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शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

shraddhanjali

ये कविता उन वीरों को समर्पित जिन्होंने आतंकवाद के विरुद्ध लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दे  दी

              श्रद्धांजलि

दहशतगर्दी ख़त्म करूंगा ,
ऐसा था उसका सपना ,
बेरहमों को धूल चटाकर ,
प्रण था दृढ़ किया अपना .

साहस की  दुनिया में उसका ,
बड़ा नाम जाना जाता ,
पुरस्कार थे ढेरों जीते,
वीर बहुत माना जाता.

उस दिन आतंकी थे सम्मुख ,
जम कर युद्ध किया उस ने,
उनमें से कुछ मार गिराए ,

बचे हुए किये वश में .

होनी को पर टाला किस ने ,
मृत्युतिथि उस की आई ,
वीरों की राहों पर चल कर ,
वीरगति उस ने पायी.

माता -पिता की आँख का तारा ,
कायरता ने छीन लिया ,
बहनों की राखी का धागा,
सदा सदा को टूट गया.

पत्नी का सिन्दूर मिट गया ,
रहा सहारा कोई नहीं ,
बच्चों को अब राह दिखाने ,
दिया जलाता कोई नहीं.

सहते हैं सब दुःख तकलीफें ,
माता -पिता पर गर्वित हैं,
घर की दीवारों पर उनके,
सारे मेडल शोभित हैं.

हर मेडल को देख के बच्चा  ,
पापा पर अभिमान करे  ,
उनके जैसा ही बनना है,
जग जिस का सम्मान करे .

उनके इस बलिदान को भारत,
कभी भुला ना पायेगा ,
आततायी को दूर भगा कर ,
श्रद्धा सुमन चढ़ाएगा .
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