एक तरही ग़ज़ल पेश कर रही हूँ तरह ये है -
"सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप "
यूँ तो घटाओं के झूमने का मौसम चला गया लेकिन गोवा में तो कभी भी घटाएं आसमान पर छा जाती हैं और बारिश होने लगती है लिहाज़ा ये ग़ज़ल शायद बेमौसम नहीं होगी
ग़ज़ल
____________
अपनी बस्ती, अपना आँगन ,वो पीपल से लिपटी धूप
दूर वतन की याद जब आए ,है राहत की थपकी धूप
रोज़ी रोटी की ख़ातिर जब मारा मारा फिरता हूँ
अपने जैसी ही लगती है मुझ को पीली उजड़ी धूप
गर्मी जाड़े के मौसम में दिन भर साथ निभाती है
" सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप "
गाँव की गलियाँ , बाग़ के झूले , सब कुछ कितना प्यारा था
मैं बचपन जी लेता हूं जब करती है अटखेली धूप
रौशन कर दो दुनिया सारी अपने इल्म ओ दानिश से
वक़्त ए सहर पैग़ाम ये ले कर आती है चमकीली धूप
बचपन में जब माँ की लोरी मीठी नींद सुलाती थी
सर सहला कर मुझे जगाने हौले से आती थी धूप
शब का जागा वक़्त ए सहर जब ख़्वाबों की आग़ोश में जाए
टूट न जाएं ख़्वाब सुहाने ,धीरे से छुप जाती धूप
कैसे वफ़ा हों अह्द ओ पैमाँ सीख ’शेफ़ा’ तू सूरज से
रौशन कर के सुब्ह को धरती ,अपना अह्द निभाती धूप
__________________________________________________________
दानिश = अक़्ल , समझ बूझ ,, शब = रात ,, आग़ोश = गोद
अह्द ओ पैमाँ = वादे , वचन
"सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप "
यूँ तो घटाओं के झूमने का मौसम चला गया लेकिन गोवा में तो कभी भी घटाएं आसमान पर छा जाती हैं और बारिश होने लगती है लिहाज़ा ये ग़ज़ल शायद बेमौसम नहीं होगी
ग़ज़ल
____________
अपनी बस्ती, अपना आँगन ,वो पीपल से लिपटी धूप
दूर वतन की याद जब आए ,है राहत की थपकी धूप
रोज़ी रोटी की ख़ातिर जब मारा मारा फिरता हूँ
अपने जैसी ही लगती है मुझ को पीली उजड़ी धूप
गर्मी जाड़े के मौसम में दिन भर साथ निभाती है
" सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप "
गाँव की गलियाँ , बाग़ के झूले , सब कुछ कितना प्यारा था
मैं बचपन जी लेता हूं जब करती है अटखेली धूप
रौशन कर दो दुनिया सारी अपने इल्म ओ दानिश से
वक़्त ए सहर पैग़ाम ये ले कर आती है चमकीली धूप
बचपन में जब माँ की लोरी मीठी नींद सुलाती थी
सर सहला कर मुझे जगाने हौले से आती थी धूप
शब का जागा वक़्त ए सहर जब ख़्वाबों की आग़ोश में जाए
टूट न जाएं ख़्वाब सुहाने ,धीरे से छुप जाती धूप
कैसे वफ़ा हों अह्द ओ पैमाँ सीख ’शेफ़ा’ तू सूरज से
रौशन कर के सुब्ह को धरती ,अपना अह्द निभाती धूप
__________________________________________________________
दानिश = अक़्ल , समझ बूझ ,, शब = रात ,, आग़ोश = गोद
अह्द ओ पैमाँ = वादे , वचन
जवाब देंहटाएं♥
आदरणीया दीदी इस्मत ज़ैदी जी
आदाब !
पूरी ग़ज़ल अच्छी है । मतले से मक़्ते तक हर शे'र काबिले-ता'रीफ़ है ।
अपनी बस्ती, अपना आँगन ,वो पीपल से लिपटी धूप
दूर वतन की याद जब आए ,है राहत की थपकी धूप
गर्मी जाड़े के मौसम में दिन भर साथ निभाती है
" सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप "
बहुत ख़ूबसूरती से गिरह लगाई आपने …
हां , यह तरही मुशायरा कहां हुआ था , नेट पर य किसी मैग़ज़ीन में ?
बड़ी मेह्रबानी कभी किसी तरही की हमें भी सूचना दे दिया कीजिए …
बहुत बहुत बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
धूप सदियों से ही उत्साह का प्रतीक रही है, बहुत ही सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबचपन में जब माँ की लोरी मीठी नींद सुलाती थी
जवाब देंहटाएंसर सहला कर मुझे जगाने हौले से आती थी धूप !
बेहद खूबसूरत रचना ....
आभार आपका !
बचपन में जब माँ की लोरी मीठी नींद सुलाती थी
जवाब देंहटाएंसर सहला कर मुझे जगाने हौले से आती थी धूप ...
goa me aise ehsaas abhi bhi baarish ke baad ubharte hain , khuda in ehsaason ko yun hi rakhe
achchi lagti hai ye bhini bhini dhunp,
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya gajal likji hai mam..
ed mubaarak ho aapko..
jai hind jai bharat
सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप
जवाब देंहटाएंwah.......behad achchi lagi.
धूप को उनवान बना कर कही गयी
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल
बिलकुल धूप ही की तरह उजली लग रही है
"दूर वतन की याद आए जब, है राहत की थपकी धूप..."
यह मिसरा श्री पाण्डेय जी की बात को ही प्रमाणित कर रहा है
ग़ज़ल के बाक़ी शेर भी क़ाबिल ए ज़िक्र हैं
बहुत बहुत मुबारकबाद .
हमेशा की तरह बढ़िया ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंसभी शेर बेहतरीन.
कैसे वफ़ा हों अह्द ओ पैमाँ सीख ’शेफ़ा’ तू सूरज से
जवाब देंहटाएंरौशन कर के सुब्ह को धरती ,अपना अह्द निभाती धूप
behad khoobsoorat ghazal!!
शब का जागा वक़्त ए सहर जब ख़्वाबों की आग़ोश में जाए
जवाब देंहटाएंटूट न जाएं ख़्वाब सुहाने ,धीरे से छुप जाती धूप
लाजवाब प्रस्तुति...
अपनी बस्ती, अपना आँगन ,वो पीपल से लिपटी धूप
जवाब देंहटाएंदूर वतन की याद जब आए ,है राहत की थपकी धूप
क्या बात है!!!
इस्मत, तुम्हारी ग़ज़ल पढते हुए मैं हमेशा असमंजस में पड जाती हूं, कि किस शेर को अपने कमेंट में कोट करूं, किसे नहीं? अब पूरी ग़ज़ल तो पेस्ट नहीं की जा सकती न? :) :)
वैसे मन पूरी ग़ज़ल यहां पेस्ट करने का है :)
बचपन में जब माँ की लोरी मीठी नींद सुलाती थी
सर सहला कर मुझे जगाने हौले से आती थी धूप
एकदम घर-गलियारे की सैर कराती भीनी-भीनी ग़ज़ल है इस्मत. बहुत खूब.
गाँव की गलियाँ, बाग़ के झूले, सब कुछ कितना प्यारा था
जवाब देंहटाएंमैं बचपन जी लेता हूं जब करती है अटखेली धूप
बहुत प्यारा और खूबसूरत शेर है इस्मत साहिबा...
रौशन कर दो दुनिया सारी अपने इल्म ओ दानिश से
वक़्त ए सहर पैग़ाम ये ले कर आती है चमकीली धूप
धूप के ज़रिये कितना बड़ा पैग़ाम दिया है...वाह
बचपन में जब माँ की लोरी मीठी नींद सुलाती थी
सर सहला कर मुझे जगाने हौले से आती थी धूप
उम्दा...हर शेर लाजवाब...बधाई
दूर वतन की याद जब आए ,है राहत की थपकी धूप...
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी ग़ज़ल...
गाँव की गलियाँ , बाग़ के झूले , सब कुछ कितना प्यारा था
मैं बचपन जी लेता हूं जब करती है अटखेली धूप ...
वाह! वाह!
सादर बधाई...
बहुत निराली धूप...बहुत प्यारी कोमल एहसास लिए ग़ज़ल .पहली बार आपके ब्लॉग पर चर्चामंच के माध्यम से पहुची हूँ आना सार्थक रहा जुड़ रही हूँ आपकी श्रंखला से वक़्त मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आइयेगा
जवाब देंहटाएंसब यादों को समेटे हुए!
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन गजल!
रोज़ी रोटी की ख़ातिर जब मारा मारा फिरता हूँ
जवाब देंहटाएंअपने जैसी ही लगती है मुझ को पीली उजड़ी धूप
गाँव की गलियाँ , बाग़ के झूले , सब कुछ कितना प्यारा था
मैं बचपन जी लेता हूं जब करती है अटखेली धूप
कितनी यादों में बसी धूप ...बहुत खूबसूरत गज़ल ..
रोज़ी रोटी की ख़ातिर जब मारा मारा फिरता हूँ
जवाब देंहटाएंअपने जैसी ही लगती है मुझ को पीली उजड़ी धूप
वाह …………बेहद गहन अभिव्यक्ति…………जीवन सत्य को उजागर करती हुयी।
उम्दा अशार,बेहतरीन ग़ज़ल,दाद !
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html
रोज़ी रोटी की ख़ातिर जब मारा मारा फिरता हूँ
जवाब देंहटाएंअपने जैसी ही लगती है मुझ को पीली उजड़ी धूप
सच जैसे मन के भाव होते हैं...सामने की चीज़ें वैसी ही लगती हैं...
बड़े प्यारे अंदाज़ में धूप के अलग अलग रूप बयाँ किए हैं.
रोज़ी रोटी की ख़ातिर जब मारा मारा फिरता हूँ
जवाब देंहटाएंअपने जैसी ही लगती है मुझ को पीली उजड़ी धूप
जैसे एक से एक बेहतरीन शेरों वाली जिसका गिरह वाला शेर तो "उफ़ यु माँ" है...ग़ज़ल, सिर्फ और सिर्फ इस्मत ही लिख सकती है...जुग जुग जियो.
नीरज
'वाकई खूबसूरत ग़ज़ल. म केवल सच्ची तारीफे ही करता हूँ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
जवाब देंहटाएंअपनी बस्ती, अपना आँगन ,वो पीपल से लिपटी धूप
जवाब देंहटाएंदूर वतन की याद जब आए ,है राहत की थपकी धूप
आपने तो हम जैसे वतन से दूर रहने वालों के दिल की बात लिख दी ... ये सब कुछ अक्सर याद आता है ...
बचपन में जब माँ की लोरी मीठी नींद सुलाती थी
सर सहला कर मुझे जगाने हौले से आती थी धूप ..
ये शेर है तो बहुत ही सादा सा पर दिल में कहीं गहरे तक उतर गया है ... गुनगुनी सर्दी के दिन याद करा दिए आपने आज ...
इस लाजवाब गज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई और शुक्रिया भी ... आपको ईद मुबारक ...
अपनी बस्ती, अपना आँगन ,वो पीपल से लिपटी धूप
जवाब देंहटाएंदूर वतन की याद जब आए ,है राहत की थपकी धूप
रोज़ी रोटी की ख़ातिर जब मारा मारा फिरता हूँ
अपने जैसी ही लगती है मुझ को पीली उजड़ी धूप
गर्मी जाड़े के मौसम में दिन भर साथ निभाती है
" सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप
aaha maja aa gaya , padh kar ...
bahut badhiya gazal.
जवाब देंहटाएंsanjhe chulhe jesi sabki sanjhi dhoop...
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ल।
जवाब देंहटाएंइस कोमल गुनगुनी धूप पर न्यौछावर । बढिया गज़ल ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
जवाब देंहटाएंअपने लिए पूरी गुंजाइशें निकालकर आपने इस तरही गजल को तरह दी है। इन षेरों में जर सी अटक थी जो मुझे अपने लिए यूं ठीक लगी।
दूर वतन की याद जब आए ,है राहत की थपकी धूप
की जगह
दूर वतन की याद जो आए, है राहत की थपकी धूप
और
कैसे वफ़ा हों अह्द ओ पैमाँ सीख ’शेफ़ा’ तू सूरज से
की जगह
कैसे वफ़ा हों अह्द ओ पैमाँ सीख तू ‘शेफ़ा’ सूरज से
और मैंने भी इस तरही गजल में अपनी कलम आजमा ली। लीजिए घर बैठे मुलाहिज़ा फरमाएं...
तरह ये है -
"सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप "
मेरी पेशकस ये है--
सुबह जगाने आ जाती है, मुस्काती, मुंहबोली धूप।
कभी आलता, कभी अल्पना, लगती कभी रंगोली धूप।।
धुंधों कोहरों के सब कपड़े, जाने कहां उतारे हैं ,
चुंधिआई आंखों के आगे, नहा रही है भोली धूप।।
अंजुरी में भरकर शैफाली, कभी मोंगरे, कभी गुलाब,
कमरे में खुश्बू फैलाती है फूलों की डोली धूप।।
अगहन की अल्हड़ गोरी है है पुलाव यह पूसों की,
सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप।।
तेरा चेहरा बहुत दिनों से देख नहीं पाया हूं मैं,
आज हथेली पर रख ली है मैंने कौली कौली धूप।।
अगहन की अल्हड़ गोरी है है पुलाव यह पूसों की,
जवाब देंहटाएंसावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप।।
इसमें टाइपिंग मिस्टेक है, सुधर कर पढ़ें, इस तरह--
अगहन की अल्हड़ गोरी है, है पुआल यह पूसों की,
सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप।।
अपनी बस्ती, अपना आँगन ,वो पीपल से लिपटी धूप
जवाब देंहटाएंदूर वतन की याद जब आए ,है राहत की थपकी धूप
wah! bahut achchhi gazal hui hai..har sher kabile-tareef..apni mitti kee khushboo se tar-ba-tar. mubarak ho.
इस्मत जी
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल......
गर्मी जाड़े के मौसम में दिन भर साथ निभाती है
" सावन भादों में करती है हम से आँख मिचोली धूप "
इस शेर के क्या कहने.... दाद क़ुबूल फरमाएं
रोज़ी रोटी की ख़ातिर जब मारा मारा फिरता हूँ
जवाब देंहटाएंअपने जैसी ही लगती है मुझ को पीली उजड़ी धूप
पहली बार आपके ब्लॉग पर आने का सौभाग्य मिला.पूरी की पूरी गज़ल ही बेमिसाल है. फुरसत में आपकी पुरानी पोस्ट पर जाके गज़लों को पढ़ना ही पड़ेगा.पारिवारिक खुशी में शरीक होकर बेटे को आशीर्वाद दिया, तहेदिल से शुक्रिया.
"अपनी बस्ती, अपना आँगन ,वो पीपल से लिपटी धूप
जवाब देंहटाएंदूर वतन की याद जब आए ,है राहत की थपकी धूप "
आपने तो जैसे गाँव में पहुंचा दिया | जाड़ों में धुप सेकें तो जमाना हो गया | उत्तर भारत की मखमली सर्दी से महरूम
पिछले १० सालों से दक्षिण भारत में हूँ. हर साल सर्दियों में जाने का इरादा करता हूँ , मगर नहीं जा पाता |
बहुत अच्छा |