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बुधवार, 9 दिसंबर 2009

एक ग़ज़ल पेशे ख़िदमत है .....................
ग़ज़ल
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आज का तिफ़्ल ओ जवाँ ही और है
ख्वाहिशों   की कहकशां ही और है

उन लबों पर मुस्कराहट है तो क्या
दिल में इक दर्दे नेहाँ ही और है

बेच कर आया हूँ मैं अपना ज़मीर
आज एहसासे ज़ियाँ ही और है

मैं तो जाहिल था, मुझे समझा गया
उस का अंदाज़े बयां ही और है

दिल की आँखों से वो सब देखा किया
उस का नाबीना जहाँ ही और है

शह्र के पुख्ता मकाँ हैं और घुटन
गाँव का कच्चा मकाँ ही और है

बिक गयी वो हिर्स के बाज़ार में 
मुफलिसी की ये फ़ुगां ही और है

जिस की स्याही में हो रंगे दुश्मनी
चार जानिब वो धुवां  ही और है

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तिफ़्ल  =बच्चा , कहकशां =मिल्की वे , नेहाँ =छिपा हुआ , ज़ियाँ=हानि , नाबीना =अँधा (अँधेरी दुनिया )
पुख्ता=पक्के , हिर्स =लालच , फ़ुगां =क्रंदन ,स्याही =कालिख ,जानिब =तरफ़ ,ज़मीर =अंतरात्मा .





13 टिप्‍पणियां:

  1. मोहतरमा इस्मत साहिबा, आदाब
    ये ग़ज़ल बहुत पुख्ता है..
    खास तौर पर ये दोनों शेर दिल को छू गये

    उन लबों पर मुस्कराहट है तो क्या
    दिल में इक दर्दे नेहाँ ही और है

    बेच कर आया हूँ मैं अपना ज़मीर
    आज एहसासे ज़ियाँ ही और है
    मुबारकबाद
    इत्तेफाक से इसी वक्त
    जज्बात पर नई ग़ज़ल पोस्ट की गयी है
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  2. मैं तो जाहिल था, मुझे समझा गया
    उस का अंदाज़े बयां ही और है

    वाह वाह बहूत खूब कहा है ।

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  3. बेच कर आया हूँ मैं अपना ज़मीर
    आज एहसासे ज़ियाँ ही और है
    बहुत खूब इस्मत. बस लिखे जाओ इसी तरह..

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  4. बहुत ही उम्दा गजल कही है।
    वैसे आप अदर वाइज़ न लें तो एक सलाह दूंगी, अगर आसान लफ्ज़ों का इस्तेमाल करें, तो और अच्छा हो।
    ------------------
    शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
    नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।

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  5. arshia ji shukriya ,aap ki salah sar aankhon par lekin isiliye main mushkil alfaz ke maani likh deti hoon .

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  6. Wah Bajjo, maza aa gaya. Maine aaj pahli baar sukoon se aapaka kalam parha.Gaon ka kachcha makaan hi aur hai, so true. Aap sab kajgaon jaa rahe hain, masha allah, humara dil bhi aapke saath hai.

    Noorma

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  7. noorma jiyo khush raho tum sab,
    ham log tum logon ke jazbat samajhte hain.tum ne doosra blog nahin dekha shayad achchha lage

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  8. शह्र के पुख्ता मकाँ हैं और घुटन
    गाँव का कच्चा मकाँ ही और है

    इस सच्चे शेर पर मेरा सलाम कबूल करें
    नीरज

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  9. मैं तो जाहिल था, मुझे समझा गया
    उस का अंदाज़े बयां ही और है

    ये वाला शेर बहुत अच्छा लगा। बाकी भी अच्छे हैं लेकिन ये वाला जमा जरा ज्यादा। :)

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ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया