चंद दिन पहले की बात है कि एक दिन पंकज सुबीर जी ने फ़ेसबुक पर एक शेर पोस्ट किया और सभी लोगों को आमंत्रित किया ग़ज़ल पूरी करने के लिये ,बस फिर क्या था जितने लोग ऑनलाइन थे उन की एक एक ग़ज़ल तैयार हो गई ,मैंने भी कोशिश की
अब आप भी लुत्फ़ लीजिये लेकिन ये ध्यान रखियेगा कि ये फ़िलबदीह (आशु) ग़ज़ल है .....
ग़लतियाँ हो सकती हैं ,, उस के लिये पहले से ही मुआफ़ी चाहती हूं
ग़ज़ल
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हम भी कितना प्यारा सौदा करते हैं
चेहरों पे मुस्कान सजाया करते हैं
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जाने कितने दीप जला कर आँखों में
हम उन के सपनों की रक्षा करते हैं
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अपनी वफ़ाएं साबित करने की ख़ातिर
हर बाज़ी हम उन से हारा करते हैं
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उन के जज़्बों को हम कैसे सच मानें
वो तो रिश्तों का भी सौदा करते हैं
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जो बच्चे महरूम हों माँ के साए से
हर आँचल में ममता ढूंढा करते हैं
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माँ -बाबा बच्चों की ख़ुशियो की ख़ातिर
अपने अरमानों को थपका करते हैं
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सूरज की गर्मी में , ख़ुनकी आए जब
गाँव के बूढ़े बरगद साया करते हैं
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बात ’शेफ़ा’ जो करते हैं परवाज़ों की
पँख परिंदों के वो कतरा करते हैं
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महरूम = वंचित ,,,,,,,ख़ुनकी = ठंडक
हम भी कितना प्यारा सौदा करते हैं
जवाब देंहटाएंचेहरे पे मुस्कान सजाया करते हैं
ग़ज़ल के मतले की मासूमियत पढने वालों को
अपनी ओर आकर्षित करेगी,,ऐसा विश्वास किया जा सकता है
प्रयुक्त 'तुकांश' अपनी विभिन्नता के कारण
विशेष हो गए हैं ...
सूरज की गर्मी में खुनकी आये , जब
गाँव के बूढ़े बरगद साया करते हैं
उपरोक्त सारगर्भित शेर की अभिव्यक्ति पर
बधाई स्वीकारें .
सूरज की गर्मी में , ख़ुनकी आए जब
जवाब देंहटाएंगाँव के बूढ़े बरगद साया करते हैं...
तब भी न गर छाँव मिले , हम तेरा लिखा पढ़ा करते हैं
बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंअपनी वफ़ाएं साबित करने की ख़ातिर
जवाब देंहटाएंहर बाज़ी हम उन से हारा करते हैं
wah.....bahut achche.
जो बच्चे महरूम हों माँ के साए से
जवाब देंहटाएंहर आँचल में ममता ढूंढा करते हैं
कुछ शेर पढ़े थे ,फेसबुक पर...
.बहुत ही उम्दा ग़ज़ल बन पड़ी है
बड़ी प्यारी रचना है साथ ही अंदाज़ भी नया ....
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें आपको !
बहुत खूब लिखा है आपने बधाई समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंअरे वाह! बेहतरीन भाव हैं...
जवाब देंहटाएंबार-बार पढने को मजबूर करें, ऐसे अश’आर.
जवाब देंहटाएं’हम भी कितना प्यारा सौदा करते हैं
चेहरे पे मुस्कान सजाया करते हैं’
बहुत मासूमियत है इस शेर में.
"बात ’शेफ़ा’ जो करते हैं परवाज़ों की
पँख परिंदों के वो कतरा करते हैं"
एकदम सच्ची बात.
और अन्त में मेरा पसंदीदा शेर, जिसे मैं बार-बार पढती हूं-
"जो बच्चे महरूम हों माँ के साए से
हर आँचल में ममता ढूंढा करते हैं"
जब भी पढती हूं, अन्दर तक भीग जाती हूं. सलाम है तुम्हारी कलम को, जिससे ऐसा शेर निकला.
सूरज की गर्मी में , ख़ुनकी आए जब
जवाब देंहटाएंगाँव के बूढ़े बरगद साया करते हैं...
तब भी न गर छाँव मिले ,
हम तेरा लिखा पढ़ा करते हैं
...beeti yaadon ko jhakjhorti sundar gajal..
bahut khoob
जवाब देंहटाएंआशु गज़ल की ढांसू जीवंतता ने प्रभावित किया।
जवाब देंहटाएंउन के जज़्बों को हम कैसे सच मानें
जवाब देंहटाएंवो तो रिश्तों का भी सौदा करते हैं
सुभान अल्लाह...खूबसूरत ग़ज़ल
नीरज
मुझे आपकी सम्पूर्ण गज़ल पसंद आई ...बधाई स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंbahut pyari aashu gazal ban gayi ye to.
जवाब देंहटाएंजो बच्चे महरूम हों माँ के साए से
जवाब देंहटाएंहर आँचल में ममता ढूंढा करते हैं
गज़ल के भाव इतने छू रहे हैं दिल को की शिप्ल का ध्यान कौन रखेगा ... बहुत कमाल का शेर ही ये ...
सूरज की गर्मी में , ख़ुनकी आए जब
गाँव के बूढ़े बरगद साया करते हैं ..
और ये शेर तो गाँव का मंज़र और गर्मी की याद ताज़ा करा है ...
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
जवाब देंहटाएंसूरज की गर्मी में , ख़ुनकी आए जब
गाँव के बूढ़े बरगद साया करते हैं****
बात ’शेफ़ा’ जो करते हैं परवाज़ों की
पँख परिंदों के वो कतरा करते
बहुत खूब ..
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएं.......नववर्ष आप के लिए मंगलमय हो
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
अपनी वफायें साबित करने के खातिर,
जवाब देंहटाएंहर बाजी हम उनसे हारा करते है।
उपरोक्त सुन्दर पंतियों के सम्मान में
निम्न लिखित पंतियाँ समर्पित हैं-
हम वफा दिखाने को उन पर,
हर बाजी हारा करते है।
वो मेरी हार के ऊपर बस,
इक ताना मारा करते हैं।
सब किया न्यौछावर है उनपर,
वो एक इशारा करते हैं।
मेरी हर धड़कन में है वह,
वो मुझसे किनारा करते हैं।।
माँ बाबा बच्चों की ख़ुशी की ख़ातिर ही
जवाब देंहटाएंअपने अरमानों को थपका करते हैं
सूरज की गर्मी में , ख़ुनकी आए जब
गाँव के बूढ़े बरगद साया करते हैं
खूब
बहुत खूब
नया साल मुबारक
बेहद सुंदर गज़ल वह भी आशुकवित्व की देन वाह ।
जवाब देंहटाएंजो बच्चे महरूम हों माँ के साए से
जवाब देंहटाएंहर आँचल में ममता ढूंढा करते हैं
द्रवित कर गया ये शेर ......
लाजवाब ग़ज़ल .....
बहुत ही बेहतरीन......
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
http://jeevanvichar.blogspot.com
बहुत अच्छी प्रस्तुति,मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ......बेहतरीन पोस्ट
जवाब देंहटाएंWELCOME to--जिन्दगीं--
वाह ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंकल 11/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, उम्र भर इस सोच में थे हम ... !
धन्यवाद!
सूरज की गर्मी में , ख़ुनकी आए जब
जवाब देंहटाएंगाँव के बूढ़े बरगद साया करते हैं
बेहतरीन।
सादर
wah bahut sundar :)
जवाब देंहटाएंWelcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
जाने कितने दीप जला कर आँखों में
जवाब देंहटाएंहम उन के सपनों की रक्षा करते हैं
....
हाँ हम जलते भी और जलाते भी हैं (दीप)...मगर
मेरे ख्याल से हम अपने ही सपनों की रक्षा करते हैं
bahut sunder ...
जवाब देंहटाएं"नयी पुरानी हलचल" से होती हुई यहाँ पहुंची...
जवाब देंहटाएंवाह वाह..
दाद कबूल करें..
सूरज की गर्मी में , ख़ुनकी आए जब
गाँव के बूढ़े बरगद साया करते हैं
बहुत खूब...
बेहतरीन ग़ज़ल... वाह!
जवाब देंहटाएंसादर.
वाह वाह!!!!!बहुत सुंदर गजल,.बेहतरीन पोस्ट
जवाब देंहटाएंwelcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
लिंक गलत देने की वजह से पुन: सूचना
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
जो बच्चे महरूम हों माँ के साए से
जवाब देंहटाएंहर आँचल में ममता ढूंढा करते हैं
कुछ कहते नहीं बन रहा है...हर किसी के दिल को छू जाने वाला शेर...
माँ-बाबा बच्चों की ख़ुशियों की ख़ातिर
अपने अरमानों को थपका करते हैं...
कितना सच्चा शेर है ये...बहुत अच्छी ग़ज़ल.