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मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

     एक कविता वीरों के नाम
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आज संसद में बड़ी शान से जो बैठे हैं
लेके चेहरों पे हंसी और चमक बैठे हैं
आज वे भूल गए जबकि हुआ था हमला
आज वे भूल गए कैसे बची जाँ उनकी
आज वे भूल गए घुस गए होते उस दिन
लेके हथियारों का अंबार अगर आतंकी

न बचा होता कोई नामो निशाँ भी उनका
आज बाक़ी न बची होती ये चेहरों पे हंसी
पायी उन वीरों ने जब वीरगति सब थे दुखी
आज ये याद नहीं नाम थे क्या क्या उनके
उनके बच्चों का नहीं कोई सहारा बाक़ी
बूढ़े माँ बाप की आँखों में है दरिया बाक़ी
आज इतना भी नहीं वक़्त कि फूल उन पे चढ़ाएं
आज इतना भी नहीं वक़्त कि हम मौन रखें
गर ये बर्ताव रहा देश के नेताओं का
गर ये बर्ताव रहा देश के दिलवालों का
फिर कभी देश के बच्चों से न आशा रखना
क्योंकि नेता  तो दिखायेंगे तमाशा अपना
फिर हमें वीर नहीं कोई बचा पायेगा
हम को तो स्वार्थ का दानव ही निगल जायेगा
आत्मा अपनी जगाने की ज़रुरत है हमें
फूल आदर के चढ़ाने की ज़रुरत है हमें

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अभी कल ही एक ग़ज़ल ब्लॉग पर लिखी गयी है लेकिन आज अगर ये न लिखी जाती तो समसामयिक न रह जाती ,अभी १३ दिसम्बर को गुज़रे दो ही दिन हुए हैं ,यादें ताज़ा हो गयी हैं .





9 टिप्‍पणियां:

  1. इस्मत साहिबा,
    सियासी रहनुमाओं को उनके हाल पर ही छोड़ देना चाहिये
    अल्लाह इनके दिलों में अपनी ज़िम्मेदारी का जज्बा पैदा करे..
    देश के वीर जवानों को लाखों सलाम
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  2. बढ़िया है. बहुत बढ़िया. मैं भी "नाइस" लिखूं क्या? सुमन जी की तरह?

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  3. सही बात है । समसामयिक कविता । शहीदों के परिवारजनों का संघर्ष शुरू हो जाता है उनके जाने के बाद ।

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  4. जिनके दिल में देशभक्ति या शहीदों के लिए सम्मान नहीं है उन्हें समझाने-बुझाने,उपदेश देने, कविता लिखने-सुनाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. आपकी यह नज़्म बिला शक-ओ-शुब्हे के, बहुत पुरअसर है. आपकी मेहनत काबिल-ए-दाद है. एक बात बेहद साफगोई से कहना चाहता हूँ, बहुत ही कम नारी लेखिकाओं के ख़यालात आप जैसे होते हैं. ७०% से भी ज्यादा "बालम आन बसो मोरे मन में..."की तर्ज़ पर ही चलती नजर आती हैं. लेकिन कुछ ऐसी हैं जिनकी पैनी नजर हालात-ए-हाज़िरा पर है, वे अच्छा लिख भी रही हैं, सम्मान पा रही हैं. आपका शुमार भी उनमें किया जा सकता है.....!

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  5. sarwat sahab bahut bahut shukriya ,nawazish hai aapki ,warna mujhe to aap jaise logon se bahut kuchh seekhna hai abhi.

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  6. rachna to sarahniye hai hi magar iske alawa ek baat ,nahi do baat kahni hai ,pahli kahani ki bahut taarif suni hai kya hame padhne ka sukh milega ?doosri itni bhali surat ko phool ke maadhyam se kyo darshaya ,main to dekhi hoon auro ko bhi dekhne ka mauka do ,tum vandana ki aziz ho ,isliye mujhe bhi priy ho utni hi ,isliye ye baate haq se kah di ,aur raasta to mere paas hai nahi .

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  7. jyoti ji ,ajkal kavita ka hi man hai kahani phir kabhi
    ap vandana ke maadhyam se mujhe mila hua nayab tohfa hain ap ko aisi baten karne ka haq hai

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ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया