लीजिये ’चराग़’ रदीफ़ के साथ एक ग़ज़ल कहने और आप तक पहुंचाने की हिम्मत कर रही हूं
और
अब नतीजे का इंतेज़ार है
_____________________________________________________________________
ग़ज़ल
___________
आँधियाँ ज़ुल्म जो ढाएं तो बिफरता है चराग़
वरना उफ़रीत को ज़ुलमत के निगलता है चराग़
___
आग में तप के सर ए शाम निखरता है चराग़
___
रात जब नींद की आग़ोश में गुम होती है
कितनी ख़ामोशी से तनहाई में जलता है चराग़
___
हसरतें , ख़्वाहिशें, अरमान बुझे जाते हैं
पर दम ए रुख़सत ए आख़िर को संभलता है चराग़
___
यूँ तो आँधी के मुक़ाबिल भी डटा रहता है
और कभी हल्के से झोंके से बिखरता है चराग़
___
कारनामों से प इन्साँ के दहलता है चराग़
___
ऐ ’शेफ़ा’ सौंप के ख़ुर्शीद को अपनी दुनिया
सुबह की पहली किरन देख के मरता है चराग़
_________________________________________
१-उफ़रीत= राक्षस; २-आग़ोश= गोद; ३- दम ए रुख़सत ए आख़िर= अंतिम समय;
४- ख़ैर मक़दम= स्वागत; ५-ख़ुर्शीद= सूरज
मुबारक हो दी...
जवाब देंहटाएंआप अव्वल नंबरों से पास हुईं :-)
सच्ची बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...
रात जब नींद की आग़ोश में गुम होती है
कितनी ख़ामोशी से तनहाई में जलता है चराग़
बेहतरीन शेर.
सादर
अनु
बहुत बहुत शुक्रिया अनु
हटाएंज़बरदस्त ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अमित जी
हटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल कही दी ग़ज़ल के बारे में कुछ कहूं तो सूरज को चिराग दिखाना टाइप होगा
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आशीष
हटाएंउल्फ़त की राह में ..कुर्बानी की मिसाल
जवाब देंहटाएंतन्हाई में जलता आपका यह चराग़.......
स्वस्थ रहें !
धन्यवाद
हटाएंरात जब नींद की आग़ोश में गुम होती है
जवाब देंहटाएंकितनी ख़ामोशी से तनहाई में जलता है चराग़
क्या बात...बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल, इस्मत ...जरा जल्दी जल्दी लिखा करो :)
शुक्रिया रश्मि
हटाएंतुम्हारे मश्वरे पर अमल करने की कोशिश करूंगी :)
यूँ तो आँधी के मुक़ाबिल भी डटा रहता है
जवाब देंहटाएंऔर कभी हल्के से झोंके से बिखरता है चराग़
क्या बात...क्या बात...
अब हम कुछ और नहीं लिखेंगे भाई. थोड़ा कम अच्छा लिखा करो, थक गये तारीफ़ कर-कर के :) :)
तो अब तुम बुराई बताना शुरू करो वन्दना :)
हटाएंतुम खराब लिखोगी, तब ना बुराई करेंगे हम?? :) :) :) और तुम अच्छा लिखने से बाज न आओगी :)
हटाएंलाजवाब लिखी हैं आंटी!
जवाब देंहटाएंसादर
ख़ुश रहो यश्वंत बेटा
हटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल ....माशाल्ला चिराग तो चिराग ही है ....बखूबी जल रहा है ....और दिल को ,दुनिया को रौशनी भी दे रहा है ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुपमा जी
हटाएंरात जब नींद की आग़ोश में गुम होती है
जवाब देंहटाएंकितनी ख़ामोशी से तनहाई में जलता है चराग़ ... किसी लोरी की तरह
एक प्रहरी की तरह भी तो रश्मि
हटाएंवाह वाह ... बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन 'खलनायक' को छोड़ो, असली नायक से मिलो - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शुक्रिया शिवम जी
हटाएंग़ज़ल पर किये गए सभी तब्सिरों से
जवाब देंहटाएंइत्तेफ़ाक़ रखते हुए, बस इतना ही कहता हूँ ......
लफ्ज़ सब खुद ही महकते हैं, निखर जाते हैं
जब भी 'शेफा' की लियाक़त के चमकते हैं चराग़
नवाज़िश है जनाब !
हटाएंवाह वा
जवाब देंहटाएंजिंदाबाद
ख़ुश रहो !
हटाएंवाह वाह वाह !!! शानदार रचना | बहुत सुन्दर | पढ़कर आनंद आया | उर्दू एक कुछ नए अलफ़ाज़ भी सीख लिए | बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
शुक्रगुज़ार हूं तुषार जी
हटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल ....बहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
खूबसूरत ग़ज़ल. सारे शेर बहुत अच्छे लगे.
जवाब देंहटाएंरात जब नींद की आग़ोश में गुम होती है
जवाब देंहटाएंकितनी ख़ामोशी से तनहाई में जलता है चराग़
outstanding sher of outstanding ghazal..... Congrats !!!!!!
रात जब नींद की आग़ोश में गुम होती है
जवाब देंहटाएंकितनी ख़ामोशी से तनहाई में जलता है चराग़
शानदार ग़ज़ल का बेशकीमती शेर .....! जितनी तर्रिफ की जाए उतनी कम।।।।
ख़ैर मक़दम में अँधेरों के वो जल जाता है
जवाब देंहटाएंआग में तप के सर ए शाम निखरता है चराग़ ...
हर शेर दिल मिएँ चराग जला रहा है ... पर ये शेर बहुत ही लाजवाब लगा ... खूबसूरत गज़ल .. जिंदाबाद ...
bahut hi khoobsoorat aur shandaar
जवाब देंहटाएं