मेरे ब्लॉग परिवार के सदस्य

रविवार, 10 जनवरी 2010

इस ग़ज़ल के साथ हाज़िर ए  ख़िदमत हूँ अगर आप लोगों को पसंद आई तो समझूँगी मेरी मेहनत कामयाब हो गयी 
ग़ज़ल
__________________
सुकूँ की ,प्यार की,दोनों जहाँ की बात करें 
क़वी इरादों की पीरो जवाँ की बात करें 
उलट दें आज बिसातें सभी सियासत की 
मफादे मुल्क की इल्मे नेहाँ की बात करें 
हम अपने मुल्क के बच्चों से चंद सा'अत ही 
वतन से प्यार की अम्नो अमाँ की बात करें 
सबक़ हम उन को दें तहज़ीब का ,शराफ़त का,
शिकायतों की न सूदो ज़ियाँ की बात करें 
जेहादे नफ्स से बढ़कर कोई जेहाद नहीं
न ख़ाको खूँ की न तीरो कमां की बात का
           
क़वी =मज़बूत ,                  सा'अत = क्षण 
पीर =वृद्ध                             
मफ़ाद = फ़ायेदा                सूदो ज़ियाँ =लाभ हानि
नेहाँ  =छिपा हुआ                  तहज़ीब = संस्कृति