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सोमवार, 15 अगस्त 2011

.........ज़िंदा हैं हम

आज चारों ओर भ्रष्टाचार  ,अन्याय ,अत्याचार जैसे शब्द वातावरण में घूम रहे हैं ,इन शब्दों के बार बार मस्तिष्क से टकराने और परिस्थितियों की जटिलता के कारण कुछ  विचारों ने कविता का रूप धारण किया जो मैं आप सब के साथ साझा करना चाहती हूं ,,,,सहमति या असहमति आप का अधिकार है और उस की अभिव्यक्ति का हृदय से स्वागत है

"............ज़िंदा हैं हम "
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हर तरफ़ है शोर भ्रष्टाचार का, अन्याय का
खुल चुका है पृष्ठ अत्याचार के अध्याय का
हर तरफ़ हड़ताल , धरने और सभाओं का चलन
हर तरफ़ है राजनीति ,बस नहीं चिंतन मनन

किस की ग़लती है यहां ? है किस के दुर्भावों का राज?
बेच दी भूमि किसी ने और गिरी निर्धन पे गाज
है दुराचारी कोई, व्यभिचार का हामी कोई
है प्रवतक दुर्गुणों का और अहंकारी कोई

लूटता है अपना हिंदुस्तान खेलों में कोई
झोलियां भरता है अपनी आज मेलों से कोई
कोई मानवता की दीपक-ज्योति को मद्धिम करे
कोई भारत मां की आँखें आँसुओं से नम करे

क्यों हुआ? ये कब हुआ? कैसे हुआ ?क्या क्या हुआ?
बेअसर है क्यों हमारी ज़िंदगी की हर दुआ ?
पर नहीं हारेंगे हिम्मत ,ढूँढ लेंगे कोई हल
जाग जाएं हम तो आएगा सफलता का भी पल 

सब से पहले अपने अँदर की कमी को ढूँढ लें 
अपने कर्मों की कथाएं अपने मन से पूछ लें
हम सभी करते हैं बातें ,अपने ही अधिकार की
कर नहीं पाते हैं हिम्मत, झूठ से इंकार की

वोट देने का जो आए वक़्त हम छुट्टी मनाएं
भूल कर कर्तव्य अपने, दाँव पर जीवन लगाएं
उन को संसद में बिठाएं जो हमें  दें वेदनाएं 
जो कि हैं दोषी उन्हीं के सामने हम सर झुकाएं

दुख तो है ,पर भूल जाएं जो हुआ सो हो गया
ले के फिर परचम उठें हम देश के सम्मान का
एकता के हाथ और ईमान के पाँव लिये
हम बढ़ें इस फ़ैसले की रौशनी दिल में लिये

अब न होने देंगे हम व्यभिचार ये उद्देश्य हो
अब न होने देंगे अत्याचार ये ही लक्ष्य हो
अब हर इक सत्ता समझ ले , जान ले , ज़िंदा हैं हम
दूर भ्रष्टाचार से, ईमान की गंगा हैं हम

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25 टिप्‍पणियां:

  1. सब से पहले अपने अँदर की कमी को ढूँढ लें
    अपने कर्मों की कथाएं अपने मन से पूछ लें
    हम सभी करते हैं बातें ,अपने ही अधिकार की
    कर नहीं पाते हैं हिम्मत, झूठ से इंकार की

    बहुत ही कमाल की रचना है इस्मत साहिबा...
    मुबारकबाद कुबूल फ़रमाएं...
    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  2. दीदी

    बेमिसाल नज़्म के लिए तहे-दिल से मुबारकबाद !
    वोट देने का जो आए वक़्त हम छुट्टी मनाएं
    भूल कर कर्तव्य अपने, दाँव पर जीवन लगाएं
    उन को संसद में बिठाएं जो हमें दें वेदनाएं
    जो कि हैं दोषी उन्हीं के सामने हम सर झुकाएं

    दुख तो है ,पर भूल जाएं जो हुआ सो हो गया
    ले के फिर परचम उठें हम देश के सम्मान का
    एकता के हाथ और ईमान के पाँव लिये
    हम बढ़ें इस फ़ैसले की रौशनी दिल में लिये

    अब न होने देंगे हम व्यभिचार ये उद्देश्य हो
    अब न होने देंगे अत्याचार ये ही लक्ष्य हो
    अब हर इक सत्ता समझ ले , जान ले , ज़िंदा हैं हम
    दूर भ्रष्टाचार से, ईमान की गंगा हैं हम


    आपकी नज़्म देशवासियों के लिए प्रकाश स्तंभ का कार्य करे … यही कामना है !
    आभार ! साधुवाद !!


    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. सब से पहले अपने अँदर की कमी को ढूँढ लें
    अपने कर्मों की कथाएं अपने मन से पूछ लें
    हम सभी करते हैं बातें ,अपने ही अधिकार की
    कर नहीं पाते हैं हिम्मत, झूठ से इंकार की...
    is satya ko salam ... vande matram

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  4. स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाईयां

    जवाब देंहटाएं
  5. सब से पहले अपने अँदर की कमी को ढूँढ लें
    अपने कर्मों की कथाएं अपने मन से पूछ लें
    हम सभी करते हैं बातें ,अपने ही अधिकार की
    कर नहीं पाते हैं हिम्मत, झूठ से इंकार की


    वाह इस्मत वाह...जियो बहना, कितनी अच्छी और सच्ची बात है तुमने...वाह...ये रचना हर हिन्दुस्तानी को दिल से पढनी और याद करनी चाहिए...दिल भर आया...

    नीरज

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  6. जिन्दा हैं हम, उसकी निशानियाँ भी हों।

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  7. सब से पहले अपने अँदर की कमी को ढूँढ लें
    अपने कर्मों की कथाएं अपने मन से पूछ लें
    हम सभी करते हैं बातें ,अपने ही अधिकार की
    कर नहीं पाते हैं हिम्मत, झूठ से इंकार की

    सही कहा ...
    अपनी गलती मान लेना ही अमन की शुरुआत है .....
    आमीन ....

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  8. "हम सभी करते हैं बातें ,अपने ही अधिकार की
    कर नहीं पाते हैं हिम्मत, झूठ से इंकार की"

    क्या बात है! बहुत सुन्दर, सार्थक रचना है इस्मत.
    आज़ादी का ये महापर्व मुबारक हो.

    जवाब देंहटाएं
  9. दुख तो है ,पर भूल जाएं जो हुआ सो हो गया
    ले के फिर परचम उठें हम देश के सम्मान का
    एकता के हाथ और ईमान के पाँव लिये
    हम बढ़ें इस फ़ैसले की रौशनी दिल में लिये

    सुंदर और सार्थक प्रस्तुति... आभार... स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
    सादर,
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं
  10. दुख तो है ,पर भूल जाएं जो हुआ सो हो गया
    ले के फिर परचम उठें हम देश के सम्मान का
    एकता के हाथ और ईमान के पाँव लिये
    हम बढ़ें इस फ़ैसले की रौशनी दिल में लिये

    स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारा देश जाने किन
    त्रासदियों से घिरा हुआ है, हम आज़ाद होकर भी
    आज़ाद नहीं लग रहे हैं,,, ऐसी ही कुछ विडम्बनाओं को
    बहुत सार्थक और सटीक शब्दों में प्रस्तुत किया है आपने...
    हिन्दोस्तान के लोगों की बात, हिन्दोस्तान ही की आवाज़ में
    सुलभ और सहज ढंग से हर हिन्दोस्तानी तक पहुंचाने का का
    यह प्रयास सफल रहा.... बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  11. एक सत्‍य बयां करती सार्थक अभिव्‍यक्ति ...आभार ।

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  12. स्वंय की गलती स्वीकार करना ही सुधार की प्रथम सीढ़ी है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति आभार.

    जवाब देंहटाएं
  13. ज़िंदा हैं हम
    दूर भ्रष्टाचार से,
    ईमान की गंगा हैं हम

    बेमिसाल,सार्थक रचना.....

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  14. बहुत उम्दा रचना, बधाई एवं शुभकामनाएँ.

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  15. हर तरफ़ है शोर भ्रष्टाचार का, अन्याय का
    खुल चुका है पृष्ठ अत्याचार के अध्याय का

    कमाल की प्रतिभा है आपमें ! स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिए बधाई ....

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  16. सब से पहले अपने अँदर की कमी को ढूँढ लें
    अपने कर्मों की कथाएं अपने मन से पूछ लें ...

    आपने सच लिखा है .. हर कोई दूसरे पे निशाना साध कर अपना जुर्म कम कर लेता है आज ... अपनी कमियों को ढूँढेंगे तो अपने आप सुधार आता जायगा ... बहुत सार्थक रचना है ....

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  17. लड़ाई लम्बी है.. जिंदा तो हो गए हैं.. अब जागने की बारी है..

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  18. आदरणीया !!!!
    नया अंदाज़ नए तेवर
    पूरी ग़ज़ल बेहतरीन

    हालत को भांपते हुए बहुत मौजू ग़ज़ल है ..... हर आदमी का दर्द इस ग़ज़ल में है....!!!

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  19. वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! मन की गहराई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी को सलाम

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  20. अब हर इक सत्ता समझ ले , जान ले , ज़िंदा हैं हम
    दूर भ्रष्टाचार से, ईमान की गंगा हैं हम

    वाह ,क्या बात है.
    बहुत सुन्दर लिखा है.

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  21. सब से पहले अपने अँदर की कमी को ढूँढ लें
    अपने कर्मों की कथाएं अपने मन से पूछ लें
    हम सभी करते हैं बातें ,अपने ही अधिकार की
    कर नहीं पाते हैं हिम्मत, झूठ से इंकार की
    बहुत अच्छी बात कही है आपने.

    यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
    अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

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  22. जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
    दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
    ईद मुबारक

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ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया