पंकज जी के ब्लॉग पर पोस्ट की गई एक पुरानी ग़ज़ल पेश ए ख़िदमत है
..........अभी तक गाँव में
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गोरियाँ पनघट पे जाती हैं, अभी तक गाँव में
प्रीत की राहों के राही हैं, अभी तक गाँव में
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पायलों से सुर मिलाती वो खनकती चूड़ियाँ
लोक धुन पर गुनगुनाती हैं, अभी तक गाँव में
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पक्षियों की चहचहाहट ,सुब्ह की ठंडी हवा
चुनरियाँ खेतों की धानी हैं, अभी तक गाँव में
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झोपड़ी, खलिहान, पनघट, बाग़ में बिखरे हुए
याद के कुछ फूल बासी हैं, अभी तक गाँव में
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छोड़ आए थे जिन्हें तुम गाँव के बरगद तले
झील सी आँखें वो प्यासी हैं, अभी तक गाँव में
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क्या बुज़ुर्गों का है दर्जा? मान क्या सम्मान क्या?
माँएं बच्चों को सिखाती हैं, अभी तक गाँव में
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भूल कर भी अपनी मिट्टी को न भूलेगी ’शेफ़ा’
कुछ जड़ें गहरी समाई हैं, अभी तक गाँव में
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वाह ... गाँव की यादें ताज़ा हो गईं ... जहाँ आज भी भोलापन ताज़ा है ... लोग धुन बजती है ...
जवाब देंहटाएंहर शेर वापस लौटाता है बचपन में ...
बहुत बहुत शुक्रिया दिगम्बर जी
हटाएंmukkamal gaza.. bahut sundar... gaaon kee khushboo se bhar gaya man
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंदिल को सुकून-ए-ठंडक महसूस हुई,
जवाब देंहटाएंआकर, आपकी इस ग़ज़ल की, कोमल सी छाँव में...
आप को सुकून मिला मेरे लिये यही बहुत है,,शुक्रिया
हटाएंवाह... सादगी के साथ मन मोहने वाली ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंक्या बुज़ुर्गों का है दर्जा? मान क्या सम्मान क्या?
जवाब देंहटाएंमाँएं बच्चों को सिखाती हैं, अभी तक गाँव में
इस्मत, तुम्हारी ग़ज़ल पर बहुत कुछ कहने का मन नहीं होता...पढ़ती हूँ, फिर गुनती हूँ, और फिर गुनगुनाने लगाती हूँ...अजब हाल है :)
तुम्हारी टिप्पणियाँ मुझे बहुत ख़ुशी देती हैं
हटाएंवैसे डॉ.गायत्री के कमेन्ट को ही मेरा भी माना जाए :)
जवाब देंहटाएंभूल कर भी अपनी मिट्टी को न भूलेगी ’शेफ़ा’
जवाब देंहटाएंकुछ जड़ें गहरी समाई हैं, अभी तक गाँव में .... मेरी ईदी शेफ़ा .... ईद मुबारक
तुम्हारी ईदी गोवा में है आ कर ले जाओ :)
हटाएंआपने तो सब कुछ याद दिला दिया . पायल और चूड़ियों की खनकार , कजरी और लोकगीतों की कर्णप्रिय धुनें . आपकी ये ग़ज़ल रहते - रूह (ठंडा तेल नहीं ) है .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आशीष
हटाएंभटके और जिए कहीं भी मगर
जवाब देंहटाएंख़ाक होना है मुझे अपने गाँव में...
सुन्दर......
अनु
धन्यवाद !!
हटाएंbachpan ki atkhelyaan hai, peepal ki chhaon hai
जवाब देंहटाएंaapki post padh ke sab yaad aa gaya jo ab tak hai gaon me
वाह !!
हटाएंशुक्रिया!
पक्षियों की चहचहाहट ,सुब्ह की ठंडी हवा
जवाब देंहटाएंचुनरियाँ खेतों की धानी हैं, अभी तक गाँव में
झोपड़ी, खलिहान, पनघट, बाग़ में बिखरे हुए
याद के कुछ फूल बासी हैं, अभी तक गाँव में.
