आज एक नज़्म ले कर हाज़िर हुई हूँ
उम्मीद है आप को पसंद आएगी
हय्या अला ख़ैरिल अमल ( नेक काम के लिये खड़े हो जाओ )
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ये ख़ौफ़ ओ दहशत के हैं मुनादी
कि ख़ुद को कहते हैं जो जेहादी
वो जिस को चाहें हलाक कर दें
वो जिस को चाहें अमान दे दें
है उन का दावा वही हैं हक़ पर
यक़ीन उन को है लफ़्ज़ ए हक़ पर
जो उन का हामी नहीं ,,वो काफ़िर
जो उन का साथी नहीं,, वो जाबिर
वो मस्जिदों में भी ख़ूँ बहा दें
वो नन्हे बच्चों को भी न बख़्शें
न जाने कितने हैं घर उजाड़े
न जाने कितने नगर उजाड़े
न जाने कैसा मुहीब सा वो
जहाँ को नक़्शा दिखा रहे हैं
वो बर्बरीयत के खेल ही को
है दीन ओ ईमाँ बता रहे
ये ख़ौफ़ ओ दहशत के हैं मुनादी
कि ख़ुद को कहते हैं जो जेहादी
वो जिस को चाहें हलाक कर दें
वो जिस को चाहें अमान दे दें
है उन का दावा वही हैं हक़ पर
यक़ीन उन को है लफ़्ज़ ए हक़ पर
जो उन का हामी नहीं ,,वो काफ़िर
जो उन का साथी नहीं,, वो जाबिर
वो मस्जिदों में भी ख़ूँ बहा दें
वो नन्हे बच्चों को भी न बख़्शें
न जाने कितने हैं घर उजाड़े
न जाने कितने नगर उजाड़े
न जाने कैसा मुहीब सा वो
जहाँ को नक़्शा दिखा रहे हैं
वो बर्बरीयत के खेल ही को
है दीन ओ ईमाँ बता रहे
मगर ये पूछे तो कोई उन से
यही है ईमाँ तो फिर वो क्या है?
यही है मज़हब तो फिर वो क्या है ?
कि जिस में दुश्मन से भी मुहब्बत
कि जिस में हमसाए से रेफ़ाक़त
कि जिस में है औरतों की इज़्ज़त
कि जिस में है हर नफ़स से शफ़क़त
हर एक नुक़्ता सिखा रहा है
जेहाद क्या है बता रहा है
जेहाद, फ़ितनों को रोकना है
जेहाद, हमलों को रोकना है
ये दम ब दम बढ़ती ख़्वाहिशों पर
लगाम कसना, जेहाद ही है
बुझाना प्यासे की प्यास या फिर
किसी के आँसू को पोछना हो
जेहाद के ही हैं काम सारे
जेहाद के ही हैं नाम सारे
अगरचे मैदान में है जाना
अगरचे शमशीर हो उठाना
तो तीरगी के ख़िलाफ़ उट्ठो
जहालतों के ख़िलाफ़ उट्ठो
मिटाओ बातिल के वलवलों को
कुचल दो बातिल के हौसलों को
यही है मज़हब, यही धरम है
जो तुम बताते हो वो भरम है
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यही है मज़हब तो फिर वो क्या है ?
कि जिस में दुश्मन से भी मुहब्बत
कि जिस में हमसाए से रेफ़ाक़त
कि जिस में है औरतों की इज़्ज़त
कि जिस में है हर नफ़स से शफ़क़त
हर एक नुक़्ता सिखा रहा है
जेहाद क्या है बता रहा है
जेहाद, फ़ितनों को रोकना है
जेहाद, हमलों को रोकना है
ये दम ब दम बढ़ती ख़्वाहिशों पर
लगाम कसना, जेहाद ही है
बुझाना प्यासे की प्यास या फिर
किसी के आँसू को पोछना हो
जेहाद के ही हैं काम सारे
जेहाद के ही हैं नाम सारे
अगरचे मैदान में है जाना
अगरचे शमशीर हो उठाना
तो तीरगी के ख़िलाफ़ उट्ठो
जहालतों के ख़िलाफ़ उट्ठो
मिटाओ बातिल के वलवलों को
कुचल दो बातिल के हौसलों को
यही है मज़हब, यही धरम है
जो तुम बताते हो वो भरम है
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मुनादी = एलान करने वाला; हलाक = मारना; मुहीब = डरावना; बर्बरीयत= बर्बरता
रेफ़ाक़त = दोस्ती; नफ़स = व्यक्ति; शफ़क़त = स्नेह ; अगरचे = यदि;
तीरगी = अँधेरा; बातिल = असत्य .
