
कि सँभाले उस को
कोई आया नहीं जो 
दिल से लगा ले उसको

जिसकी नज़रों में हवस थी 
वो रहेगा ज़िंदा
ख़ून से जिस के सने हाथ 
रहेगा ज़िंदा
और वो फूल जो कुम्हलाया 
हमेशा के लिये
छिन गई जिस की वो मुस्कान 
हमेशा के लिये
कोई बन पाएगा संबल उसका
कौन बन पाएगा जीवन उसका

कौन आए कि सभी 
चाहते हैं ताज़ा फूल
कौन आए कि सभी के लिये 
वो है इक शूल
प्रश्न इतने हैं यहाँ 
पर हैं निरुत्तर सारे

आओ इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढें
और मुजरिम को सज़ा ऐसी दें
जिस से अपराध भी थर्रा उट्ठे
और हर फूल को इंसाफ़ मिले 
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