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शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

यही सदियों तलक होगा

आज एक नज़्म के साथ हाज़िर हूँ शायद पसंद आए 

" यही सदियों तलक होगा "
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यही सदियों से होता है
यही सदियों तलक होगा
कि परवाना तड़पता है
शमा का दिल भी जलता है

ये इतना प्यार करती है

उसे दिल में बसाती है
मगर ये जानती भी है
अगर वो पास आएगा
तो उस कि जान जाएगी
इसी ग़म में वो घुलती है
इसी कोशिश में रहती है

मेरा परवाना बच जाए
भले वो पास न आए
मैं उस को देख तो पाऊं
तराने प्यार के गाऊं

मगर परवाने को देखो
अब उस को भी ज़रा समझो
शमा के गिर्द रहता है
और अपना सर पटकता है
नहीं मंज़ूर है उस को
जुदाई का कोई लम्हा
इसी उम्मीद में हर दम
शमा के गिर्द फिरता है
कभी तो वो बुलाएगी
कभी तो लबकुशा होगी
तो उस के पास जाएगा
और उस के अश्क पोछेगा
मगर जब ख़ामुशी से
शमा बस जलती पिघलती है

तो फिर बेचैन परवाना
शमा की सम्त बढ़ता है
और उस के प्यार की ख़ातिर
वो जाँ अपनी गंवाता है
शमा भी मुज़्तरिब हो कर 
तड़पती है ,मचलती है
जलाती है वो दिल को 
और फिर इस ग़म में घुलती है
जनाज़े पर वो परवाने के 
जाँ अपनी भी खोती है

यही सदियों से होता है
 यही सदियों तलक होगा
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लबकुशा= बोलना /कहना ; सम्त=ओर ; जनाज़ा= शव