बहुत सुंदर, बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंरेल बजट में नहीं दिखा 56 इँच का सीना !
http://aadhasachonline.blogspot.in/
शुक्र्गुज़ार हूँ महेन्द्र श्रीवास्तव जी
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया शिवम
जवाब देंहटाएंलाजवाब !
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत शुक्रिया यशवंत ,, जियो ख़ुश रहो
जवाब देंहटाएंExcellent & very relevent
जवाब देंहटाएंउम्दा, पुरअसर और मेआरी नज़्म... दिल से दाद हाज़िर है...
जवाब देंहटाएंबेहद आवश्यक एवं खूबसूरत नज़्म है !!
जवाब देंहटाएंआपका आभार !
सच कहा ....भरमाये हुए हैं ....
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक लाज़वाब अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसटीक और सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंजेहाद के सही मायने समझा दिए आज आपने
बुझाना प्यासे की प्यास या फिर
जवाब देंहटाएंकिसी के आँसू को पोछना हो
जेहाद के ही हैं काम सारे
जेहाद के ही हैं नाम सारे
-लाजवाब !
ये लोग जेहादी नहीं दहशतग़र्द हैं... इनकी ना शक्ल है, सूरत है, न मजहब है, न दीन है, न धर्म है... ये चन्द ऐसे लोग हैं अमन के दुश्मन हैं और पूरी क़ौम को बदनाम करते हैं!
जवाब देंहटाएंबहुत ही पुरासर नज़्म है आपी!
पर यह बात उनको कौन समझाये जिनके दिमागों को साफ़ करके दहशत ही भर दिया है?
जवाब देंहटाएंअगरचे मैदान में है जाना
जवाब देंहटाएंअगरचे शमशीर हो उठाना
तो तीरगी के ख़िलाफ़ उट्ठो
जहालतों के ख़िलाफ़ उट्ठो ------ तभी सकारात्मकता की तरफ हम होंगे
lajabab !!
जवाब देंहटाएंवो बर्बरीयत के खेल ही को
जवाब देंहटाएंहै दीन ओ ईमाँ बता रहे
मगर ये पूछे तो कोई उन से
यही है ईमाँ तो फिर वो क्या है?
यही है मज़हब तो फिर वो क्या है ?
कि जिस में दुश्मन से भी मुहब्बत
कि जिस में हमसाए से रेफ़ाक़त
कि जिस में है औरतों की इज़्ज़त
कि जिस में है हर नफ़स से शफ़क़त
हर एक नुक़्ता सिखा रहा है
जेहाद क्या है बता रहा है
शानदार नज़्म है इस्मत. लेकिन लगता है, मैं इस तक पहुंची ही नहीं :(
बहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंदुबारा पढ़ी , हर पंक्ति बे मिसाल !!
जवाब देंहटाएंअगरचे मैदान में है जाना
जवाब देंहटाएंअगरचे शमशीर हो उठाना
तो तीरगी के ख़िलाफ़ उट्ठो
जहालतों के ख़िलाफ़ उट्ठो
मिटाओ बातिल के वलवलों को
कुचल दो बातिल के हौसलों को
यही है मज़हब, यही धरम है
जो तुम बताते हो वो भरम है
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बहुत ही उमदा और साफ़ ख्याल हैं
प्रभावशाली नज्म
जवाब देंहटाएं