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मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

आज एक हिंदी ग़ज़ल
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देह पर इक सर्प की लिपटा हुआ चंदन मिला
राजनैतिक वीथिका को इक नया आनन मिला
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अश्रु थे आँखों में और चेहरा अटा था धूल से
घूमता गलियों में इक असहाय सा बचपन मिला
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उसकी आहत भावनाएं सिस्कियाँ भरती रहीं
बंद अधरों में छिपे घावों का इक क्रंदन मिला
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खुल गई हैं मन की सारी खिड़कियाँ यक्बारगी
जब विचारों का हुआ मंथन तो इक दर्शन मिला
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मुद्दतें उस ने बिताईं शूल चुनने में ’शिफ़ा’
कितने संघर्षों से गुज़रा तब कहीं मधुबन मिला
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