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बुधवार, 27 जुलाई 2011

.....अक्सर मज़ाक़ में

जनाब शाहिद मिर्ज़ा "शाहिद" साहब की एक ख़ूबसूरत  ग़ज़ल और उस के रदीफ़ से मुतास्सिर हो कर की गई एक कोशिश पेश ए ख़िदमत है ,...’मज़ाक़ मेंरदीफ़ की वो ग़ज़ल उन के ब्लॉग पर पोस्ट हुई और जनवाणी, मेरठ के कॉलम गुनगुनाहटमें छपी ,, जिस का लिंक भी पेश ए ख़िदमत है

"................अक्सर मज़ाक़ में"
_______________________________

रिश्ते भी वो बनाए है अक्सर मज़ाक़ में
उन को मगर निभाएगा क्योंकर मज़ाक़ में

इक झूट सब के बीच वो इस तर्ह कह गया
फिर जाने कितने टूट गए घर मज़ाक़ में

हर लफ़्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
हालांकि कह रहा था वो हंस कर मज़ाक़ में

जोकर की तर्ह मेरा भी किरदार हो गया
जग को हंसा रहा था मैं रो कर मज़ाक़ में

अपनी ज़ुबाँ पे इतना तो क़ाबू रखो शेफ़ा
तोड़े न दिल चलाए न ख़ंजर मज़ाक़ में


33 टिप्‍पणियां:

  1. जोकर की तर्ह मेरा भी किरदार हो गया
    जग को हंसा रहा था मैं रो कर मज़ाक़ में
    bahut khoob rahi .laazwaab

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  2. "अपनी ज़ुबाँ पे इतना तो क़ाबू रखो ’शेफ़ा
    तोड़े न दिल चलाए न ख़ंजर मज़ाक़ में"

    गुड मार्निंग !
    एक एक लाइन दिल को छू लेने में कामयाब है !
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  3. इक झूट सब के बीच वो इस तर्ह कह गया
    फिर जाने कितने टूट गए घर मज़ाक़ में

    ख़ूब ग़ज़ल कही है.

    जवाब देंहटाएं
  4. हर लफ़्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
    हालांकि कह रहा था वो हंस कर मज़ाक़ में

    बहुत खूब

    घनाक्षरी समापन पोस्ट - १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द

    जवाब देंहटाएं
  5. हर लफ़्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
    हालांकि कह रहा था वो हंस कर मज़ाक़ में...
    kya baat hai

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्छी प्रस्तुति....आजकल सब मजाक ही सा है ....ठीक कहा !

    जवाब देंहटाएं
  7. इक झूट सब के बीच वो इस तर्ह कह गया
    फिर जाने कितने टूट गए घर मज़ाक़ में

    जोकर की तर्ह मेरा भी किरदार हो गया
    जग को हंसा रहा था मैं रो कर मज़ाक़ में

    सुभान अल्लाह...बेमिसाल ग़ज़ल. आप जब लिखती हैं कमाल लिखती हैं. मेरी दुआएं आपके साथ हैं.

    नीरज

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  8. अरे हाँ मैं ये कहना तो भूल ही गया...तुमने तो गोवा का खूबसूरत नीला समंदर ही अपने ब्लॉग पर उतार दिया है...बहुत दिलकश रहा है ये ब्लॉग अब.
    नीरज

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  9. बिलकुल अलग तरह की रदीफ़ को
    अपने क़ाबू में रखते हुए
    अच्छे अश`आर कह दिए गए हैं
    हर लफ्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
    हालांकि कह रहा था वो, हँसकर मज़ाक़ में
    वाह !
    और ...
    "तोड़े न दिल, चलाए न खंजर मज़ाक़ में.."
    बहुत खूब कहा है !!
    मुबारकबाद .

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  10. हर लफ़्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
    हालांकि कह रहा था वो हंस कर मज़ाक़ में

    bahut badhiya ghazal!!!

    जवाब देंहटाएं
  11. जोकर की तर्ह मेरा भी किरदार हो गया
    जग को हंसा रहा था मैं रो कर मज़ाक़ में

    अपनी ज़ुबाँ पे इतना तो क़ाबू रखो ’शेफ़ा
    तोड़े न दिल चलाए न ख़ंजर मज़ाक़ में

    खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  12. मोहतरमा इस्मत साहिबा,
    सबसे पहले तो जज़्बात पर पोस्ट की गई ग़ज़ल को पसंद करने के लिए शुक्रिया और रदीफ़ क़ाफ़िया में ग़ज़ल कहने के मुबारकबाद.
    हर लफ़्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
    हालांकि कह रहा था वो हंस कर मज़ाक़ में
    सबसे खूबसूरत शेर लगा.
    जोकर की तर्ह मेरा भी किरदार हो गया
    जग को हंसा रहा था मैं रो कर मज़ाक़ में
    एक बार फिर उम्दा ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद.

    जवाब देंहटाएं
  13. हर लफ़्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
    हालांकि कह रहा था वो हंस कर मज़ाक़ में.

    वाह! क्या बात है.... सचमुच मजाक कभी-कभी गुदगुदी की जगह दर्द का वायस बन जाता है. यदि कहने वाले के भाव को सुननेवाला उसी वेबलेंथ के साथ ग्रहण न कर पाए तो.... अच्छे शेर हुए हैं....अच्छी ग़ज़ल....मुबारक हो.

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  14. जोकर की तर्ह मेरा भी किरदार हो गया
    जग को हंसा रहा था मैं रो कर मज़ाक़ में

    बहुत खूब ...खूबसूरत गज़ल

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  15. हर लफ़्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
    हालांकि कह रहा था वो हंस कर मज़ाक़ में
    bahut sundar line

    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
    अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।

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  16. हर लफ़्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
    हालांकि कह रहा था वो हंस कर मज़ाक़ में ..

    सिर्फ ये ही नहीं हर शेर एक दूजे से बढ़ के है ... इस काफिये को बहुत खूबसूरती से संजीदा शेरों में उतारा है आपने ... रोज मर्रा की जुबां में शेर कहने में आपका जवाब नहीं ...

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  17. बहुत इन्तेज़ार था मुझे तुम्हारी इस ग़ज़ल का. हर शेर जीवन और सामाजिक ढांचे की सच्चाई को बयां कर रहा है.
    इक झूट सब के बीच वो इस तर्ह कह गया
    फिर जाने कितने टूट गए घर मज़ाक़ में
    बहुत कड़वा सच है ये.
    हर लफ़्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
    हालांकि कह रहा था वो हंस कर मज़ाक़ में
    ज़िंदगी की इस सच्चाई को तो हम सब अक्सर ही झेलते हैं.
    यहां ये दो शेर रेखांकित करने का मतलब ये नहीं कि बाक़ी शेर इनसे कमज़ोर हैं.
    बधाई.

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  18. अपनी ज़ुबाँ पे इतना तो क़ाबू रखो ’शेफ़ा
    तोड़े न दिल चलाए न ख़ंजर मज़ाक़ में
    bahot achcha likha hai.....

    जवाब देंहटाएं
  19. Aadaab!!
    Maine Shahid Mirza sahab ki ghazal bhi padhi hai , aur aapki ghazal bhi utni hi achhi lagi. Badhayi!!
    Ye sher khas taur se achha laga..
    इक झूट सब के बीच वो इस तर्ह कह गया
    फिर जाने कितने टूट गए घर मज़ाक़ में

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  20. अपनी ज़ुबाँ पे इतना तो क़ाबू रखो ’शेफ़ा
    तोड़े न दिल चलाए न ख़ंजर मज़ाक़ में...
    ...sach majak mein dil tot jaay yah kadapi uchit nahi.. har samay majak achha nahi ho sakta hai...
    bahut hi badiya prastuti..
    Haardik shubhkamnayen!

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  21. पूरी ग़ज़ल उम्दा है. किसी एक शेर की तारीफ करना बेईमानी होगी... गज़ब है रदीफ़ और काफिया भी क्या खूब है.....
    मतला ही इतना जानदार उठाया है कि बस.....

    रिश्ते भी वो बनाए है अक्सर मज़ाक़ में
    उन को मगर निभाएगा क्योंकर मज़ाक़ में

    ......ये शेर तो इस ग़ज़ल का नगीना है...!!!!

    हर लफ़्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
    हालांकि कह रहा था वो हंस कर मज़ाक़ में

    जवाब देंहटाएं
  22. BEHTREEN , LAAJWAB , OR KYA KAHUN...,
    AAP KI NAYI RACHNAO KA PTA CHLTA RAHE ISLIYE FOLLOW KAR RAHA HUN,,,
    JAI HIND JAI BHARAT

    जवाब देंहटाएं
  23. waah... kitana sara sach...
    wo bhi sirf mazaak mein...
    mera pasandeeda...

    इक झूट सब के बीच वो इस तर्ह कह गया
    फिर जाने कितने टूट गए घर मज़ाक़ में
    wakai ham kai baar sochte hi nahi ki hamari baaton ka kisi aur ki zindagee mei kya asar ho skat hai...

    जवाब देंहटाएं
  24. आदरणीया आपा इस्मत ज़ैदी जी
    सादर प्रणाम !

    इस बीच नहीं पढ़ी गई आपकी तमाम रचनाएं पढ़ कर सुख़न के समंदर में नहाता रहा हूं … पिछले घंटे भर से :)

    अच्छी ग़ज़ल है हमेशा की तरह -
    अपनी ज़ुबाँ पे इतना तो क़ाबू रखो ’शेफ़ा
    तोड़े न दिल चलाए न ख़ंजर मज़ाक़ में

    आभार ! बधाई ! मंगलकामनाएं !


    रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  25. अपनी ज़ुबाँ पे इतना तो क़ाबू रखो ’शेफ़ा
    तोड़े न दिल चलाए न ख़ंजर मज़ाक़ में

    वाह , क्या खूब कही , आपने ||
    बेहतरीन ग़ज़ल ||
    हर शेर उम्दा ||

    जवाब देंहटाएं
  26. जनाब
    आप में ग़ज़ल कहने की काबलियत है आप थोड़ा और प्रयास करें !

    रिश्ते बनाए तुमने हैं अक्सर मज़ाक में
    हमने निभाया उनको न दिलबर मज़ाक में

    इक झूठ सब के बीच वो बे-खौफ़ बो गया
    टूटे तमाम देखिए यह घर मजाक में

    हर लफ्ज़ तीर बन के जिगर में उतर गया
    मुम्किन कहा हो उसने यूँ हंसकर मज़ाक में

    किरदार मेरा हो गया जोकर के जैसे अब
    जग को हंसा रहा हूँ मैं रोकर मज़ाक में

    काबू में रख जुबांन को "शेवा "ज़रा तू सोच
    दामन न चाक करदें ये खंज़र मज़ाक में
    आज़र

    जवाब देंहटाएं
  27. आप सभी हज़रात का शुक्रिया ki आप ने अपना कीमती वक़्त दिया aur मेरी हौसला अफजाई की

    आज़र साहब , आप का तहे दिल से शुक्रिया ,,आप ने न सिर्फ़ पढ़ने में अपना वक़्त दिया बल्कि मेरी इस्लाह भी की

    जवाब देंहटाएं
  28. रिश्ते भी वो बनाए है अक्सर मज़ाक़ में
    उन को मगर निभाएगा क्योंकर मज़ाक़ में


    आपा,
    जहां जिंदगी निभानी मुश्किल लग रही हो..वहाँ ये मतला...कितनी सोच में डालता है.
    आप को क्या बतायुं...

    जवाब देंहटाएं

ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया