एक हिंदी ग़ज़ल प्रस्तुत करने का साहस कर रही हूँ
जो कमियाँ हों उन से अवगत कराने की कृपा अवश्य करें
धन्यवाद !
जो कमियाँ हों उन से अवगत कराने की कृपा अवश्य करें
धन्यवाद !
ग़ज़ल
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हम कर्तव्यों को पूर्ण करें, माँगें केवल अधिकार नहीं
मानव से मानव प्रेम करे,संबंधों का व्यापार नहीं
जिस धरती माँ में सहने की शक्ति का पारावार न हो
उस का मत इतना दमन करो ,वह कह दे तुम स्वीकार नहीं
जैसे सागर में सरिता हो,जैसे पुष्पों से भ्रमर मिले
निस्सीम प्रेम आधार बने, उपकार रहे अपकार नहीं
नि:स्वार्थ प्रेम के भाव लिये ये कौन है मन के द्वार खड़ा
आगंतुक तुम ही बतला दो, क्यों पहले आए द्वार नहीं
कंगन,चूड़ी,पायल,बिछिया,मेंहदी,र ोली,झूमर,टीका
सब भावों के संवाहक हैं ,केवल सज्जा-श्रंगार नहीं
सर्वस्व निछावर करने को,तय्यार है सैनिक सीमा पर
है देश प्रेम ही बल उसका, बंदूक़ नहीं , तलवार नहीं
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हम कर्तव्यों को पूर्ण करें, माँगें केवल अधिकार नहीं
मानव से मानव प्रेम करे,संबंधों का व्यापार नहीं
जिस धरती माँ में सहने की शक्ति का पारावार न हो
उस का मत इतना दमन करो ,वह कह दे तुम स्वीकार नहीं
जैसे सागर में सरिता हो,जैसे पुष्पों से भ्रमर मिले
निस्सीम प्रेम आधार बने, उपकार रहे अपकार नहीं
नि:स्वार्थ प्रेम के भाव लिये ये कौन है मन के द्वार खड़ा
आगंतुक तुम ही बतला दो, क्यों पहले आए द्वार नहीं
कंगन,चूड़ी,पायल,बिछिया,मेंहदी,र
सब भावों के संवाहक हैं ,केवल सज्जा-श्रंगार नहीं
सर्वस्व निछावर करने को,तय्यार है सैनिक सीमा पर
है देश प्रेम ही बल उसका, बंदूक़ नहीं , तलवार नहीं
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बहुत खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी
हटाएंजिस धरती माँ में सहने की शक्ति का पारावार न हो
जवाब देंहटाएंउस का मत इतना दमन करो ,वह कह दे तुम स्वीकार नहीं
क्या बात.... जितनी सुन्दर उर्दू गज़ल होती है तुम्हारी, उतनी ही खूबसूरत ये हिंदी ग़ज़ल है. आनन्दम....
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंआप को आनंद आया हमारे लिये यही बहुत है "मैम" :):p
हटाएंसर्वस्व निछावर करने को,तय्यार है सैनिक सीमा पर
जवाब देंहटाएंहै देश प्रेम ही बल उसका, बंदूक़ नहीं , तलवार नहीं
बहुत सही कहा है...देश प्रेम की भावना ही सबसे बड़ा बल
ख़ूबसूरत ग़ज़ल
धन्यवाद रश्मि :)
हटाएंनि:स्वार्थ प्रेम के भाव लिये ये कौन है मन के द्वार खड़ा
जवाब देंहटाएंआगंतुक तुम ही बतला दो, क्यों पहले आए द्वार नहीं ...
आप माहिर हैं अपनी बात को स्पष्ट कहने में .. फिर चाहे जो भी भाषा हो ... बहुत ही सुन्दर भावों को शेरों में तब्दील किया है ... लाजवाब ...
बहुत बहुत धन्यवाद दिगम्बर जी
हटाएंकंगन,चूड़ी,पायल,बिछिया,मेंहदी,रोली,झूमर,टीका
जवाब देंहटाएंसब भावों के संवाहक हैं ,केवल सज्जा-श्रंगार नहीं
Aha ha...Lajawab...Tum jis Zabaan likhog kamaal hi likhogi kyun ki tumhaare khayalaat behad umda hain...
Maza aa gaya bahna.
बहुत बहुत धन्यवाद नीरज भैया
हटाएंआख़िर बहन किस की हैं :)
Meri Tippani kya spam men gayi?
जवाब देंहटाएंहम सब कर्तव्य से परे सिर्फ अधिकार के प्रयोग में बदहवास अकेले हो गए हैं .... ग़ज़ल बहुत अच्छी है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद रश्मि
हटाएंसुभानाल्लाह |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
शुक्रिया तुषार जी ज़रूर आऊंगी
हटाएंकंगन,चूड़ी,पायल,बिछिया,मेंहदी,रोली,झूमर,टीका
जवाब देंहटाएंसब भावों के संवाहक हैं,केवल सज्जा-श्रंगार नहीं !
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल लिखती हैं, आप ...
आनंद आ जाता है ..एक एक शब्द सार्थक है , दिल को छूता है !
बहुत बहुत बधाई ...
बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी
हटाएंनि:स्वार्थ प्रेम के भाव लिये ये कौन है मन के द्वार खड़ा
जवाब देंहटाएंआगंतुक तुम ही बतला दो, क्यों पहले आए द्वार नहीं ...
bahut sundar bhav hain ....aaj ke aapa dhapi ke mahaul men ek thahraav si deti rachna ....!!
bahut sundar .
आप की प्रशंसा भी काव्य का पुट लिये है अनुपमा जी
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद !
क्या बात है इस्मत, अब शुद्ध हिंदी में भी...? अच्छे भावों का संवहन करती सुन्दर रचना...! साधुवाद!
जवाब देंहटाएं'सब भावों के संवाहक हैं, केवल सज्जा-शृंगार नहीं!'
'है देश प्रेम ही बल उसका, बंदूक़ नहीं , तलवार नहीं!'
बहुत खूब, अति सुन्दर...!
सस्नेह--आ.
आनंद भैया आप ने प्रशंसा कर दी मानो मुझे तो सर्टिफ़िकेट मिल गया :)
हटाएंआप का स्नेह और आप की ये उत्साहवर्धक टिप्पणी मेरे लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है
बहुत बहुत धन्यवाद !!
बहुत सुन्दर , भावपूर्ण ...आप उर्दू ही नहीं हिंदी ग़ज़ल लिखने में भी पूर्ण कुशल हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शारदा जी !!!
हटाएंबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय ....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अशोक जी
हटाएंबहुत सुदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
विषय और प्रस्तुतिकरण दोनो बेजोड़
्बहुत बहुत धन्यवाद महेन्द्र जी!
हटाएंइस्मत आपा!! इस कविता/गज़ल पर कोई भी कमेन्ट नहीं किया जा सकता है.. बस दिल से महसूस किया जा सकता है... इतने खूबसूरत भाव जितनी खूबसूरती से आपने बयान किया है वो आजकल कम दिखता है!! याद आ गयी बचपन की कविता -
जवाब देंहटाएंजो भरा नहीं है भावों से/बहती जिसमें रसधार नहीं
वो ह्रदय नहीं वह पत्थर है/जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं!
बहुत बहुत धन्यवाद हमेशा ख़ुश रहिये सलिल
हटाएंधन्यवाद इन पंक्तियों को याद कराने के लिये भी
मैं जितनी देर ये ग़ज़ल लिखती रही मेरे दिमाग़ में ये बात रही कि इस बहर पर और रदीफ़ क़ाफ़िये पर मैं ने क्या पढ़ा है ,पर अब याद आया
धन्यवाद भागीरथ जी
जवाब देंहटाएंअवश्य आऊंगी ब्लॉग पर
नि:स्वार्थ प्रेम के भाव लिये ये कौन है मन के द्वार खड़ा
जवाब देंहटाएंआगंतुक तुम ही बतला दो, क्यों पहले आए द्वार नहीं.....बेहतरीन ... :)
ख़ुश रहो अपर्णा
हटाएंढेरों दुआएं और शुभकामनाएं तुम्हारे लिये :)
ग़ज़ल का हर शेर स्वयं ही अपने आप को कहलवा रहा है ... भाषा और भावों की ऊंचाई से काव्य का स्तर और भी निखर आया है .. शिल्प और बुनावट की दृष्टि से भी यह एक कामयाब रचना है ... भाषा के अनुशासन का पालन करना बहुत जोखिम भरा कार्य है
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें
उत्साहवर्द्धन के लिये बहुत बहुत धन्यवाद आप के प्रमाण पत्र की इस रचना को आवश्यकता थी
हटाएंजिस धरती माँ में सहने की शक्ति का पारावार न हो
जवाब देंहटाएंउस का मत इतना दमन करो ,वह कह दे तुम स्वीकार नहीं
बेहतरीन,शुभकामनाएं,
धन्यवाद शौर्य जी
हटाएंबहुत खुबसूरत ग़ज़ल हुई है आपा ... दाद क़ुबूल करें !
जवाब देंहटाएंख़ुश रहो अर्श
हटाएंशेफा कज़गाँवीँ शीर्षक से ब्लोग पढा ,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन . शुक्रिया
आशा है और जल्दी एसी ही सुंदर और भाव प्रवण रचनाएँ पढने को मिलेँगी
क्षेत्रपाल शर्मा , शांतिपुरम , सासनी गेट अलीगढ 202001
धन्यवाद शर्मा जी
हटाएंअद्भुत है दी , हर पंक्ति में सप्रेषित भाव प्रभावशाली है . बहुत सुन्दर ग़ज़ल .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आशीष
हटाएंकंगन,चूड़ी,पायल,बिछिया,मेंहदी,रोली,झूमर,टीका
जवाब देंहटाएंसब भावों के संवाहक हैं,केवल सज्जा-श्रंगार नहीं !
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल लिखती हैं, आप
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
हाँ संजय बहुत दिनों बाद तुम ने दर्शन दिये ,,सब ठीक है न ?
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया