एक फ़िलबदीह (आशु) ग़ज़ल
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दिल की बस्ती उजड़ गई है अभी
ज़ख़्मी ज़ख़ी सी ज़िंदगी है अभी
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उस की ज़िंदादिली से लगता है
कोई मुश्किल नहीं पड़ी है अभी
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मेरी हालत प मुस्कुराता है
उम्र तेरी कहाँ कटी है अभी ?
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शाम के साए हो गए गहरे
दर प इक शम’अ सी जली है अभी
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उस के चेहरे प दास्ताँ पढ़ लूँ
इतनी आँखों में रौशनी है अभी
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ऐ ’शेफ़ा’ किस ने जंग छेड़ी है?
तेरी तो सब से दोस्ती है अभी
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंशाम के साए हो गए गहरे
दर प इक शम’अ सी जली है अभी .....वाह!!!
अनु
ख़ुश रहो अनु :)
हटाएंउस के चेहरे प दास्ताँ पढ़ लूँ
जवाब देंहटाएंइतनी आँखों में रौशनी है अभी
बहुत बढ़िया मैम
शुक्रिया वंदना जी !
हटाएंउस के चेहरे प दास्ताँ पढ़ लूँ
जवाब देंहटाएंइतनी आँखों में रौशनी है अभी
क्या कहूं इस्मत...बहुत शानदार ग़ज़ल है बस्स.
तुम्हारी ही हौसला अफ़ज़ाई है
हटाएंशाम के साए हो गए गहरे
जवाब देंहटाएंदर प इक शम’अ सी जली है अभी.... :)
ख़ुश रहो अपर्णा
हटाएंइसी बहर में एक ग़ज़ल मुझे पसन्द है.. लेकिन अभी उसका ज़िक्र नहीं.. आप बुरा मान जाएंगी, इस्मत आपी! बस एक बात है, आपके अशाअर एक ऐसी सोच पैदा करते हैं दिमाग में जो हौसला देते हैं जो ज़िन्दगी का रुख़ बदल देते हैं.
जवाब देंहटाएंउस की ज़िंदादिली से लगता है
कोई मुश्किल नहीं पड़ी है अभी!
कमाल का शेर है और कितनी गहरी बात कहता है, साथ ही एक अन्देशा भी दिखाता है छिपाकर! और ये शेर
मेरी हालत प मुस्कुराता है
उम्र तेरी कहाँ कटी है अभी?
आपके तजुर्बात की तर्जुमानी करता है!! बेहतरीन ग़ज़ल!!
बहुत शुक्रिया सलिल जी :)
हटाएंसालगिरह बहुत बहुत मुबारक हो
उस की ज़िंदादिली से लगता है
जवाब देंहटाएंकोई मुश्किल नहीं पड़ी है अभी
बहुत खूब !!
शुक्र्गुज़ार हूँ सतीश जी
हटाएंआशु गजाल और इतने लाजवाब शेर ..
जवाब देंहटाएंआपस ही कोई कह सकता है ..
बेहद शुक्रिया दिगंबर जी
हटाएंबहुत पसंद आई ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया निहार रंजन जी
हटाएंशाम के साए हो गए गहरे
जवाब देंहटाएं............. ग़ज़ल पसंद आई