आज क़रीब-क़रीब २ माह के बाद एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ ब्लॉग का रुख़ कर पाई हूँ
हालाँकि एक ख़ौफ़ भी है कि ’शेफ़ा’ कजगाँवी का वजूद ब्लॉग की दुनिया में बाक़ी है
या इतने दिनों की ग़ैर हाज़िरी ने ख़ुश्क पत्ते की तरह ब्लॉग-दोस्तों के ज़ह्नों से
कहीं दूर कर दिया
ग़ज़ल
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जिन के फ़ुटपाथ पे घर, पाओं में छाले होंगे
उन के ज़ह्नों में न मस्जिद , न शिवाले होंगे
उन के ज़ह्नों में न मस्जिद , न शिवाले होंगे
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भूके बच्चों की उमीदें न शिकस्ता हो जाएं
माँ ने कुछ अश्क भी पानी में उबाले होंगे
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मैं बताना भी अगर चाहूं ज़माने के सितम
सामने तेरे ज़ुबां पर मेरी ताले होंगे
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जंग पर जाते हुए बेटे की माँ से पूछो
कैसे जज़्बात के तूफ़ान संभाले होंगे
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तेरे लश्कर में कोई हो तो बुला ले उस को
मेरा दावा है कि इस सिम्त जियाले होंगे
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कुछ न साहिल पे मिलेगा कि ’शेफ़ा’ उस ने तो
दुर ए यकता के लिये बह्र खंगाले होंगी
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शिवाले= मंदिर; शिकस्ता= टूट्ना ; दुर= मोती ;
दुर ए यकता = विशेष मोती ; बह्र= समुद्र
जंग पर जाते हुए बेटे की माँ से पूछो
जवाब देंहटाएंकैसे जज़्बात के तूफ़ान संभाले होंगे...
कुछ न साहिल पे मिलेगा कि ’शेफ़ा’ उस ने तो
दुर ए यकता के लिये बह्र खंगाले होंगी....
बहुत गहन और ...बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
शुभकामनायें ..अब आगे जल्दी जल्दी लिखें ....
बहुत बहुत शुक्रिया अनुपमा जी
हटाएंभूके बच्चों की उमीदें न शिकस्ता हो जाएं
जवाब देंहटाएंमाँ ने कुछ अश्क भी पानी में उबाले होंगे
क्या कहूं इस्मत? ऐसे शेर तो मुझे लगता है केवल पढने और महसूस करने के लिये होते हैं....
कुछ न साहिल पे मिलेगा कि ’शेफ़ा’ उस ने तो
दुर ए यकता के लिये बह्र खंगाले होंगी
अनूठा शेर है ये भी. जितनी बार पढो, उतनी बार अर्थ नये सिरे से सामने... सच्ची दुर ए यकता शेर है :)
धन्यवाद वन्दना तुम हो न मेरी दुर ए यकता दुनिया के समंदर को खंगाल के निकाला है तुम्हें
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुपमा जी
जवाब देंहटाएंजी कोशिश करूँगी कि जल्दी जल्दी लिख सकूँ
वाह...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल इस्मत दी.....
चाहने वाले आस लगाए बैठे थे...देखिये मोहब्बत ज़रा कम न हुई.
:-)
अनु
शुक्रिया अनु ,तुम सब तो हौस्ला हो मेरे लिखने के लिये
जवाब देंहटाएंउन के ज़ह्नों में न मस्जिद , न शिवाले होंगे
जवाब देंहटाएंबाद मुद्दत के जिन हाथों में निवाले होंगे
आपकी गज़ल का इंतज़ार हमेशा रहता है...
बहुत बहुत शुक्रिया सतीश जी
हटाएंलाजवाब गजल लिखी है आंटी।
जवाब देंहटाएंएक एक शेर बेहतरीन है।
सादर
ख़ुश रहो यशवंत
हटाएंशुक्रिया
भूके बच्चों की उमीदें न शिकस्ता हो जाएं
जवाब देंहटाएंमाँ ने कुछ अश्क भी पानी में उबाले होंगे ...
आपकी गज़लों का तो इंतज़ार रहता है ... आप को भूलना आसान कहाँ ...
इतने लाजवाब ओर सच शेर बहुत कम मिलते हैं ...
पता नहीं क्यों पर हकीकत के उस गाने की याद हो आई ... हो के मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा ...
बहुत बहुत शुक्रिया दिगंबर जी
हटाएंसंवेदनाओं से भरी रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रवीण जी
हटाएंbahut sundar ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शारदा जी
हटाएं
जवाब देंहटाएंदिनांक 28 /02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत बहुत शुक्रिया यशवंत
हटाएंऐसे कैसे "शेफ़ा कजगाँवी: को कोई भुला सकता है . मैंने तो उसे अपने माथे पर सजा रखा है . बाकि ग़ज़ल के बारे में मै छोटे मुंह बड़ी बात क्यों करूँ.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आशीष कि तुम ने ’शेफ़ा’ का शेर अपने ब्लॉग के मस्तक पर सजाया
जवाब देंहटाएंजंग पर जाते हुए बेटे की माँ से पूछो
कैसे जज़्बात के तूफ़ान संभाले होंगे
लाजवाब !
पूरी ग़ज़ल शानदार और जानदार !
आदरणीया दीदी इस्मत ज़ैदी जी
बीसियों दफ़ा नई ग़ज़ल की उम्मीद में आपके यहां हो'कर गए हैं ...
:)
संपूर्ण बसंत ऋतु सहित
सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
मुआफ़ी चाहती हूँ राजेंद्र जी कि आप को यहाँ आ कर वपस लौटना पड़ा
हटाएंऔर शुक्रिया अदा करती हूँ कि आप सब ने ’शेफ़ा’ को याद रखा
आप लोगों की यही हौसला अफ़्ज़ाई लेखन-प्रवाह को थमने नहीं देती
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआप भी पधारें
ये रिश्ते ...
शुक्रिया प्रतिभा जी
हटाएंउन के ज़ह्नों में न मस्जिद , न शिवाले होंगे
जवाब देंहटाएंबाद मुद्दत के जिन हाथों में निवाले होंगे---बहुत बढ़िया गज़ल, दिल में उतर गया
बहुत शुक्रिया कालिपद जी
हटाएंउन के ज़ह्नों में न मस्जिद , न शिवाले होंगे
जवाब देंहटाएंबाद मुद्दत के जिन हाथों में निवाले होंगे
सही कहा है भूख का कोई मज़हब नहीं होता. यह खयाल मन में कैसे आया कि दो महीने ब्लॉग से गायब रहने पर लोग भूल जायेंगे. तखलीक की कोई उम्र होती है क्या..? मैं तो कई-कई महीने इंटरनेट की दुनिया से गायब रहता हूं. मित्र इसकी शिकायत करते लेकिन पहचानने से इनकार तो नहीं करते. ज़रूरी नहीं कि हमेशा रचनाशील रहें. यह तो एक प्रवाह है जिसपर अपना कोई वश नहीं. हम सिर्फ रचनाकार ही नहीं एक सामाजिक भी तो हैं.
बेहद मशकूर हूँ देवेंद्र भैया आप लोग बस ऐसे ही स्नेह और आशीर्वाद बनाएं रखें
हटाएंभूके बच्चों की उमीदें न शिकस्ता हो जाएं
जवाब देंहटाएंमाँ ने कुछ अश्क भी पानी में उबाले होंगे
क्या कहूं इस्मत? ऐसे शेर तो मुझे लगता है केवल पढने और महसूस करने के लिये होते हैं....
कुछ न साहिल पे मिलेगा कि ’शेफ़ा’ उस ने तो
दुर ए यकता के लिये बह्र खंगाले होंगी
अनूठा शेर है
बहुत बहुत शुक्रिया अज़ीज़ साहब
हटाएंलम्बे अंतराल बाद बहुत बढ़िया गजल पढवाने के लिए धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कविता जी
जवाब देंहटाएंहर इक अशआर जैसे तूफ़ानी परचम है
जवाब देंहटाएंजाने कैसे आपने ये परचम सम्हाले होंगे
लाजवाब, बेमिसाल, कुछ भी कहूँ, कम ही रह जाएगा ...
आपका शुक्रिया
'अदा'
बहुत बहुत शुक्रिया अदा जी
हटाएंबेहद शुक्र्गुज़ार हूँ जनाब दानिश भारती सहब की कि जिन्हों ने मतले में आए ईता के दोष की तरफ़ निशान्दही की जिस कि तरफ़ मेरा ध्यान ही नहीं गया था और तब मैंने मतला ठीक किया
जवाब देंहटाएंएक बार फिर शुक्रिया जनाब
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जवाब देंहटाएंमैं बताना भी अगर चाहूं ज़माने के सितम
सामने तेरे ज़ुबां पर मेरी ताले होंगे
सुन्दर ग़ज़ल,,ऐसी रचना का तो इंतजार सदा ही रहता है.आभार.
जवाब देंहटाएंएक एक शेर लाजवाब है।
बहुत बढ़िया गज़ल,एक एक शेर लाजवाब,पूरी ग़ज़ल शानदार और लाजवाब !
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