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सोमवार, 6 दिसंबर 2010

..........जीने की अदा जाने

एक ग़ज़ल पेश ए ख़िदमत है

...........जीने की अदा जाने
_______________________

न है दुनिया की कुछ परवा ,न कुछ अच्छा बुरा जाने
कोई समझे क़लंदर उस को और कोई गदा जाने

मदद से असलहों की जो दुकां अपनी चलाता है
मुहब्बत ,दोस्ती,एह्सास, जज़्बा ,फ़िक्र क्या जाने?

जिया जो दूसरों के वास्ते है बस वही इंसां
कि अपने वास्ते जीने को वो अपनी क़ज़ा जाने

फ़राएज़ की जगह ऊंची न होगी जब तलक हक़ से
तो दुनिया भी तेरी बातों को गूंगे की सदा जाने

सऊबत ज़िंदगी का हर सबक़ ऐसे सिखाती है
कि नादारी में भी इंसान जीने की अदा जाने

नज़र में उन की गर मज़हब है इक शतरंज का मोहरा
तो फिर अंजाम कैसा,क्या ,कहां होगा ख़ुदा जाने

वफ़ादारी ही जिस की ज़ात का हिस्सा रही बरसों
मगर ये क्या हुआ कि आज वो इस को सज़ा जाने

न जाने किस ज़माने में ’शेफ़ा’ वो शख़्स जीता है
जो ख़ुद्दारी,रवादारी,मिलनसारी, वफ़ा, जाने

__________________________________________

क़लंदर = जो दीन ओ दुनिया से अलग हो  ; गदा=फ़क़ीर ;असलहा =हथियार; क़ज़ा =मौत
सऊबत =परेशानियां,कठिनाइयां ; नादारी= ग़रीबी 

27 टिप्‍पणियां:

  1. इन्तज़ार की घड़ियां खत्म हुईं....

    वफ़ादारी ही जिस की ज़ात का हिस्सा रही बरसों
    मगर ये क्या हुआ कि आज वो इस को सज़ा जाने

    बहुत खूब. इन्सानियत के इन तमाम गुणों की अब कीमत ही कहां रह गई है?

    न जाने किस ज़माने में ’शेफ़ा’ वो शख़्स जीता है
    जो ख़ुद्दारी,रवादारी,मिलनसारी, वफ़ा, जाने

    बहुत सुन्दर. तुम्हारे स्वभाव से मेल खाता शेर है ये तो.

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  2. सऊबत ज़िंदगी का हर सबक़ ऐसे सिखाती है
    कि नादारी में भी इंसान जीने की अदा जाने
    बहुत अच्छी ग़ज़ल का बेहतरीन शेर...
    न जाने किस ज़माने में ’शेफ़ा’ वो शख़्स जीता है
    जो ख़ुद्दारी,रवादारी,मिलनसारी, वफ़ा, जाने
    मक़ता बहुत ही उम्दा है...बार बार पढ़ने को दिल करता है
    मुबारकबाद.

    जवाब देंहटाएं
  3. कुछ पंक्तियों में बहुत कुछ निचोड़ के रख दिया, आपका आभार,
    वक्त मिले तो आपके अपने ब्लॉग पर पधारिये-
    http://arvindjangid.blogspot.com/

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  4. मदद से असलहों की जो दुकां अपनी चलाता है
    मुहब्बत ,दोस्ती,एह्सास, जज़्बा ,फ़िक्र क्या जाने?
    कितनी सच बात आपने इस शेर मे कह दी।

    जिया जो दूसरों के वास्ते है बस वही इंसां
    कि अपने वास्ते जीने को वो अपनी क़ज़ा जाने
    जीवन दर्शन का सूत्र कितने सुन्दर शब्दों मे ब्याँ किया है। आपकी गज़ल का हर शेर जीवन के तज़ुर्बों और सकारात्मक चिन्तने से उभर कर आता है। लाजवाब गज़ल के लिये बधाई।

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  5. खूबसूरत मतले से शुरू हुआ गज़ल का ये हसीन सफर

    मदद से असलहों की जो दुकां अपनी चलाता है
    मुहब्बत ,दोस्ती,एह्सास, जज़्बा ,फ़िक्र क्या जाने?

    फ़राएज़ की जगह ऊंची न होगी जब तलक हक़ सेतो दुनिया भी तेरी बातों को गूंगे की सदा जाने

    जैसे दिलकश मंज़रों से हो कर गुज़रता हुआ जब मकते

    न जाने किस ज़माने में ’शेफ़ा’ वो शख़्स जीता है
    जो ख़ुद्दारी,रवादारी,मिलनसारी, वफ़ा, जाने

    तक पहुँचता है तो आप और आपकी कलम की शान में तालियाँ खुद ब खुद बजने लगती हैं...

    इस्मत जी इस लाजवाब गज़ल के लिए मेरी दिली दाद कबूल करें

    नीरज

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  6. आदरणीया इस्मत ज़ैदी जी
    सस्नेहाभिवादन !

    आपकी ग़ज़लियात पढ़ते हुए बहुत कुछ मिलता है … दिली सुकून , मन का आनन्द, और सीखने को !

    प्रस्तुत ग़ज़ल भी तग़ज़्ज़ुल और तख़य्युल की बुलंदियां छू रही है, हमेशा की तरह ।
    बहुत बहुत मुबारकबाद !

    मदद से असलहों की जो दुकां अपनी चलाता है
    मुहब्बत ,दोस्ती,एह्सास, जज़्बा ,फ़िक्र क्या जाने?

    हिंसा और हैवानियत की दुकानें चलाने वाले किसी की मदद के बिना भी अपनी हरकात के कारण इंसानी जज़्बों से दूर ही होते हैं ।

    फ़राएज़ की जगह ऊंची न होगी जब तलक हक़ से

    सच, बहुत मनन-मंथन की अवश्यकता है , इस विषय पर । बहुत अच्छा शे'र है…

    पूरी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बहुत मुबारकबाद !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  7. आपने, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है, हर शेर उम्दा है और इन दो शेरों पर तो मैं लाजवाब हूँ,

    सऊबत ज़िंदगी का हर सबक़ ऐसे सिखाती है
    कि नादारी में भी इंसान जीने की अदा जाने

    नज़र में उन की गर मज़हब है इक शतरंज का मोहरा
    तो फिर अंजाम कैसा,क्या ,कहां होगा ख़ुदा जाने

    मुबारकबाद

    जवाब देंहटाएं
  8. न जाने किस ज़माने में ’शेफ़ा’ वो शख़्स जीता है
    जो ख़ुद्दारी,रवादारी,मिलनसारी, वफ़ा, जाने


    बहुत बढिया .... पूरी गजल ...

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  9. फ़राएज़ की जगह,ऊंची न होगी जब तलक हक़ से
    तो दुनिया भी तेरी बातों को गूंगे की सदा जाने

    वफ़ादारी ही जिस की ज़ात का हिस्सा रही बरसों
    मगर ये क्याहुआ कि आज वो इस को सज़ा जाने

    अपनी बात ,
    खुद कहते हुए, ये ला-जवाब शेर
    कितने पढने वालों के मन की बात कह जाते हैं,
    क्या मालूम.... !!

    ग़ज़ल,
    पढ़ते-पढ़ते, क़ारी का जज़्ब ए इंसानियत की जानिब माइल होना फितरी-सा लगने लगता है ,
    जो ग़ज़ल की एक खासियत की जानिब इशारा है
    मुबारकबाद

    ग़ज़लमें लफ्ज़-ओ-बंदिश की
    हर इक तरतीब उम्दा है
    कहे 'शेफा' वो मन की बात
    जो मन से 'शेफा' माने

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  10. khubsurat ghazal kahi hai aapne....yun to bahut talkh se ehsaas bhi hain..magar ghazal hai to khubsurat hi hain...

    Saadar

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  11. जिया जो दूसरों के वास्ते है बस वही इंसां
    कि अपने वास्ते जीने को वो अपनी क़ज़ा जाने

    बहुत सुन्दर गजल ...

    जवाब देंहटाएं
  12. कमाल के मोती पेश किये हैं आपने ...हार्दिक शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  13. ईमानदारी से कहूँ, ग़ज़ल की कोई भी बारीकियाँ मुझे नहीं पता. पर जो शब्द हैं, जो भाव हैं, वो बेहतरीन हैं...
    वैसे बेहतरीन तो हर बार ही आप लिखती हैं.

    आभार स्वीकारें.

    और इस पर...

    न जाने किस ज़माने में ’शेफ़ा’ वो शख़्स जीता है
    जो ख़ुद्दारी,रवादारी,मिलनसारी, वफ़ा, जाने

    .....मौन प्रशंसा

    जवाब देंहटाएं
  14. नमस्कार !
    बेहद सुंदर ग़ज़ल है , शुक्रिया . हर शेर उम्दा लगा .
    शुक्रिया .

    जवाब देंहटाएं
  15. जिया जो दूसरों के वास्ते है बस वही इंसां
    कि अपने वास्ते जीने को वो अपनी क़ज़ा जाने
    ..उम्दा गज़ल का बेहतरीन शेर।

    जवाब देंहटाएं
  16. इस्मत जी,बहुत सुन्दर, लाजवाब गज़ल

    जवाब देंहटाएं
  17. गहरे जज्बात के साथ सुंदर ग़ज़ल . सोंचनें को मजबूर करती हुई...दोस्ती,एह्सास, जज़्बा की अब कीमत कहां है? . ....अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  18. इस्मत जी,
    वह!क्या शेर कहे हैं आपने,
    जिया जो दूसरों के वास्ते है बस वही इंसां
    कि अपने वास्ते जीने को वो अपनी क़ज़ा जाने
    पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी

    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    जवाब देंहटाएं
  19. 'न जाने किस ज़माने में 'शेफा' वो इंसान जीता है,
    जो खुद्दारी, रवादारी, मिलनसारी, वफ़ा जाने !'
    जाहाँ तक चोट जाती है, वहाँ तक असर करती है ये ग़ज़ल ! एक-एक शेर बेमिसाल ! पढ़कर तबीयत खुश हो गई ! बधाई और आशीष !
    --आ.

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  20. yekse yek umda sher hai........ismat ji maphi chahate hai der se apke blog par aye hai....

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  21. aapaa...



    apne liye to majhab mohraa tak nahin hai...


    apne ko kaun jaanegaa.....?

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  22. न है दुनिया की कुछ परवा, न कुछ अच्छा-बुरा जाने
    कोई समझे क़लंदर उस को, और कोई गदा जाने

    मदद से असलहों की जो दुकां अपनी चलाता है
    मुहब्बत ,दोस्ती,एह्सास, जज़्बा ,फ़िक्र क्या जाने?


    Sachmuch..

    वफ़ादारी ही जिस की ज़ात का हिस्सा रही बरसों
    मगर ये क्या हुआ कि आज वो इस को सज़ा जाने


    न जाने किस ज़माने में ’शेफ़ा’ वो शख़्स जीता है
    जो ख़ुद्दारी,रवादारी,मिलनसारी, वफ़ा, जाने


    Wah wah kya bat kahi hai...bahut sachchi bat..

    जवाब देंहटाएं
  23. Ismat ji
    mere blog par aane aur mera housla banadhane ke liye aapka hardik swagat.

    जिया जो दूसरों के वास्ते है बस वही इंसां
    कि अपने वास्ते जीने को वो अपनी क़ज़ा जाने

    फ़राएज़ की जगह ऊंची न होगी जब तलक हक़ से
    तो दुनिया भी तेरी बातों को गूंगे की सदा जाने

    सऊबत ज़िंदगी का हर सबक़ ऐसे सिखाती है
    कि नादारी में भी इंसान जीने की अदा जाने
    bilkul sateek prastuti.
    poonam

    जवाब देंहटाएं

ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया