एक ग़ज़ल हाज़िर ए ख़िदमत है
ग़ज़ल
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अब कहाँ आन -बान बाक़ी है
घर नहीं बस मकान बाक़ी है
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जिस हवेली में बसते थे रिश्ते
उस हवेली की शान बाक़ी है
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नीम मुर्दा से हो गए फिर भी
इन उसूलों में जान बाक़ी है
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जिस के हाथों में हाथ हैं अब तक
बस वही ख़ानदान बाक़ी है
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होंगी सारी बलंदियाँ उस की
बस ज़रा सी उड़ान बाक़ी है
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बे असर हो गईं दवाएं सब
ज़ख्म ए दिल का निशान बाक़ी है
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ताएरों से खंडर ये कहता था
जाओ मत ,सएबान बाक़ी है
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उस के हाथों में है 'शेफ़ा 'क्योंके
उस की शीरीं ज़बान बाक़ी है
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नीम मुर्दा =अर्ध मृत ; ताएरों =पक्षियों ; शेफ़ा =रोग का निदान ; शीरीं =मीठी
आज रिश्ते तो बचे नहीं बस झूठी शान बाकी है .... कुछ काम शिंरी ज़बान से ही चला लिया जाये .... बहुत उम्दा गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी
हटाएंआप सही कह रही हैं लेकिन मैं अभी भी नाउम्मीद नहीं हूं
वाह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल.....
सादर
अनु
शुक्रिया अनु जी
हटाएंसुस्वागतम , ग़ज़ल तो हमेशा की तरह बेहतरीन , सारे शेर दिल में उतरते हुए , और हम तो उर्दू के लब्ज भी सीख रहे है यहाँ से .
जवाब देंहटाएंख़ुश रहो आशीष ,,,मेरे लिये बहुत ख़ुशी की बात होगी अगर मैं किसी को कुछ अच्छा सिखा सकूं
हटाएंजिस हवेली में बसते थे रिश्ते
जवाब देंहटाएंउस हवेली की शान बाक़ी है
गहराई लिए हुए हर शेर ...
बहुत सुंदर ॥
शुभकामनायें ...!!
बहुत बहुत शुक्रिेया अनुपमा जी
हटाएंbehtereen lagi gazal..
जवाब देंहटाएंशुक्र्गुज़ार हूँ शारदा जी
हटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंक्या कहने..
जब समय हो तो कृपया मेरे नए ब्लाग पर जरूर आए..
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/09/blog-post.html?spref=fb
धन्यवाद महेन्द्र जी
हटाएंदिल में उतरने वाला हर शेर। हर शेर सवा शेर है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दीपिका जी
हटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल और मकता कमाल का है.. शीरीं ज़ुबान न जाने कितनी दवाओं के बराबर असर करती है!! बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्र्गुज़ार हूँ जनाब !!
हटाएंनीम मुर्दा से हो गए फिर भी
जवाब देंहटाएंइन उसूलों में जान बाक़ी है
बहुत सही. हम कितना ही खानदानी उसूलों को अनदेखा करने की कोशिश करें, हमारी अंतरात्मा उन्हें याद दिलाती ही है... ज़ाहिर है, उसूलों में जान बाकी है अभी...
होंगी सारी बलंदियाँ उस की
बस ज़रा सी उड़ान बाक़ी है
बहुत सुन्दर..बहुत ही सुन्दर... तुम्हारे कई शे'र तो मुझे सूक्त वाक्य बनाने को उकसाते हैं.. इच्छा होती है, कि स्कूल, कॉलेजों की दीवारों पर लिखवा दूं....
तुम तो वन्दना इतनी तारीफ़ कर देती हो कि फिर मैं कुछ कहने के लायक़ नहीं रह जाती
हटाएंबस ऐसे ही मेरी प्रेरणा बनी रहना हमेशा
बेहतरीन अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रवीण जी
हटाएंbahot achche.....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया मृदुला जी
हटाएंबेहतरीन गज़ल।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनो बाद आपके ब्लॉग पर आने का अवसर मिला। बहुत लापरवाह और भुलक्कड़ हूँ। कभी पढ़ूंगा सभी छूटी गज़लें।
जी देवेंद्र जी बहुत दिनों बाद आप का आगमन हुआ लेकिन देर आए दुरुस्त आए :)
हटाएंछूटी ग़ज़लें आप के इंतज़ार में हैं
लाजवाब!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया यशवंत जी
हटाएंजिस हवेली में बसते थे रिश्ते
जवाब देंहटाएंउस हवेली की शान बाक़ी है
- हाँ ,बाकी है अभी पर कब तक !
शुक्रिया प्रतिभा जी
हटाएंबस उम्मीद पर दुनिया क़ायम है :)
अब कहाँ आन -बान बाक़ी है
जवाब देंहटाएंघर नहीं बस मकान बाक़ी है
जिस हवेली में बसते थे रिश्ते
उस हवेली की शान बाक़ी है ....
वाह वाह....बेहद उम्दा गजल ..शुभ कामनाएं एवं अभिनन्दन !!
बहुत बहुत शुक्रिया प्रशंसा और शुभकामनाओं के लिये
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी
जवाब देंहटाएंबे असर हो गईं दवाएं सब
जवाब देंहटाएंज़ख्म ए दिल का निशान बाक़ी है
आम बात आपकी इस ग़ज़ल में ख़ास हो गई है।
क्योंकि आपकी आवाज़ संघर्ष की जमीन से फूटती आवाज़ है। क्रूर और आततायी समय में आपके सच्चे मन की आवाज़ है यह ग़ज़ल। सपनों को देखने वाली आंखों की चमक और तपिश भी बनी हुई है। क्योंकि
उस के हाथों में है 'शेफ़ा 'क्योंके
उस की शीरीं ज़बान बाक़ी है
बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी
हटाएंआज कुछ तो बचा नही सिर्फ शान ही बाकी है ..बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद माहेश्वरी जी ,,
हटाएंआशाएं बाक़ी रहें बस काफ़ी है
बहुत सुंदर ,बहुत खूब.....पर !
जवाब देंहटाएंअच्छों से हाथ ,फ़िसल गये अच्छों के
अब तो बस ,नादान बाकि हैं ....
शुक्रिया !
शुक्र्गुज़ार हूं अशोक जी
हटाएंअब कहाँ आन -बान बाक़ी है
जवाब देंहटाएंघर नहीं बस मकान बाक़ी है
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जिस हवेली में बसते थे रिश्ते
उस हवेली की शान बाक़ी है
उम्दा गज़ल के लिए बाधायी।
शुक्रिया नादिर साहब
हटाएंछोटी बहर में बढ़िया अशआर होते हैं. यह ग़ज़ल इसका सबूत है. खूब कही है....मुबारक हो!
जवाब देंहटाएंबहुत पहले इस ज़मीन पर मैंने भी एक ग़ज़ल कही थी.
बस भैया दुआएं बनाए रखिये
हटाएंऔर अपनी ग़ज़ल पढ़वाइये
बहुत खूबसूरत गजल कही आपने
जवाब देंहटाएंआदिति जी शुक्रिया
हटाएंवाह दिल को छू गयी गजल आपकी आभार
जवाब देंहटाएंMamta jee shukriya
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