एक ग़ज़ल जिसे आप शिकायत समझें या समाज में बढ़ते जा रहे ख़ुदग़र्ज़ी के जज़्बे से एक लम्हे भर को दुखी हुए मन की पीर , लेकिन मेरे लिये ये एहसास लम्हाती था मैं आज भी बहुत पुर उम्मीद हूँ क्योंकि आज भी समाज में उन लोगों का फ़ीसद ज़्यादा है जो बे ग़रज़ और बेलौस जज़्बे के साथ काम करते हैं
फिर भी उस एक लम्हे को आप तक पहुँचाने की जुर्रत रही हूँ
ग़ज़ल
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दूसरों के ग़म में रोता कौन है
बोझ यूँ ग़ैरों के ढोता कौन है
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मुफ़लिसी ने उस की हिम्मत तोड़ दी
वर्ना यूँ ख़ुशियों को खोता कौन है
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है सुकून ओ अम्न गाँवों का नसीब
ख़ौफ़ से शहरों में सोता कौन है
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एक हो कर हम चलो ढूँढें उसे
फ़स्ल ये नफ़रत की बोता कौन है
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उस ने हर ख़्वाहिश को मदफ़न ही दिया
बोझ यूँ इसयाँ के ढोता कौन है
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हम पड़ोसी मस’अले कर लेंगे हल
तीसरा ये शख़्स होता कौन है
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ऐ ’शेफ़ा’ हमदर्दी ए दुश्मन में अब
कश्तियाँ अपनी डुबोता कौन है
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मुफ़लिसी = ग़रीबी,,;,,मदफ़न = क़ब्र ,,;,,इसयाँ = गुनाह ,पाप
उस ने हर ख़्वाहिश को मदफ़न ही दिया
जवाब देंहटाएंबोझ यूँ इसयाँ के ढोता कौन है... वाह... क्या लिखती हो !
हम पड़ोसी मस’अले कर लेंगे हल
जवाब देंहटाएंतीसरा ये शख़्स होता कौन है ...
वाह..
बेहतरीन गज़ल..
जज्बातों से लबरेज..
शुक्रिया.
waah! bahut hi umda
जवाब देंहटाएंएक हो कर हम चलो ढूँढें उसे
जवाब देंहटाएंफ़स्ल ये नफ़रत की बोता कौन है wah.....behad khoobsurti se likhi hain.....
बहुत सच है, यही कहानी है हर ओर।
जवाब देंहटाएंहर अशआर लाजबाब मगर इस शेर में तो जान ही बसी हुई है .
जवाब देंहटाएंउस ने हर ख़्वाहिश को मदफ़न ही दिया
बोझ यूँ इसयाँ के ढोता कौन है
kuchh sabr rakho
जवाब देंहटाएंkhule dil aur jahan se
dhoondho
kahin aas paas hee mil jaayegaa
umdaa gazal
दूसरों के ग़म में रोता कौन है
जवाब देंहटाएंबोझ यूँ ग़ैरों के ढोता कौन है
सच्चाई से लबरेज़ है मत्ला.वाह.
सच,यही हक़ीक़त है.
सभी शेर बिलकुल हालत का आइना हैं.
बेहतरीन गजल
जवाब देंहटाएंसादर
एक हो कर हम चलो ढूँढें उसे
जवाब देंहटाएंफ़स्ल ये नफ़रत की बोता कौन है ...
ये एक शेर सिर्फ रस्म के लिए उतारा है यहाँ .. पर हर शेर गज़ब का लिखा है ... मतला तो इतना जानदार है की क्या कहूँ ... हकीकत के करीब हैं हर शेर ... अमाज को आइना दिखाते हुवे ...
्बेहद शानदार गज़ल्…………हर शेर आईना दिखाता हुआ।
जवाब देंहटाएंहै सुकून ओ अम्न गाँवों का नसीब
जवाब देंहटाएंख़ौफ़ से शहरों में सोता कौन है
सच्ची बात.
हम पड़ोसी मस’अले कर लेंगे हल
तीसरा ये शख़्स होता कौन है
वाह!!!! मन तो कर रहा है कि इन तमाम तीसरों के पास भेज दूं ये शेर, साथ ही पड़ोसी के यहां भी. वो भी तो देखे, कितना भरोसा है यहां. शानदार ग़ज़ल.
मुफ़लिसी ने उस की हिम्मत तोड़ दी
जवाब देंहटाएंवर्ना यूँ ख़ुशियों को खोता कौन है
एक हो कर हम चलो ढूँढें उसे
फ़स्ल ये नफ़रत की बोता कौन है
उस ने हर ख़्वाहिश को मदफ़न ही दिया
बोझ यूँ इसयाँ के ढोता कौन है
हम पड़ोसी मस’अले कर लेंगे हल
तीसरा ये शख़्स होता कौन है
बहुत खूब कही है.....लाजवाब गज़ल के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं|
हम पड़ोसी मस’अले कर लेंगे हल
जवाब देंहटाएंतीसरा ये शख़्स होता कौन है
बड़ी उम्दा बात कही है..पूरी की पूरी ग़ज़ल ही बेमिसाल है
अभी काफी लोग ऐसे मिलेंगे जिनमें इंसानियत बाकि है !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
है सुकून ओ अम्न गाँवों का नसीब
जवाब देंहटाएंख़ौफ़ से शहरों में सोता कौन है
उम्दा शायरी ....
बहुत बढ़िया ...
मुफलिसी ने उसकी हिम्मत तोड़ दी
जवाब देंहटाएंवर्ना यूं खुशियों को खोता कौन है
हम पडोसी मसअले कर लेंगे हल
तीसरा ये शख्स, होता कौन है
उस पुर-असर लम्हे का भी शुक्रिया जिसने इस्मत ज़ैदी के
ज़हन में ये नायाब शेर भर दिए और एक
बहुत अच्छी ग़ज़ल पढने वालों तक पहुँच पाई ....
बहुत खूब !!
हलचल पे मिली आपकी यह पोस्ट! बहुत अच्छी ग़ज़ल, और सार्थक भी !
जवाब देंहटाएंदूसरों के ग़म में रोता कौन हैबोझ यूँ ग़ैरों के ढोता कौन है .................बिलकुल सही कहा....,आपने.
जवाब देंहटाएंlaajabaab ghazal.
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar likha hai
जवाब देंहटाएंbehtarin gajal...
ख़ूबसूरत ग़ज़ल , आपके लिये जो अहसास लम्हाती हो सकते हैं , वो किसी के लिये उम्र जितने लम्बे भी हो सकते हैं ...लम्हे तो कट जाते हैं मगर उम्र किस बिना पर कटे ...हाँ ये अहसास ही सुन्दर है कि बस गम लम्हे भर का है ...
जवाब देंहटाएंउस ने हर ख़्वाहिश को मदफ़न ही दिया
जवाब देंहटाएंबोझ यूँ इसयाँ के ढोता कौन है
बहुत खूबसूरती के साथ आपने अपने जज्बे को बयान किया है.
वाह! वाह! वाह! बेहतरीन गज़ल।
जवाब देंहटाएंमुफ़लिसी ने उस की हिम्मत तोड़ दी
जवाब देंहटाएंवर्ना यूँ ख़ुशियों को खोता कौन है
वाह ...बहुत खूब ।
हम पड़ोसी मस’अले कर लेंगे हल
जवाब देंहटाएंतीसरा ये शख़्स होता कौन है
वाह! बहुत उम्दा ग़ज़ल...
सादर.
सच्ची अच्छी एवं खूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंबधाई.....
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)
एक हो कर हम चलो ढूँढें उसे
जवाब देंहटाएंफ़स्ल ये नफ़रत की बोता कौन है
वाह!! बहुत ख़ूब !!
है सुकून ओ अम्न गाँवों का नसीब
जवाब देंहटाएंख़ौफ़ से शहरों में सोता कौन है
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सच्ची baat....
सभी अशआर ज़मीं से जुड़े हुए हैं ....
बहुत खूब.....
बहुत ही खूबसूरत रचना है.. तुरंत जुड़ने वाली..
जवाब देंहटाएंहम पड़ोसी मस’अले कर लेंगे हल
जवाब देंहटाएंतीसरा ये शख़्स होता कौन है..
बहुत ही खूबसूरत.. वाह
मुफ़लिसी ने उस की हिम्मत तोड़ दी
जवाब देंहटाएंवर्ना यूँ ख़ुशियों को खोता कौन है...
ग़ज़ल का सबसे बेहतरीन शेर लगा...
हां मुफ़लिसी कह लीजिए या गर्दिश...
बहरहाल बहुत अच्छी ग़ज़ल है...मुबारकबाद.