एक माह के अरसे के बाद एक बार फिर एक ग़ज़ल के साथ हाज़िर ए ख़िदमत हूं
ग़ज़ल
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हथियार तेरे किस को डराने के लिये हैं
हम तो तेरा हर वार बचाने के लिये हैं
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हर फूल की क़िस्मत में शिवाला नहीं होता
कुछ फूल तो मय्यत पे सजाने के लिये हैं
*
आँसू को सदा ग़म से ही जोड़ा नहीं करते
ख़ुशियों में भी कुछ अश्क बहाने के लिये हैं
*
लरज़ीदह हैं लब , आँख में तन्हाई के आँसू
ख़ुश-बाश वो दुनिया को दिखाने के लिये हैं
*
हर ज़ख़्म की तशहीर ज़रूरी तो नहीं है
सदमे कई इस दिल में छिपाने के लिये हैं
*
जो आग लगाए है नशेमन में, वो तुम हो
हम जैसे ’शेफ़ा’ आग बुझाने के लिये हैं
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शिवाला= मंदिर ; मय्यत= शव ; लरज़ीदह= काँपते हुए ;
ख़ुश- बाश= ख़ुश ; तशहीर = शोहरत, प्रसिद्धि ;
नशेमन= घोंसला ,,नीड़
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बहुत खूबसूरत गज़ल ...वार बचा जाएँ यही काफी है ....दूसरे शेर पर मुझे फूल की अभिलाषा कविता याद आ गयी ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया संगीता जी बस अपना प्यार यूँही बनाए रखें
हटाएंबहुत बढ़िया गज़ल इस्मत दी....
जवाब देंहटाएंदाद हाज़िर है...
सादर
अनु
(इससे पहले वाली टिप्पणी प्रकाशित न करें...जाने क्या लिखा है आपके नाम की जगह..क्षमा करें :-( खूब तेज वाइरल जो हो रखा है :-)
धन्यवाद अनु, अब कैसी तबियत है ?
हटाएंहर फूल की क़िस्मत में शिवाला नहीं होता
जवाब देंहटाएंकुछ फूल तो मय्यत पे सजाने के लिये हैं
*
आँसू को सदा ग़म से ही जोड़ा नहीं करते
ख़ुशियों में भी कुछ अश्क बहाने के लिये हैं
वाह ... बहुत खूब हर पंक्ति जबरदस्त ..
सादर
बहुत बहुत शुक्रिया सदा जी
हटाएंग़ज़ल के बारे में बस इतना कह सकता हूँ की हर शेर बेइंतहा सुन्दर और मायने वाला, आपकी ग़ज़ल पढके मुझे लगता है की मैंने भूत में ग़ज़ल न पढ़ के नुकसान किआ अपना .
जवाब देंहटाएंअब नुक़सान की भरपाई कर लो आशीष सारी ग़ज़लें पढ़ डालो :)
हटाएंबहुत ही सुंदर ग़ज़ल...वाह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वीना जी
हटाएंहर फूल की क़िस्मत में शिवाला नहीं होता
जवाब देंहटाएंकुछ फूल तो मय्यत पे सजाने के लिये हैं
कमाल का शेर है इस्मत... और ये भी कम नहीं-
हर ज़ख़्म की तशहीर ज़रूरी तो नहीं है
सदमे कई इस दिल में छिपाने के लिये हैं
और मक़्ता?? क्या कहूं, मेरे पास तो शब्द ही नहीं होते, या फिर मेरा मन तुम्हारी ग़ज़ल पढते हुए इतनी ज़ोर-ज़ोर से वाह-वाह कर रहा होता है, कि शब्द सुनाई ही नहीं देते....
वन्दना तुम तो इतनी तारीफ़ कर देती हो कि मुझे जवाब समझ में नहीं आता ,,,ख़ूब ख़ुश रहो और मेरी कमियाँ भी बताओ :)
हटाएंहर फूल की क़िस्मत में शिवाला नहीं होता
जवाब देंहटाएंकुछ फूल तो मय्यत पे सजाने के लिये हैं।।।
ज़िन्दगी की तल्ख़ हक़ीक़त से रु.ब.रु करवाने की कोशिश
में कहा गया कामयाब और शानदार शेर ... वाह !
ग़ज़ल के बाक़ी शेर भी असरदार हैं ...
हमेशा ही की तरह बहुत अच्छी ग़ज़ल
बेहद शुक्रगुज़ार हूँ दानिश साहब आप की आमद ही हौसला अफ़ज़ा है मेरे लिये
हटाएंहर फूल की क़िस्मत में शिवाला नहीं होता
जवाब देंहटाएंकुछ फूल तो मय्यत पे सजाने के लिये हैं
वाह ..
कुछ बात ख़ास है यहाँ ...
सतीश जी बेहद मशकूर हूँ
हटाएंआप एक जुमले में ही जो compliment देते हैं वो रचनाकार को स्फूर्ति प्रदान कर जाता है
आपसे हम जैसे हमेशा स्फूर्ति पाते हैं ...
हटाएंआभार !
हर फूल की क़िस्मत में शिवाला नहीं होता
जवाब देंहटाएंकुछ फूल तो मय्यत पे सजाने के लिये हैं
ये शेर तो बहुत ही जोरदार है ...देखिये सबने ही इसे कितना पसंद किया है ...वाह ..
बहुत बहुत शुक्रिया शारदा जी इसी तरह स्नेह बनाए रखें
हटाएंbahot achche.....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मृदुला जी
हटाएंइस्मत आपा!
जवाब देंहटाएंआपकी गज़ल के इंतज़ार में सदियाँ गुज़र गयीं. जब से आपको पढाना शुरू किया है तब से आपने लिखना कम कर दिया है या पहले से ही ऐसा था??
खैर, इस गज़ल की सादगी के क्या कहने. एक एक शेर इतनी मासूमियत से पढ़ने वाले की ओर ताकता है कि बस वाह निकल जाती है. कहने का अन्दाज़ नया है और वही मुतासिर करता है. एक शे'र जिसका ज़िक्र ख़ास तौर से करना चाहूँगा:
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लरज़ीदह हैं लब , आँख में तन्हाई के आँसू
ख़ुश-बाश वो दुनिया को दिखाने के लिये हैं
.
इस शे'र में कही गयी बात पहले भी मुख्तलिफ शायरों ने मुखतलिफ अन्दाज़ में कही है, लेकिन "मैं कहता हूँ आपी का है अंदाज़े बयान और"!!
सलिल जी , यक़ीनन इधर लिखना कुछ कम हो गया है लेकिन पहले भी ्मैं एक माह के अंतराल पर ही ग़ज़ल पोस्ट करती थी
हटाएंज़र्रानवाज़ी है जनाब ,,आप की टिप्पणी बेहद हौसला अफ़्ज़ा होती है ,,कुछ और लिखने की हिम्मत पड़ती है ,,बहुत बहुत शुक्रिया
हर ज़ख़्म की तशहीर ज़रूरी तो नहीं है
जवाब देंहटाएंसदमे कई इस दिल में छिपाने के लिये हैं.....
सब खुबसूरत ..सब पे दाद कबूलें !
सेहतमंद रहें!
बहुत बहुत शुक्रिया अशोक जी
हटाएंबेहतरीन शायरी है.. एक से बढ़ कर एक..
जवाब देंहटाएंपुरानी गज़लें भी पढ़ता रहा हूँ पर कमेन्ट बॉक्स में किसी दिक्कत के कारण कमेन्ट नहीं कर पा रहा था..
आपकी पोस्ट का इंतज़ार रहता है...
्शुक्रिया प्रतीक बेटा
हटाएंआँसू को सदा ग़म से ही जोड़ा नहीं करते
जवाब देंहटाएंख़ुशियों में भी कुछ अश्क बहाने के लिये हैं!
पूरी ग़ज़ल ही बहुत अच्छी है वैसे .. ढेरों सराहना !
शुक्रिया ,,हमेशा ख़ुश रहिये मधुरेश जी
हटाएंहर फूल की क़िस्मत में शिवाला नहीं होता
जवाब देंहटाएंकुछ फूल तो मय्यत पे सजाने के लिये हैं
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति बधाई भारत पाक एकीकरण -नहीं कभी नहीं
हर ज़ख़्म की तशहीर ज़रूरी तो नहीं है
जवाब देंहटाएंसदमे कई इस दिल में छिपाने के लिये हैं
.......इस सोच को बस नमन है मेरा !!!
मुझे आपका ब्लॉग हिंदी चिट्ठा संकलक में नहीं मिला, क्या आपने शामिल नहीं किया? तो अभी कीजिए - http://hindiblogs.charchaa.org/
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल पढ़ने को मिली |इस ब्लॉग पर आना बहुत ही सार्थक हुआ |आभार
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
जवाब देंहटाएंumda ghazal.
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