---आज के दौर में जब शहरीकरण का अजगर ग्रामीण संस्कृति को निगलता जा रहा है. भारतीय समाज के मूल्यों और जीवन शैली को याद दिलाने वाली यह ग़ज़ल बहुत अहमियत रखती है. ऐसी रचनाओं का स्वागत किया जाना चाहिए. मेरी बधाई स्वीकार करें.
बहुत बहुत शुक्रिया मेरी रचना को पसन्द करने और गाँव से मेरे जुड़ाव को समझने के लिये
हटाएंआज आपकी महफ़िल में हम आए तो यूं लगा,
जवाब देंहटाएंजैसे कि लौट आये हों हम अपने गाँव में.
खुशबू जुबां में, सोंधापन मिट्टी में है बसा,
माता की गोद जैसा लगा, अपने गाँव में.
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बेहतरीन गज़ल!!!
जी बहुत बहुत शुक्रिया !!
हटाएंझोपड़ी, खलिहान, पनघट, बाग़ में बिखरे हुए
जवाब देंहटाएंयाद के कुछ फूल बासी हैं, अभी तक गाँव में
वाह...
छोड़ आए थे जिन्हें तुम गाँव के बरगद तले
झील सी आँखें वो प्यासी हैं, अभी तक गाँव में
शानदार...
क्या बुज़ुर्गों का है दर्जा? मान क्या सम्मान क्या?
माँएं बच्चों को सिखाती हैं, अभी तक गाँव में
हर शेर लाजवाब है इस्मत साहिबा, मुबारकबाद
ईद की मुबारकबाद भी कुबूल फ़रमाएं.
आप को भी ईद मुबारक हो शाहिद साहब
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया,ग़ज़ल आप को पसंद आई, ज़र्रानवाज़ी है जनाब !!
'कुछ जड़ें गहरी समाई हैं, अभी तक गाँव में .' बेहतरीन है ! बुजुर्गों की फिक्र बार-बार बोलती है तुम्हारी रचनाओं में .. वह संस्कार, वह तहजीब जो तुम्हें विरासत में मिली है अपने घर से और अब्बा से, उसे तो शब्द मिलेंगे ही तुम्हारी कलम से ! खूब लिखो और आबाद रहो !
जवाब देंहटाएंससेंह--आ.व. ओझा.
बहुत बहुत शुक्रिया आनंद भैया
हटाएंबस अपना आशीर्वाद बनाए रखें
छोड़ आए थे जिन्हें तुम गाँव के बरगद तले
जवाब देंहटाएंझील सी आँखें वो प्यासी हैं, अभी तक गाँव में
बहुत सुंदर ...सादगी और सहजता गांव की ...!!
धन्यवाद अनुपमा जी
हटाएंwah... sach me bahut sadgi se aapne gaon ki yada dila di:)
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिेया मुकेश जी
हटाएंशुक्रिया यशवंत
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा गज़ल |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया तुषार जी
हटाएंक्या बुज़ुर्गों का है दर्जा? मान क्या सम्मान क्या?
जवाब देंहटाएंमाँएं बच्चों को सिखाती हैं, अभी तक गाँव में
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
बहुत बहुत शुक्रिया वंदना जी
हटाएंबढ़िया ग़ज़ल.सभी शेर लाजवाब.
जवाब देंहटाएंबेहद मशकूर हूँ कुसुमेश जी
हटाएंगज़ल का हर अश'आर बेहतरीन. गाँव की सोंधी महक साँसों में भर गया.
जवाब देंहटाएंछोड़ आए थे जिन्हें तुम गाँव के बरगद तले
झील सी आँखें वो प्यासी हैं, अभी तक गाँव में
ये दो पंक्तियाँ उन दो आँखों की तरह न जाने क्ब तक जेहन में छाई रहेंगी
बहुत बहुत शुक्रिया अरुण जी
हटाएंबेहतरीन नज्म............ आभार !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजय
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