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गुरुवार, 22 मार्च 2012

ग़ज़ल

एक तरही ग़ज़ल पेश ए ख़िदमत है जिस का तरही मिसरा था 
"इब्ने मरियम हुआ करे कोई "
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ख़्वाब बन कर मिला करे कोई
दर्द की यूँ  दवा करे कोई 

ज़िदगी की तरफ़ जो ले आए
"इब्ने मरियम हुआ करे कोई "

अपनी जाँ पर सहे सितम सारे
ऐसे भी तो वफ़ा करे कोई

ज़ुलमतें दूर कर दे ज़हनों से 
शम ’अ बन कर जला करे कोई

क़स्र ए सुल्ताँ में कौन सुनता है 
कुछ कहे तो कहा करे कोई

ज़िंदगी में मिले सुकूँ लेकिन 
ख़्वाहिशों से वग़ा करे कोई

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ज़ुल्मतें = अँधेरे ; क़स्र = महल ; वग़ा = युद्ध  

25 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िंदगी में मिले सुकूँ लेकिन
    ख़्वाहिशों से वग़ा करे कोई
    wah.....kya boloon.....

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  2. लाजवाब...क़स्र ए सुल्ताँ में कौन सुनता है कुछ कहे तो कहा करे कोई..वाह

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  3. क़स्र ए सुल्ताँ में कौन सुनता है
    कुछ कहे तो कहा करे कोई
    क्या बात है इस्मत!!! बहुत सुन्दर शेर है ये.

    ज़िंदगी में मिले सुकूँ लेकिन
    ख़्वाहिशों से वग़ा करे कोई
    सही है. ख्वाहिशें ही तो बेचैनी का कारण हैं, और उनसे निजात पाना साधारण इंसान के वश में कहां? शानदार ग़ज़ल के लिये बधाई :)

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  4. ज़ुलमतें दूर कर दे ज़हनों से
    शम ’अ बन कर जला करे कोई

    बहुत खूबसूरत गजल ...

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  5. अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।

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  6. इन्सान तो अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने में इतना मसरूफ है की उसको और किसी के दर्द से कोई मतलब ही नहीं बचा .

    बढ़िया सोच को रेखांकित करती उत्तम ग़ज़ल .

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  7. वाह, धीरे धीरे ग़ज़ल की समझ आ रही है।

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  8. अपनी जाँ पर सहे सितम सारे
    ऐसे भी तो वफ़ा करे कोई
    वाह

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  9. ज़िंदगी में मिले सुकूँ लेकिन
    ख़्वाहिशों से वग़ा करे कोई

    वाह! बहुत उम्दा ग़ज़ल...
    सादर बधाई..

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  10. ज़िदगी की तरफ़ जो ले आए
    "इब्ने मरियम हुआ करे कोई "

    कमाल की अभिव्यक्ति ....
    शब्द कम हैं इस ग़ज़ल की शान में क्या कहें .....
    आभार आपका !

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  11. क़स्र ए सुल्ताँ में कौन सुनता है
    कुछ कहे तो कहा करे कोई
    हासिले-ग़ज़ल शेर है इस्मत साहिबा...वाह

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  12. क़स्र ए सुल्ताँ में कौन सुनता है
    कुछ कहे तो कहा करे कोई..
    वाह...
    बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने. बधाई

    जवाब देंहटाएं
  13. ज़िंदगी में मिले सुकूँ लेकिन
    ख़्वाहिशों से वग़ा करे कोई
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..

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  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  15. बहुत सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  16. ज़ुलमतें दूर कर दे ज़हनों से
    शम ’अ बन कर जला करे कोई

    ग़ालिब की ज़मीन में ग़ज़ल कहना बड़ी बात है.आपने कर दिखाया. मुबारक हो.

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  17. नव संवत्सर का आरंभन सुख शांति समृद्धि का वाहक बने हार्दिक अभिनन्दन नव वर्ष की मंगल शुभकामनायें/ सुन्दर प्रेरक भाव में रचना बधाईयाँ जी /

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  18. ज़ुलमतें दूर कर दे ज़हनों से
    शम ’अ बन कर जला करे कोई

    इन शमाओं के सहारे ही जहनें रौशन हैं...बहुत खूब
    पता नहीं कैसे ...ये ख़ूबसूरत ग़ज़ल पढ़ने से कैसे छूट गयी....शायद नई पोस्ट और पुरानी पोस्ट के लम्बे विमर्श ने उलझा रखा था :(

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  19. ज़िंदगी में मिले सुकूँ लेकिन
    ख़्वाहिशों से वग़ा करे कोई ...

    ये ख्वाहिशें ही तो होती हैं जो अलाव जलाए रखती हैं ... फिर इनसे कोई कैसे बग करे ... बहुत ही उम्दा गज़ल है ... हर शेर सकून दे के जाता है ...

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  20. ज़ुलमतें दूर कर दे ज़हनों से
    शम ’अ बन कर जला करे कोई

    क़स्र ए सुल्ताँ में कौन सुनता है
    कुछ कहे तो कहा करे कोई

    ज़िंदगी में मिले सुकूँ लेकिन
    ख़्वाहिशों से वग़ा करे कोई

    Waah... bahut khoob, bahut hi umdaa ghazal.

    Regards
    Fani Raj

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  21. आदरणीया
    "इब्ने मरियम हुआ करे कोई " जज़ीं पर क्या बढ़िया ग़ज़ल लिखी है..... सारे शेर नगीने हैं..... !
    इस बहार और ज़मीन पर यह शेर लाजवाब है_____
    ज़िंदगी में मिले सुकूँ लेकिन
    ख़्वाहिशों से वग़ा करे कोई

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  22. अपनी जाँ पर सहे सितम सारे
    ऐसे भी तो वफ़ा करे कोई

    सुभान अल्लाह...बेजोड़ शायरी है इस्मत...पढने देर से पहुंचा क्या करूँ इन दिनों कुछ काम की मसरूफियत ज्यादा रही...खुश रहो.

    नीरज

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  23. बहुत सुंदर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया