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बुधवार, 3 नवंबर 2010

तमन्ना- ए- चराग़- ए- दीवाली

आप सभी को दीपावली की बहुत बहुत 
बधाई
और
शुभ कामनाएं 

इस बार बाज़ार में  जब दीवाली के दियों पर नज़र पड़ी तो अचानक मेरे ज़ह्न में ये ख़याल 
आया कि  भारत की मिट्टी से बने इस दिये की ख़्वाहिशात क्या क्या हो सकती हैं?
बस कुछ हुरूफ़ जो ज़ह्न में अल्फ़ाज़ का रूप  लेने लगे वो एक नज़्म  की शक्ल में 
आप की ख़िदमत में पेश कर रही हूं ,उम्मीद है आप भी मुझ से इत्तेफ़ाक़ करेंगे

तमन्ना-ए-चराग़-ए-दीवाली
__________________________

मैं चाहता हूं जलूं देश की हिफ़ाज़त में
मैं चाहता हूं जलूं इल्म की रेयाज़त में
मैं चाहता हूं जलूं अह्द की सदाक़त में
मैं चाहता हूं जलूं क़ौम की रेफ़ाक़त में

ये चाहता नहीं बैठूं मैं शाहराहों पर
ये चाहता नहीं पहुंचूं मैं ख़ानक़ाहों पर
मैं रौशनी जो बिखेरूं तो ऐसी राहों पर
जहां से जाते सिपाही हों हक़ की राहों पर

मेरी ज़िया से हर इक सिम्त में उजाला हो 
कि झूठ कोई नहीं सच का बोलबाला हो 
मेरा वजूद ग़रीबों के घर का हाला हो
मेरी वो रौशनी पाए कि जो जियाला हो

मैं उन को रौशनी दूं जो पढ़ें चराग़ों में
उन्हें दिखाऊं ज़िया जो पले गुनाहों में
मैं इक मिसाल बनूं ग़ैर के दयारों में
बसी हो प्रेम की बस्ती मेरे शरारों में

है अब यक़ीन कि पूरे करूंगा ये अरमां
बदलती फ़िक्र ने मंज़िल के दे दिये हैं निशां
मैं उन को याद दिलाऊंगा देश के एहसां
जो कर चुके  हैं फ़रामोश अपनी धरती मां

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रियाज़त=मेहनत ; सदाक़त= सच्चाई; रेफ़ाक़त= दोस्ती; सिम्त = दिशा ;अह्द =वादा
शाहराह =वो रास्ता जहां  से बाद्शाह गुज़रें ,ख़ानक़ाह = जहां फ़क़ीर   ,दर्वेश 
रहते हों ;ज़िया =  रौशनी ; हाला = रौशनी का घेरा  ;जियाला  =बहादुर
दयार =शह्र ,इलाक़ा ; शरारा =चिंगारी  ;दरमां =इलाज

21 टिप्‍पणियां:

  1. मैं उन को रौशनी दूं जो पढ़ें चराग़ों में
    उन्हें दिखाऊं ज़िया जो पले गुनाहों में
    मैं इक मिसाल बनूं ग़ैर के दयारों में
    बसी हो प्रेम की बस्ती मेरे शरारों में

    ईश्वर आपकी और आपके दिये की इन तमाम शुभेच्छाओं को पूरा करे. बहुत सुन्दर नज़्म है इस्मत.
    आज इन्सानियत की इन पवित्र भावनाओं की बहुत ज़रूरत है देश को, देशवासियों को, इन्हें सम्हाले
    रखना. दीपोत्सव तुम्हें बहुत बहुत मुबारक हो.

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  2. मैं चाहता हूं जलूं देश की हिफ़ाज़त में
    मैं चाहता हूं जलूं इल्म की रेयाज़त में
    मैं चाहता हूं जलूं अह्द की सदाक़त में
    मैं चाहता हूं जलूं क़ौम की रेफ़ाक़त में
    bahut hi shaandaar .is deep parv ki dhero badhaiyaan .

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  3. मैं उन को रौशनी दूं जो पढ़ें चराग़ों में
    उन्हें दिखाऊं ज़िया जो पले गुनाहों में
    मैं इक मिसाल बनूं ग़ैर के दयारों में
    बसी हो प्रेम की बस्ती मेरे शरारों में!

    आपकी यह दुआ अवश्य कबूल हो मैं आपके साथ शामिल हूँ ! सुबह सुबह इतनी आनंदमय रचना के लिए धन्यवाद ! दीवाली के अवसर पर यह बेहतरीन रचना होगी ! आपका धन्यवाद !
    दीवाली पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें !

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  4. बड़े सुन्दर शब्दों में कोमल भाव पिरोये हैं।

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  5. मेरी ज़िया से हर इक सिम्त में उजाला हो
    कि झूठ कोई नहीं सच का बोलबाला हो
    मेरा वजूद ग़रीबों के घर का हाला हो
    मेरी वो रौशनी पाए कि जो जियाला हो...

    आपके जज़्बे को सलाम...बहुत अच्छी नज़्म है, जिसमें सबके लिए पैग़ाम है.

    सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  6. मैं चाहता हूं जलूं देश की हिफ़ाज़त में
    मैं चाहता हूं जलूं इल्म की रेयाज़त में
    मैं चाहता हूं जलूं अह्द की सदाक़त में
    मैं चाहता हूं जलूं क़ौम की रेफ़ाक़त में
    बहुत खुब जी हम सब का यही जज्बा हो तो कितना अच्छा हो, बहुत सुंदर रचना धन्यवाद

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  7. बहुत सुन्दर, बेहतरीन,
    दीपावली की ढेर सारी शुभकामना!

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  8. बिलकुल,, बिलकुल,,
    आपकी बात से तो हर कोई इत्तेफ़ाक़ करेगा
    ऐसे सच्चे और पावन विचार पढ़ कर
    भला कौन खुद को रोक पाएगा
    इंसानियत के सादिक़ जज़्बे को बलंद रखने की
    आपकी ये कोशिश लफ्ज़-लफ्ज़ हर इंसान के दिल में उतर रही है
    नज़्म के सभी बंद अपनी मिसाल खुद बन पड़े हैं
    शिल्प और शैली के लिहाज़ से भी
    एक कामयाब और यादगार नज़्म कही है आपने
    कोई शक नहीं कि माखन लाल चतुर्वेदी और
    सुभद्रा चौहान जी की याद ताज़ा हो आई है
    मुबारकबाद .
    "मैं उन को रौशनी दूं जो पढ़ें चराग़ों में
    उन्हें दिखाऊं ज़िया जो पले गुनाहों में
    मैं इक मिसाल बनूं ग़ैर के दयारों में
    बसी हो प्रेम की बस्ती मेरे शरारों में..."
    वाह !!

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  9. मेरी ज़िया से हर इक सिम्त में उजाला हो
    कि झूठ कोई नहीं सच का बोलबाला हो
    मेरा वजूद ग़रीबों के घर का हाला हो
    मेरी वो रौशनी पाए कि जो जियाला हो...

    दिए के मन के एक एक भाव पढ़ लिए हो जैसे...
    बहुत ही प्रेरणादायी रचना

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  10. मैं उन को रौशनी दूं जो पढ़ें चराग़ों में
    उन्हें दिखाऊं ज़िया जो पले गुनाहों में
    मैं इक मिसाल बनूं ग़ैर के दयारों में
    बसी हो प्रेम की बस्ती मेरे शरारों में

    इस्मत जी इतनी पाक ख्याली है आपकी जुबां में कि बस आपके लफ़्ज़ों को पढ़कर दुआ ही निकलती है ....
    रब्ब आपको और तौफीक और एखलाकियात दे .....आपकी कलम यूँ ही मुख्लिस सी चलती रहे ......आमीन ....!!

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  11. कलम के कलाकार हो दिए से ही ख्यालों ने .खूबसूरत रचना रच दी ...दीपावली की बहुत बहुत बधाई ...

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  12. "मेरी ज़िया से हर इक सिम्त में उजाला हो
    कि झूठ कोई नहीं सच का बोलबाला हो
    मेरा वजूद ग़रीबों के घर का हाला हो
    मेरी वो रौशनी पाए कि जो जियाला हो"

    "मैं इक मिसाल बनूं ग़ैर के दयारों में
    बसी हो प्रेम की बस्ती मेरे शरारों में"

    आपकी क़लम में जादू है.
    बेहतरीन नज़्म.
    आपको भी दीवाली बहुत बहुत मुबारक हो

    कुँवर कुसुमेश

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  13. गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण प्रस्तुति. आभार.

    इस ज्योति पर्व का उजास
    जगमगाता रहे आप में जीवन भर
    दीपमालिका की अनगिन पांती
    आलोकित करे पथ आपका पल पल
    मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
    सुख समृद्धि शांति उल्लास की
    आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर

    आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
    सादर
    डोरोथी.

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  14. दिवाली मुबारक हो आपा...कोई ज़्यादा लेट नहीं हुए हैं हम...

    दीये की ख्वाहिश पढ़ कर लगा कि मैं खुद भी दीया होता और सोच सकता तो ऐसा ही कुछ सोचता...
    सबसे अच्छा ये लगा कि आपको दिवाली पर दीये को देखकर कोई ख्याल आया....रोकेट,अनार,बम्ब,पटाखे जैसी महंगी और प्रदुषण फैलाने वाली चीजों को देखकर नहीं...



    है अब यक़ीन कि पूरे करूंगा ये अरमां
    बदलती फ़िक्र ने मंज़िल के दे दिये हैं निशा
    मैं उन को याद दिलाऊंगा देश के एहसां
    जो कर चुके हैं फ़रामोश अपनी धरती मां

    आपकी नज़्म के इस नायक की हर ख्वाहिश पूरी हो...

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  15. वाह इस्मत जी वाह...नज़्म पढता गया और दिल से आपको दुआएं देता गया...ये नज़्म माखन लाल चतुर्वेदी जी की अमर काव्य रचना "पुष्प की अभिलाषा" से भी आगे की है...
    क्या कहूँ आपकी कलम का कायल हूँ...आपके इस ज़ज्बे को सलाम.


    नीरज

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  16. vaah...kya baat hai.har laain dil ko chhoo rahi hai.badhai iss soch aur iss shilp ke liye...

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  17. आम आदमी के हित में मह्त्वपूर्ण योगदान।
    सराहनीय लेखन....हेतु बधाइयाँ...ऽ. ऽ. ऽ
    चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
    मंगलमय हो आपको, सदा ज्योति का पर्व॥
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  18. मैं उन को रौशनी दूं जो पढ़ें चराग़ों में
    उन्हें दिखाऊं ज़िया जो पले गुनाहों में
    मैं इक मिसाल बनूं ग़ैर के दयारों में
    बसी हो प्रेम की बस्ती मेरे शरारों में
    ..आमीन।

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  19. मैं उन को रौशनी दूं जो पढ़ें चराग़ों में
    उन्हें दिखाऊं ज़िया जो पले गुनाहों में
    मैं इक मिसाल बनूं ग़ैर के दयारों में
    बसी हो प्रेम की बस्ती मेरे शरारों में
    बड़े सुन्दर शब्दों में कोमल भाव पिरोये हैं।

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  20. आपका ब्लॉग ग़ज़लों और नज्मों का खज़ाना है.. किसी दिन फुर्सत में सब सब की आराम से बैठ कर पढूंगा...

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ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया