एक ग़ज़ल हाज़िर ए ख़िदमत है
आज मेरा जी चाहा कि इसे आप सब तक भी पहुंचाऊं
अब आप बताएं कि मेरा फ़ैसला ठीक है या मेरे कलाम ने आप सब को
नाउम्मीद किया
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ग़ज़ल
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अह्ल ए वफ़ा को जंग में उस पार देख कर
हूँ मुंजमिद यक़ीन को मिस्मार देख कर
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जिस की ज़ुबाँ ने ज़ख़्म दिये हैं मुझे सदा
हैराँ हूँ आज उन को तरफ़दार देख कर
*****
हर पल मुझे हयात का अब मुख़्तसर लगे
डरने लगा हूँ वक़्त की रफ़्तार देख कर
*****
दुशवार रास्तों का सफ़र शौक़ बन गया
आसानियों से तेरा वो इन्कार देख कर
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मुस्तक़्बिल ए हयात का नक़्शा सा खिंच गया
ख़ामोश सर झुकाए वो अश्जार देख कर
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बचपन में शौक़ से जो घरौंदे बनाए थे
इक हूक सी उठी उन्हें मिस्मार देख कर
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देखो न ज़ात-पात न नाम ओ नसब ’शेफ़ा’
पर दोस्त जब बनाओ तो किरदार देख कर
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अह्ल ए वफ़ा= वफ़ादार लोग,,, मुंजमिद=स्तब्ध,,,मिस्मार=टूटा हुआ,बिखरा हुआ,,,
हयात=जीवन,,,मुख़्तसर=छोटा,,,रफ़्तार=गति,,,दुश्वार=कठिन,,,
मुस्तक़्बिल=भविष्य,,,अश्जार=वृक्ष का बहुवचन,,,
नाम ओ नसब=प्रसिद्धि और परिवार
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बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंक्या कहने
बहुत बहुत शुक्रिया महेन्द्र जी
हटाएंबहुत बढ़िया गज़ल...
जवाब देंहटाएंआप का फैसला यूँ न होता तो महरूम रह जाते आपकी ये शानदार गज़ल पढ़ने से :-)
अनु
अनु शुक्र्गुज़ार हूँ इस हौसला अफ़ज़ाई के लिये
हटाएंबहुत सुंदर लगे ..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता जी
हटाएंजिस की ज़ुबाँ ने ज़ख़्म दिये हैं मुझे सदा
जवाब देंहटाएंहैराँ हूँ आज उन को तरफ़दार देख कर ... इलाही ये माजरा क्या है !
कोई बात नहीं है रश्मि ,,बस कभी कभी कोई शेर कैसे हो जाता है ख़ुद को ही नहीं पता चलता
हटाएंदेखो न ज़ात-पात न नाम ओ नसब ’शेफ़ा’
जवाब देंहटाएंपर दोस्त जब बनाओ तो किरदार देख कर
इस शेर ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया।
सादर
यशवंत ख़ुश रहिये,सलामत रहिये
हटाएंइस्मत आपा,
जवाब देंहटाएंआपकी गज़ल की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि मैं उसे कई मर्तबा बा-आवाजे-बुलंद पढ़ता जाता हूँ.. आज के दौर में (ब्लॉग पर) इतनी बे-बहर गज़ल पढ़ने को मिलती हैं कि आपकी गज़ल पढ़ना, रूह जो सुकून पहुंचाता है.. इस गज़ल के अशआर न सिर्फ खूबसूरत अलफ़ाज़ से सजे हैं, बल्कि बेशकीमत मेसेज भी देते हैं..
हाँ, दो मौजू पर अटक गया हूँ मैं..
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पहला ये शे'र:
हर पल मुझे हयात का अब मुख़्तसर लगे
डरने लगा हूँ वक़्त की रफ़्तार देख कर.
आपा, 'पल' तो वक्त का सबसे मुख़्तसर हिस्सा होता है.. फिर आपने अलग से मुख़्तसर क्यों कहा??.. ऐसा क्यों नहीं कहा कि
हर दिन मुझे हयात का अब मुख़्तसर लगे
डरने लगा हूँ वक्त की रफ़्तार देखकर!
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और दूसरा, "मिस्मार" लफ्ज़ का पूरी गज़ल में दो बार इस्तेमाल.. अमूमन आप ऐसा नहीं करतीं..
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छोटा मुँह बड़ी बात की मुआफी के साथ, इस बेहतरीन गज़ल का शुक्रिया!!
सलिल जी मुझे सब से अच्छा ये लगता है कि आप बग़ौर मेरा कलाम पढ़ते हैं और आज आप के सवालों ने मुझे बहुत ख़ुशी बख़्शी है,,बहुत बहुत मशकूर हूँ आप की
हटाएं१- आप का मश्वेरा बहुत सही है पल की जगह दिन करने का लेकिन मेरा मक़सद उस चरम पर पहुंचना था जब पल मुख़्तसर से भी मुख़्तसर हो लगने लगे
२-जी आप ने बिल्कुल सही कहा आम तौर पर मैं एक ही क़ाफ़िया २ बार नहीं इस्तेमाल करती लेकिन इस बार कर लिया :)
मालूम नहीं मैं अपनी बात स्पष्ट कर पाई हूँ या नहीं
बहुत ही खूब!! अच्छा लगा इस ब्लॉग पे आकर, बहुत कुछ सीखने को मिलेगा ..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया मधुरेश जी ब्लॉग पर आने और ग़ज़ल को पढ़ने के लिये
हटाएंअह्ल ए वफ़ा को जंग में उस पार देख कर
जवाब देंहटाएंहूँ मुंजमिद यक़ीन को, मिस्मार देख कर !
बहुत खूब ...
बेहतरीन ग़ज़ल है ..कई बार पढ़ी !
शुभकामनायें !
बेहद शुक्रगुज़ार हूँ सतीश जी कि आप ने न सिर्फ़ ग़ज़ल पढ़ी बल्कि कई बार पढ़ी :)
हटाएंसलिल दादा के सवालों के जवाब के इंतज़ार मे मैं भी हूँ आपा ... बाकी तो ग़ज़ल बेहद उम्दा है ही ... :)
जवाब देंहटाएंपृथ्वीराज कपूर - आवाज अलग, अंदाज अलग... - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शिवम बहुत बहुत शुक्रिया सलिल जी के सवालों का जवाब देने की कोशिश पूरी कर ली गई है आप भी पढ़ लें :)
हटाएंहालाँकि मुझे गजल और उर्दू की बहुत गहरी जानकारी तो नहीं है फिर भी आपकी गजल पढ़कर बहुत अच्छी लगी , मेरी पसंदीदा-
जवाब देंहटाएंबचपन में शौक़ से जो घरौंदे बनाए थे
इक हूक सी उठी उन्हें मिस्मार देख कर|
बहुत बहुत शुक्रिया , इस गजल के लिए |
सादर
जानकारी तो मुझे भी नहीं है आकाश जी बस एक विद्यार्थी हूँ वो भी नर्सरी की
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया पसंदीदगी के लिये
जिस की ज़ुबाँ ने ज़ख़्म दिये हैं मुझे सदा
जवाब देंहटाएंहैराँ हूँ आज उन को तरफ़दार देख कर !
बचपन में शौक़ से जो घरौंदे बनाए थे
इक हूक सी उठी उन्हें मिस्मार देख कर|
बहुत उम्दा ग़ज़ल ! बधाई भी, आशीष भी !
--भैया.
बहुत बहुत शुक्रिया आनन्द भैया
हटाएंजिस की ज़ुबाँ ने ज़ख़्म दिये हैं मुझे सदा
जवाब देंहटाएंहैराँ हूँ आज उन को तरफ़दार देख कर
क्या बात है..... ज़िन्दगी की ऐसी बारीक सच्चाइयों को कितनी खूबसूरती से बयां कर देती हो तुम. बहुत सुन्दर ग़ज़ल है इस्मत.
देखो न ज़ात-पात न नाम ओ नसब ’शेफ़ा’
पर दोस्त जब बनाओ तो किरदार देख कर
क्या कहूं इस शेर के लिये? कमाल है...
देखो न ज़ात-पात न नाम ओ नसब ’शेफ़ा’
हटाएंपर दोस्त जब बनाओ तो किरदार देख कर
बस इसीलिये तुम से दोस्ती की है :)
ग़ज़ल के बारे में मेरा कुछ कहना तो सूरज को दीपक दिखाने जैसा होगा . हम तो प्रवेशार्थी है आपकी संस्था के . वैसे आपकी ग़ज़ल पढने के बाद आपकी सम्यक और सूक्ष्म दृष्टि को दाद देने में गर्व महसूसता हूँ.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अनुज
हटाएंbahut badhiya Shefa ji...
जवाब देंहटाएं्शुक्रिया शारदा जी
हटाएंसरल बोलता हूँ ,सरल समझता हूँ ,सरल जुबाँ है मेरी
जवाब देंहटाएंमेरी तो पसंद है यह..बाकि क्या बात है तेरी (गज़ल की );-))
जिस की ज़ुबाँ ने ज़ख़्म दिये हैं मुझे सदा
हैराँ हूँ आज उन को तरफ़दार देख कर......खूबसूरत !
मुबारक कबूलें!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अशोक जी
हटाएंहर पल मुझे हयात का अब मुख़्तसर लगे
जवाब देंहटाएंडरने लगा हूँ वक़्त की रफ़्तार देख कर
bas ab aapka peechha karna shuru kaar diya hai )
शुक्रिया भावना जी स्वागत है आपका :)
हटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल !:)
जवाब देंहटाएं~सादर !
धन्यवाद अनीता जी
हटाएंबहुत ही सुन्दर..
जवाब देंहटाएंऔर बहुत ही बढ़ियाँ गजल...
:-)
शुक्रिया रीना जी
हटाएंशुक्रिया यशवंत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंदुशवार रास्तों का सफ़र शौक़ बन गया
जवाब देंहटाएंआसानियों से तेरा वो इन्कार देख कर
सुभान अल्लाह,,,,मतले से मकते तक का निहायत खूबसूरत सफ़र है आपकी ग़ज़ल,,,एक एक शेर करीने से तराशा हुआ,,,ढेरों दाद कबूल करें।
नीरज
बहुत बहुत शुक्रिया नीरज भैया
हटाएंआप की दुआओं से मेरी हौसला अफ़ज़ाई होती है
डरने लगा हूं वक्त की रफ्तार देखकर, हर शेर तराशा हुआ। अच्छी रचना की बधाई स्वीकार करें। वक्त मिले तो मेरे ब्लाग http://sumarnee.blogspot.in/ पर भी आएं। वहां एक ग़ज़ल आपके मशविरे का इंतजार कर रही है। शुक्रिया और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंदुशवार रास्तों का सफ़र शौक़ बन गया
जवाब देंहटाएंआसानियों से तेरा वो इन्कार देख कर
दी ! क्या बोलूँ बस दिल भर गया ....