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रविवार, 10 जनवरी 2010

इस ग़ज़ल के साथ हाज़िर ए  ख़िदमत हूँ अगर आप लोगों को पसंद आई तो समझूँगी मेरी मेहनत कामयाब हो गयी 
ग़ज़ल
__________________
सुकूँ की ,प्यार की,दोनों जहाँ की बात करें 
क़वी इरादों की पीरो जवाँ की बात करें 
उलट दें आज बिसातें सभी सियासत की 
मफादे मुल्क की इल्मे नेहाँ की बात करें 
हम अपने मुल्क के बच्चों से चंद सा'अत ही 
वतन से प्यार की अम्नो अमाँ की बात करें 
सबक़ हम उन को दें तहज़ीब का ,शराफ़त का,
शिकायतों की न सूदो ज़ियाँ की बात करें 
जेहादे नफ्स से बढ़कर कोई जेहाद नहीं
न ख़ाको खूँ की न तीरो कमां की बात का
           
क़वी =मज़बूत ,                  सा'अत = क्षण 
पीर =वृद्ध                             
मफ़ाद = फ़ायेदा                सूदो ज़ियाँ =लाभ हानि
नेहाँ  =छिपा हुआ                  तहज़ीब = संस्कृति 





12 टिप्‍पणियां:

  1. मोहतरमा इस्मत साहिबा, आदाब
    एक नसीहत, एक ज़रूरत, एक हक़ीक़त
    यही सब पेश किया है आपने ग़ज़ल में
    क्या खूब मतला है-
    सुकूँ की ,प्यार की,दोनों जहाँ की बात करें
    क़वी इरादों की पीरो जवाँ की बात करें
    ये शेर हुब्बल वतनी का सबूत-
    उलट दें आज बिसातें सभी सियासत की
    मफादे मुल्क की इल्मे नेहाँ की बात करें
    बच्चों को संस्कार के लिये ये तो होना ही चाहिये-
    हम अपने मुल्क के बच्चों से चंद सा'अत ही
    वतन से प्यार की अम्नो अमाँ की बात करें
    और मक़ता-
    जेहादे नफ्स से बढ़कर कोई जेहाद नहीं
    न ख़ाको खूँ की न तीरो कमां की बात करें
    अमन-ओ-अमां का इससे बेहतर क्या पैगाम हो सकता है
    मुबारकबाद
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  2. उलट दें आज बिसातें सभी सियासत की
    मफादे मुल्क की इल्मे नेहाँ की बात करें

    काश की इन तमाम सलाहों इरादों को अमली जामा पहनाया जा सकता, तो वतन कितने सुकून में होता. सुन्दर गज़ल. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. अमन और प्रेम का संदेश देती हुई यह गजल बहुत ही सहजता से कही गई है । लय में कहीं भी रुकावट महसूस नहीं होती ।

    बच्‍चों को यह पैगाम देना बहुत जरूरी है । बहुत ही सुंदर बात कही है आपने ।

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  4. From: muflis dk
    To: Ismat Zaidi
    Sent: Wed, 13 January, 2010 6:34:16 PM
    Subject: Re:

    "उलट दें आज बिसातें सभी सियासत की
    मफादे मुल्क की इल्मे नेहाँ की बात करें"

    वाह ...
    एक गरजता हुआ कामयाब शेर
    तेवर, ख़ुद अपनी बात कह रहे हैं...
    और
    "सबक़ हम उन को दें तहज़ीब का ,शराफ़त का,
    शिकायतों की, न सूदो ज़ियाँ की बात करें"
    बिलकुल दुरुस्त फरमाया है....
    आज ऐसी ही ज़रुरत है ...
    नई नस्ल की राहनुमाई होती रहनी चाहिए

    ग़ज़ल का लहजा रवायती होते हुए भी
    जिद्दत की सारी शर्तें निभा दी गयी हैं
    और यही इम्तेज़ाज इस बात की तस्दीक़ करता है कि
    ये तस्नीफ़ "इस्मत" ज़ैदी की क़लम से ही उतरी है
    मुबारकबाद कुबूल फरमाएं


    (bahut koshish kee, lekin blog pr
    ise paste nahi kr paaya,,,
    kayaa aap zehmat farmaaeiNgiii...!!)

    'muflis'

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  5. **bahut bahut shukriya shahid sahab
    **vandana ji
    **arkjesh ji aur
    ** muflis sahab
    aap logon ki ye tippaniyan mere liye kisi khazane se kam nahin hain ap sab ka aabhar prakat karti hoon ki ap log mere blog par aye aur meri hausla afzai ki

    जवाब देंहटाएं
  6. हम अपने मुल्क के बच्चों से चंद सा'अत ही
    वतन से प्यार की अम्नो अमाँ की बात करें


    ahaaaaaaa kya kahti hai aap Ismata ji

    सबक़ हम उन को दें तहज़ीब का ,शराफ़त का,
    शिकायतों की न सूदो ज़ियाँ की बात करें
    जेहादे नफ्स से बढ़कर कोई जेहाद नहीं
    न ख़ाको खूँ की न तीरो कमां की बात का

    kamaal ka matla aur uske baad kya khoob gazal
    har sher shaandaar
    msg deta hua

    जवाब देंहटाएं
  7. " जिहादे-नफस से बढकर कोई जिहाद नहीं", आपने शायरी में कमाल के साथ अपने इल्म, फहम, दानिश, सलीके सभी का भरपूर मुजाहिरा तो किया ही, हम जैसों को तो मुंह छुपाने की राह दिखा दी है. माशा अल्लाह, आपका कलम तो शायरी, फलसफा, मजहब, इंसानियत, सारी चीजें बैक वक्त रच रहा है. ये तरक्की का सफर जारी रहे, आमीन.

    जवाब देंहटाएं
  8. shukriya shraddha ji ,
    shukriya sarwat sahab ,
    aap log is blog par tashreef laye yahi mere liye hausla afzai ka baa'is hai .

    जवाब देंहटाएं
  9. उलट दें आज बिसातें सभी सियासत की
    मफादे मुल्क की इल्मे नेहाँ की बात करें
    aapka to jawab nahi ,mere paas shabd nahi ,kya kahoon ,bahut pasand aai ,

    जवाब देंहटाएं
  10. जेहादे नफ्स से बढ़कर कोई जेहाद नहीं
    न ख़ाको खूँ की न तीरो कमां की बात करें

    वाह इस्मत जी वाह...बेमिसाल ग़ज़ल कही है आपने...इसी ज़मीन पर अपनी ग़ज़ल के चंद अशआर पेश कर रहा हूँ जो बहुत पहले ब्लॉग पर आई थी पता नहीं आपकी नज़रों से गुजरी या नहीं बहर हाल एक बार फिर से मुलाहिजा फरमाइए...:
    तीर खंजर की ना अब तलवार की बातें करें
    जिन्दगी में आइये बस प्यार की बातें करें

    टूटते रिश्तों के कारण जो बिखरता जा रहा
    अब बचाने को उसी घर बार की बातें करें

    थक चुके हैं हम बढ़ा कर यार दिल की दूरियां
    छोड़ कर तकरार अब मनुहार की बातें करें

    दौड़ते फिरते रहें पर ये ज़रुरी है कभी
    बैठ कर कुछ गीत की झंकार की बातें करें

    तितलियों की बात हो या फिर गुलों की बात हो
    क्या जरुरी है कि हरदम खार की बातें करें

    कोइ समझा ही नहीं फितरत यहां इन्सान की
    घाव जो देते वही उपचार की बातें करें

    काश 'नीरज' हो हमारा भी जिगर इतना बड़ा
    जेब खाली हो मगर सत्कार की बातें करें

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत अच्छे मन की बातें हैं। आमीन!

    जवाब देंहटाएं
  12. हम अपने मुल्क के बच्चों से चंद सा'अत ही
    वतन से प्यार की अम्नो अमाँ की बात करें
    wah bahut hi achchhi gazal hai. har sher ek paigam deta hua....mubaraq ho

    जवाब देंहटाएं

ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया