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रविवार, 7 मार्च 2010


              एक आत्मा की फ़रियाद 
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ये कविता उस स्थिति को ध्यान में रख कर लिखी गई जब एक अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट ये तय कर देती है कि आने वाले जीवन को 
कन्या होने के नाते जीने का अधिकार ही नहीं है ,
ईश्वर ने एक शरीर में आत्मा डाली और उसे बताया कि तुम कन्या बन कर संसार में जाओगी ,ये सुन कर वो आत्मा सिहर उठती है 
और ईश्वर से जो फ़रियाद करती है वो कविता के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है,


कविता :   

हे भगवन ये क्या कहते हो?
क्या धरती पर जाना होगा?
नहीं नहीं मुझ को मत भेजो 
जाते ही तो आना होगा

हे ईश्वर मैं तो हूं कन्या
जिस भी कुल में मैं जाऊंगी
पता नहीं वो कैसा होगा 
जीवित क्या मैं रह पाऊंगी?

ऐसा ना हो पापा मम्मी 
दे न सकें मुझ को सम्मान
भैया का तो होवे आदर 
मिले मुझे ना जीवन दान

मालिक मुझे तो डर लगता है
जीवन शायद प्यार को तरसे
शिक्षा से वंचित रह जाऊं
कह न सकूं कुछ भी मैं डर से 

माना सब कुछ मिल भी गया तो 
भाई बहन का आदर मान
मां पापा का प्यार दुलार
और ज्ञान का भी वरदान

तो भी क्या मैं बच पाऊंगी?
पति के घर में तेल भी होगा 
माचिस की तीली भी होगी
हाथ मेरा पर ख़ाली होगा

तुम तो विघ्नविनाशक हो 
ज़ुल्मों के संहारक हो 
अपनी धरती के लोगों को 
मानवता का पाठ पढ़ाओ

फिर मैं धरती पर जाऊंगी
ज़हरा ,मरियम और सीता के 
पावन पदचिन्हों पर चल कर
इक दिन सब को दिखलाऊंगी

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15 टिप्‍पणियां:

  1. इस्मत बहुत सुन्दर शब्दों में कन्या भ्रूण की चिन्ता ज़ाहिर की है तुमने. देश कहां से कहां पहुंच गया लेकिन बेटे-बेटी के अन्तर को नहीं मिटा पा रहे हम.इसका सीधा सा मतलब है, कि दोनों के प्रति समान व्यवहार अपनाने वाले लोगों की आज भी कमी है, वरना भ्रूण-हत्या जैसे मामले थम गये होते. आज भी स्त्रियों की स्थिति क्या हो, इस पर पुरुष ही विमर्श करते हैं और तय भी करते हैं. ये सिलसिला कब खत्म होगा पता नहीं, बस एक आशावादी सोच रखें हम, इस कविता की तरह .

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  2. मोहतरमा इस्मत साहिबा, आदाब
    ......जीवन शायद प्यार को तरसे.....
    इस जीवन शब्द के साथ पूरी व्यथा व्यक्त हो रही है...
    तुम तो विघ्न विनाशक हो ज़ुल्मों के संहारक हो...
    अपनी धरती के लोगों को... मानवता का पाठ पढ़ाओ...

    फिर मैं धरती पर जाऊंगी..
    ज़हरा, मरियम और सीता के पावन पदचिन्हों पर
    चल कर इक दिन सब को दिखलाऊंगी....
    रचना प्रभावशाली है..अपना असर छोड़ती है
    क्योंकि समाज का नज़रिया...शक्ति के समक्ष नतमस्तक होने का रहा है..हर काल में
    जहां तक मेरा अपना नज़रिया है...आम तौर पर नारी शारीरिक रूप में पुरूष की अपेक्षा कमज़ोर है.. यही उसकी सबसे बड़ी बाधा है...इसी कारण उसे जीवन में पिता, भाई, पति, पुत्र जैसे रिश्तों के सामने चाहा अनचाहा समर्पण या समझौता करना पड़ता है.. ये पुरूषों पर निर्भर है कि इसको सकारात्मक या नकारात्मक किस रूप में लें...
    महिला दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं.

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  3. aisa hota hai ye pakshik sach hai...........
    agyanta dahejpratha.ka hee nateeja hai.........
    hamaree ary sanskruti ne to hamesha hee stree ko barabaree ka darja diya hai .Baad me paristhiya badalee bahut hamle bharat par samay samay par hote rahe naaree kee suraksha kee drushtee se parda pratha aaee.south bacha raha georaphical condition kee vajah se.........
    paristhitiyo ke sath kash manav kee soch bhee badal jatee..........
    rachana dil ko choo gayee isee se itnee lambee tippanee.............

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  4. महिला दिवस पर एक सामयिक कविता !

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  5. परिवार में सबको, सबसे अधिक प्यार करने वाली सिर्फ बेटी होती है , मगर भिन्न भिन्न कारण बता कर समाज उसके आगे जन्म से ही रोड़े पैदा करता रहता है ! और यह बेचारी पूरे जीवन अपने आँख में आंसू लिए अपने घोंसले के निर्माण में लगी रहती है ! और क्या कहूं ..

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  6. तुम तो विघ्नविनाशक हो
    ज़ुल्मों के संहारक हो
    अपनी धरती के लोगों को
    मानवता का पाठ पढ़ाओ


    फिर मैं धरती पर जाऊंगी
    ज़हरा ,मरियम और सीता के
    पावन पदचिन्हों पर चल कर
    इक दिन सब को दिखलाऊंगी
    bahut hi sundar rachna ,hum shrishti ke rachiyata ,hum bhi bankar rah gaye aznabee ,wah re bhagyavidhata ,ye kaisa hai nyaye hame samjh nahi aata ,ek abhishaap se kam nahi ye lagta .mahila divas ki badhai bahut hi ,

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  7. "ईश्वर ने कहा तुम कन्या बन कर
    संसार में जाओगी...
    ये सुन कर वो आत्मा सिहर उठती है ....."

    काव्य-रचना से पहले लिख दिए गए
    ये chnd अलफ़ाज़ ही किसी भी मानव-मन को झकजोर देने के लिए काफी हैं ......
    विडम्बना ये है क हम सब उसी समाज का हिस्सा हैं जहां ऐसे घिनौने कृत्य हमारे सामने ही हो रहे हैं
    इतनी उन्नति कर लेने के बाद भी,,,
    इतना सभ्य कहलाये जाने के बाद भी
    नैतिकता का ये गिरता हुआ स्तर हम सब के लिए बड़ी शर्म की बात है
    आपने अपनी इस मार्मिक कविता के माध्यम से आज के तरक्की-पसंद इंसान को आईना दिखलाने का सफल प्रयास किया है...
    हर बंद में आपकी संवेदनाएं मुखरित हो रही हैं काव्य को आम बात-चीत की भाषा में कह कर आपने हर पढने वाले के ह्रदय में,,
    मष्तिष्क में दस्तक दी है
    जो आपकी रचना-कुशलता को
    प्रमाणित करता है,, रेखांकित करता है
    माँ सरस्वती जी का पावन आशीर्वाद आपके साथ रहे... यही कामना करता हूँ .

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  8. पढ़ कर देर तक सोचती रही, जाने कितने ही विचार आँखों के आगे से गुजरते गए और मैं अपनी आँखों की कोर को पोंछती रही

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  9. इस्मत,
    माता की कुक्षि में आनेवाली कन्या की चिंता और पीड़ा को तुमने शब्द दिए हैं, जो व्यथित करनेवाले हैं ! इस पुरुष-प्रधान समाज में उन्हीं का वर्चस्व है, वे ही नियंता बन बैठे है.... लेकिन वे भूल जाते हैं कि उनकी पूरी सत्ता उन्हीं माताओं से कायम है !
    आनेवाली चिड़िया को जीवन का खुला आकाश न देने की भूल आज भी हमारे समाज में दुहराई जा रही है--यह खेद-प्रकाश तुम्हारी कविता में मार्मिक ढंग से हुआ है !
    सप्रीत--आ.

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  10. फिर मैं धरती पर जाऊंगी
    ज़हरा ,मरियम और सीता के
    पावन पदचिन्हों पर चल कर
    इक दिन सब को दिखलाऊंगी

    Ismat ji bahut sunder shabdon mein aurat ke mahatv ko bataya hai
    aurat sahansheel hai seeta hai mariyan hai mother hai sister hai ....

    uski hatya gunaah hai ....
    samay badal raha hai lekin puri tarah soch badle iska intezaar hai

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  11. बेहतरीन लिखा आपने ...खूबसूरत रचना !!
    ______________

    "पाखी की दुनिया" में देखिये "आपका बचा खाना किसी बच्चे की जिंदगी है".

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  12. एक अंतराल के बाद आ पा रहा हूँ...

    कई बार कुछ रचनाओं पर कुछ लिख-कह पाना मुश्किल हो जाता है। ऐसी ये रचना आपकी। दो बहनों के बाद अकेला भाई हूं घर में। कई सारे सत्य समेते हुये ये कविता आपकी...

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  13. बेहतरीन लिखा आपने ...खूबसूरत रचना

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  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया