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मंगलवार, 8 जुलाई 2014

 आज एक नज़्म ले कर हाज़िर हुई हूँ
उम्मीद है आप को पसंद आएगी

हय्या अला ख़ैरिल अमल ( नेक काम के लिये खड़े हो जाओ )
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ये ख़ौफ़ ओ दहशत के हैं मुनादी
कि ख़ुद को कहते हैं जो जेहादी
वो जिस को चाहें हलाक कर दें
वो जिस को चाहें अमान दे दें
है उन का दावा वही हैं हक़ पर
यक़ीन उन को है लफ़्ज़ ए हक़ पर
जो उन का हामी नहीं ,,वो काफ़िर
जो उन का साथी नहीं,, वो जाबिर
वो मस्जिदों में भी ख़ूँ बहा दें
वो नन्हे बच्चों को भी न बख़्शें
न जाने कितने हैं घर उजाड़े
न जाने कितने नगर उजाड़े
न जाने कैसा मुहीब सा वो
जहाँ को नक़्शा दिखा रहे हैं
वो बर्बरीयत के खेल ही को
है दीन ओ ईमाँ बता रहे 
मगर ये पूछे तो कोई उन से
यही है ईमाँ तो फिर वो क्या है?
यही है मज़हब तो फिर वो क्या है ?
कि जिस में दुश्मन से भी मुहब्बत
कि जिस में हमसाए से रेफ़ाक़त
कि जिस में है औरतों की इज़्ज़त
कि जिस में है हर नफ़स से शफ़क़त
हर एक नुक़्ता सिखा रहा है
जेहाद क्या है बता रहा है

जेहाद, फ़ितनों को रोकना है
जेहाद, हमलों को रोकना है
ये दम ब दम बढ़ती ख़्वाहिशों पर
लगाम कसना, जेहाद ही है
बुझाना प्यासे की प्यास या फिर
किसी के आँसू को पोछना हो
जेहाद के ही हैं काम सारे
जेहाद के ही हैं नाम सारे

अगरचे मैदान में है जाना
अगरचे शमशीर हो उठाना
तो तीरगी के ख़िलाफ़ उट्ठो
जहालतों के ख़िलाफ़ उट्ठो
मिटाओ बातिल के वलवलों को
कुचल दो बातिल के हौसलों को
यही है मज़हब, यही धरम है
जो तुम बताते हो वो भरम है
_________________________

मुनादी = एलान करने वाला; हलाक = मारना; मुहीब = डरावना; बर्बरीयत= बर्बरता
रेफ़ाक़त = दोस्ती; नफ़स = व्यक्ति; शफ़क़त = स्नेह ;  अगरचे = यदि; 
तीरगी = अँधेरा; बातिल = असत्य .

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर, बहुत बढिया


    रेल बजट में नहीं दिखा 56 इँच का सीना !
    http://aadhasachonline.blogspot.in/

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  2. बहुत शुक्रिया यशवंत ,, जियो ख़ुश रहो

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  3. उम्दा, पुरअसर और मेआरी नज़्म... दिल से दाद हाज़िर है...

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  4. बेहद आवश्यक एवं खूबसूरत नज़्म है !!
    आपका आभार !

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  5. बहुत सटीक लाज़वाब अभिव्यक्ति...

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  6. सटीक और सार्थक सृजन
    जेहाद के सही मायने समझा दिए आज आपने

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  7. बुझाना प्यासे की प्यास या फिर
    किसी के आँसू को पोछना हो
    जेहाद के ही हैं काम सारे
    जेहाद के ही हैं नाम सारे
    -लाजवाब !

    जवाब देंहटाएं
  8. ये लोग जेहादी नहीं दहशतग़र्द हैं... इनकी ना शक्ल है, सूरत है, न मजहब है, न दीन है, न धर्म है... ये चन्द ऐसे लोग हैं अमन के दुश्मन हैं और पूरी क़ौम को बदनाम करते हैं!
    बहुत ही पुरासर नज़्म है आपी!

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  9. पर यह बात उनको कौन समझाये जिनके दिमागों को साफ़ करके दहशत ही भर दिया है?

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  10. अगरचे मैदान में है जाना
    अगरचे शमशीर हो उठाना
    तो तीरगी के ख़िलाफ़ उट्ठो
    जहालतों के ख़िलाफ़ उट्ठो ------ तभी सकारात्मकता की तरफ हम होंगे

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  11. वो बर्बरीयत के खेल ही को
    है दीन ओ ईमाँ बता रहे
    मगर ये पूछे तो कोई उन से
    यही है ईमाँ तो फिर वो क्या है?
    यही है मज़हब तो फिर वो क्या है ?
    कि जिस में दुश्मन से भी मुहब्बत
    कि जिस में हमसाए से रेफ़ाक़त
    कि जिस में है औरतों की इज़्ज़त
    कि जिस में है हर नफ़स से शफ़क़त
    हर एक नुक़्ता सिखा रहा है
    जेहाद क्या है बता रहा है
    शानदार नज़्म है इस्मत. लेकिन लगता है, मैं इस तक पहुंची ही नहीं :(

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  12. दुबारा पढ़ी , हर पंक्ति बे मिसाल !!

    जवाब देंहटाएं
  13. अगरचे मैदान में है जाना
    अगरचे शमशीर हो उठाना
    तो तीरगी के ख़िलाफ़ उट्ठो
    जहालतों के ख़िलाफ़ उट्ठो
    मिटाओ बातिल के वलवलों को
    कुचल दो बातिल के हौसलों को
    यही है मज़हब, यही धरम है
    जो तुम बताते हो वो भरम है
    _____________________
    बहुत ही उमदा और साफ़ ख्याल हैं

    जवाब देंहटाएं

ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया