आज इस ब्लॉग की सालगिरह के मौक़े पर एक ग़ज़ल हाज़िर ए ख़िदमत है
इस एक साल के सफ़र में आप सब ने जो सहयोग और मान दिया
है,उस के लिये मैं बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूं ,ये सफ़र आप सब के सहयोग ,
मशवरों और स्नेह के बिना संभव ही नहीं था ,आप सब के द्वारा दिया
गया मान और पहचान मेरे जीवन की अमूल्य निधि है ,जिस के लिए सब से पहले
वंदना अवस्थी दुबे की शुक्रगुजार हूँ जो मुझे ब्लॉग जगत में लाईं और फिर आप सब
का बहुत बहुत शुक्रिया कि आप ने मुझे इस मंच पर स्थान दिया ,
लीजिये ग़ज़ल हाज़िर है
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............वो इक ज़िया ही नहीं
मशवरों और स्नेह के बिना संभव ही नहीं था ,आप सब के द्वारा दिया
गया मान और पहचान मेरे जीवन की अमूल्य निधि है ,जिस के लिए सब से पहले
वंदना अवस्थी दुबे की शुक्रगुजार हूँ जो मुझे ब्लॉग जगत में लाईं और फिर आप सब
का बहुत बहुत शुक्रिया कि आप ने मुझे इस मंच पर स्थान दिया ,
लीजिये ग़ज़ल हाज़िर है
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............वो इक ज़िया ही नहीं
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दरीचे ज़हनों के खुलने की इब्तिदा ही नहीं
जो उट्ठे हक़ की हिमायत में वो सदा ही नहीं
ज़मीर शर्म से ख़ाली हैं ,दिल मुहब्बत से
हम इरतेक़ा जिसे कहते हैं, इरतेक़ा ही नहीं
तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
परिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
ग़म ए जहां पे नज़र की तो ये हुआ मालूम
जफ़ा जो हम ने सही ,वो कोई जफ़ा ही नहीं
बग़ैर इल्म के ज़ुलमत कदा है ज़ह्न मेरा
जो कर दे फ़िक्र को रौशन ,वो इक ज़िया ही नहीं
तेरी वफ़ाओं का शीराज़ा मुंतशिर हो कर
बता रहा है हक़ीक़त में ये वफ़ा ही नहीं
जब आया आख़री लम्हात में मसीहा वो
न शिकवा कोई ’शेफ़ा’ और कोई गिला ही नहीं
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इब्तेदा = शुरूआत ; दरीचे =खिड़कियां ;हक़ =सच्चाई ; हिमायत = तरफ़दारी ; इरतेक़ा = तरक़्क़ी ;
तख़य्युलात= विचार (ख़याल का बहुवचन) ; जफ़ा = ज़ुल्म ; ज़ुलमत कदा = अंधेरी जगह ;
फ़िक्र = सोच ; ज़िया = रौशनी ; शीराज़ा = arrangements ; मुंतशिर = बिखरना
तख़य्युलात= विचार (ख़याल का बहुवचन) ; जफ़ा = ज़ुल्म ; ज़ुलमत कदा = अंधेरी जगह ;
फ़िक्र = सोच ; ज़िया = रौशनी ; शीराज़ा = arrangements ; मुंतशिर = बिखरना
"ग़म ए जहां पे नज़र की तो ये हुआ मालूम
जवाब देंहटाएंजफ़ा जो हम ने सही ,वो कोई जफ़ा ही नहीं"
इतनी बेहतरीन रचना ...हम तो इसकी तारीफ़ के लायक भी नहीं ! हार्दिक शुभकामनायें !
तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
जवाब देंहटाएंपरिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
क्या कहूं? तुम्हारी तो हर गज़ल मुझे चमत्कृत करती है. ब्लॉग का सफ़र यूं ही जारी रहे, अनन्त शुभकामनायें.
मोहतरमा इस्मत साहिबा...
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग में एक साल पूरा होने के मौके पर दिली मुबारकबाद कबूल फ़रमाएं...
अल्लाह से दुआ है-
हासिल हों कामयाबी के हर दिन नए मकाम
और इस सफ़र में राह में मज़िल कोई न हो...
आज के इस मौके पर
बहुत ही कीमती ग़ज़ल पेश की है आपने...
ज़मीर शर्म से ख़ाली हैं ,दिल मुहब्बत से
हम इरतेक़ा जिसे कहते हैं, इरतेक़ा ही नहीं...
कितना कुछ कह रहा है ये शेर...
तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
परिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं...
हक़ीक़त के जहान में ले आता है ये शेर...
बेहतरीन ग़ज़ल...एक बार फिर मुबारकबाद.
तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
जवाब देंहटाएंपरिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
यह शेर बहुत बढिया रहा । आपकी ब्लॉगिग नई नई उँचाइयों को छुए कहीं रुके ही ना । बधाई ।
ब्लॉग की सालगिरह बहुत बहुत मुबारक हो....ऐसे ही आप लिखती रहें और हमें बेहतरीन रचनाएं मिलती रहें पढने को...
जवाब देंहटाएंक्या खूब ग़ज़ल लिखी है....बहुत ही सुन्दर.
तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
जवाब देंहटाएंपरिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
इस खूबसूरत ग़ज़ल की
मुकम्मल वज़ाहत करता हुआ
ये सच्चा शेर मन में ऐसा उतरा कि बार बार नज़र यहीं आ टिकती है .... बहुत खूब !
और
ज़मीर शर्म से ख़ाली हैं ,दिल मुहब्बत से
हम इरतेक़ा जिसे कहते हैं, इरतेक़ा ही नहीं
आज की इस भाग दौड़ की ज़िंदगी की कहानी को बयान कर रहे हैं ये लफ्ज़ ...
बग़ैर इल्म के ज़ुलमतकदा है ज़ह्न मेरा
जो कर दे फ़िक्र को रौशन,वो इक ज़िया ही नहीं
किसी भी इंसान की,
तरीक़त की जानिब बढ़ते हुए
नेक क़दमों की आह्ट की साफ़ सुथरी आवाज़..
अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !!
और हाँ....
जवाब देंहटाएंभूल ही चला था ,,,
ब्लॉग की सालगिरह मुबारक हो
आदरणीय Mrs. Asha Joglekar जी की बात दोहराता हूँ
आपकी ब्लॉगिग नई नई उँचाइयों को छुए कहीं रुके ही ना । बधाई ।
'तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
जवाब देंहटाएंपरिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं'
बेहद उम्दा शेर.
बहुत अच्छी लगी आप की यह ग़ज़ल.
ब्लॉग की सालगिरह मुबारक हो.
हाँ,आप ने उर्दू कठीण शब्दों के अर्थ दे कर बहुत अच्छा किया.आभार.
तेरी वफ़ाओं का शीराज़ा मुंतशिर हो करबता रहा है हक़ीक़त में ये वफ़ा ही नहीं
जवाब देंहटाएंtumhe to tippani karne ke kabil hi nahi hum ,blog ke saalgirah par haardik shubhkaamnaaye .
ब्लॉग की सालगिरह मुबारक हो....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..
जवाब देंहटाएंकिस शेर की तारीफ करूँ किसे छोड़ दूँ..
बाबा विश्वनाथ से प्रार्थना है कि आपको सौ वर्ष दे..ब्लॉगिंग के लिए।
..ढेरों बधाई।
parindaa .....bahut khoob blog jagat me ek saal poora hone par dher see badhae..cadbary ka bada pack..sathh me chhotaa pack..muft-muft-muft.
जवाब देंहटाएंब्लॉग की सालगिरह की भी मुबारक हो और प्यारी सी ग़ज़ल की भी ...गिला ही नहीं ...कितना मुश्किल होता है ऐसी सोच रखने के मुकाम तक पहुंचना भी ...कमाल है ...बस आपके शब्द थोड़े मुश्किल हो जाते हैं हमारे लिए ..लगता है आप हमें उर्दू सिखा कर ही मानेंगी . अब आपको पढने का लोभ त्याग नहीं पायेंगे .
जवाब देंहटाएंब्लागिंग की साल गिरह मुबारक। बहुत-बहुत शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंइस मौके पर बहुत अच्छी गजल लिखी। बधाई! ऐसे ही खूब लिखती रहें।
ब्लॉग के जन्मदिन की शुभकामनायें ....
जवाब देंहटाएंइतनी उर्दू नहीं आती ,लेकिन क्यों की अर्थ मिल गए तो आपकी गज़ल समझने का प्रयास किया ...बहुत खूबसूरत गज़ल है ..बधाई
wah. behad sunder.
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 12 -10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल, सभी शेर एक से बढ़कर एक, आपकी कलम को मनम। ब्लाग के एक साल पूरा होने की बधाई।
जवाब देंहटाएंज़मीर शर्म से ख़ाली हैं ,दिल मुहब्बत से
जवाब देंहटाएंहम इरतेक़ा जिसे कहते हैं, इरतेक़ा ही नहीं
सुभान अल्लाह...क्या गज़ल है...उफ्फ्फ्फ़...
इस्मत जी सबसे पहले तो ब्लॉग की पहली सालगिरह की बहुत बहुत बहुत बधाई...देर से पहुंचा लेकिन यहाँ आ कर जो सुकून मिला उसे लफ़्ज़ों में बयां नहीं किया जा सकता...
बेहतरीन गज़ल कही है इस बार आपने...बला की ख़ूबसूरती और हुनर से आपने एक एक शेर को गढा है...गज़ल में पुख्तगी और नफ़ासत जैसी यहाँ मिलती और कहीं नहीं मिलती...दुआ करते हैं के सालों साल आपकी ग़ज़लें यूँ ही पढ़ने को मिलती रहें...
नीरज
तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
जवाब देंहटाएंपरिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
बहुत सुन्दर रचना
बेहतरीन
ज़मीर शर्म से खाली है , दिल मुहब्बत से'
जवाब देंहटाएंहम इर्तिका जिसे कहते हैं इर्तिका ही नहीं।
बेहतरीन शे'र , ख़ूबसूरत गज़ल्। मुबारकबाद।
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया कि इस ब्लॉग पर आप सब की तशरीफ़ आवरी हुई ,
जवाब देंहटाएंयहां तशरीफ़ ला कर आप ने मुझे जो इज़्ज़त बख़्शी है
उस के लिये ममनून हूं ,
उम्मीद है आइंदा भी आप का स्नेह और आशीर्वाद मुझे मिलता रहेगा
धन्यवाद
ब्लॉग की सालगिरह मुबारक हो…………………बेहद सुन्दर गज़ल्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गज़ल.
जवाब देंहटाएंगज़ल का ये शेर
ग़म ए जहां पे नज़र की तो ये हुआ मालूम
जफ़ा जो हम ने सही ,वो कोई जफ़ा ही नहीं
बहुत पसंद आया.
इर्तेका का मतलब भी बताते तो अच्छा लगता.
ब्लॉग की सालगिरह मुबारक.
अनामिका जी आप ब्लॉग पर आईं ,धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमैने इरतेक़ा का मतलब दिया है वहां इस का मतलब है तरक़्क़ी ,विकास ,प्रगति
sabse pahle to blogjagat em varsh poore karne par badhai ....
जवाब देंहटाएंek behad muda ghazaal kahi hai aapne...
तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
जवाब देंहटाएंपरिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
बहुत खूब ......!!
ग़म ए जहां पे नज़र की तो ये हुआ मालूम
जफ़ा जो हम ने सही ,वो कोई जफ़ा ही नहीं
क्या बात है ......!!
आप की बात पे याद आ गया पापा अक्सर कहा करते थे दूसरों के दर्द की और देखो तो अपना हमेशा कम लगेगा .....
बग़ैर इल्म के ज़ुलमत कदा है ज़ह्न मेरा
जो कर दे फ़िक्र को रौशन ,वो इक ज़िया ही नहीं
इस्मत ज़ैदी साहिबा आपकी लेखनी की तो हमेशा कद्रदान रही हूँ ...बस इधर समय की कुछ कमी लगी रही जो आना न हो सका ....
दुआ है आपको वो ज़िया नसीब हो .....जो आपके फ़िक्र को रौशन कर दे .....!!
हाँ तस्वीर बड़ी प्यारी है .....!!
और हाँ ब्लॉगिंग में एक साल पूरा होने के मौके पर दिली मुबारकबाद ..!!
जवाब देंहटाएंतख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
जवाब देंहटाएंपरिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
सबसे पहले तो एक वर्ष पूरा होने पर बधाई .... आपका ग़ज़लों और नज़्म भरा सफ़र बहुत लाजवाब रहा ... ईश्वर ऐसे ही आपको लिखने की प्रेरणा देता रहे ...
इस लाजवाब और खूबसूरत ग़ज़ल में गहरे ख्यालात हैं .... हर शेर का अंदाज़े-बयाँ अलग है ...
ब्लॉग की वर्षगांठ की बहुत बधाई एवं मंगलकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा गज़ल!
blog ki saalgirah mubaarak ...
जवाब देंहटाएंfir aate hain kal...
:)
आपका नाम सुना था पिछले दशक से अच्छा लिखने वालों में आप पहली पंक्ति में आती हैं। आज वंदनाजी के जरिए आपसे परिचय हो गया था, मेरा सौभाग्य। ब्लॉग पर आपको पढ़ना एक सुखद अनुभूति है। ब्लॉग के एक साल पूरा होने पर आपको बधाई। गज़ल के बारे में टिप्पणी करने का अख्तियार मेरे पास नहीं। पढ़ने का सुख ले रहा हूं इसका वर्णण करना संभव नहीं।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पे आपकी ग़ज़ल पढ़ी.किस किस शेर की तारीफ करूं. हर शेर लाजवाब है.
जवाब देंहटाएंदरीचे ज़हनों के खुलने की इब्तिदा ही नहीं
जो उट्ठे हक़ की हिमायत में वो सदा ही नहीं
ज़मीर शर्म से ख़ाली हैं ,दिल मुहब्बत से
हम इरतेक़ा जिसे कहते हैं, इरतेक़ा ही नहीं
मतला और दूसरा शेर पढ़ते ही तबीयत खुश हो गई. वाह-वाह-वाह.
आपने मेरे ब्लॉग पर मेरी ग़ज़ल पढ़ी,सराहना की.धन्यवाद.
उम्मीद है ब्लॉग पर मिलते रहेंगे.
कुँवर कुसुमेश
Ismat Ji,
जवाब देंहटाएंBahut khoobsurat ghazals hai, maza aa gaya .....
ग़म ए जहां पे नज़र की तो ये हुआ मालूम
जफ़ा जो हम ने सही ,वो कोई जफ़ा ही नहीं
बग़ैर इल्म के ज़ुलमत कदा है ज़ह्न मेरा
जो कर दे फ़िक्र को रौशन ,वो इक ज़िया ही नहीं
Surinder Ratti
Mumbai
यह तो बहुत प्यारी ग़ज़ल है..अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंग़ज़ल की तारीफ़ के लिए अल्फाज़ नहीं मिल रहे आपा...
जवाब देंहटाएंज़फा जो हमने सही वो कोई जाफा ही नहीं.....
पढ़कर कुछ कहते नहीं बन रहा..... सच में...शे'र कहना कोई आपसे सीखे आपा...
ज़मीर शर्म से ख़ाली हैं ,दिल मुहब्बत से
हम इरतेक़ा जिसे कहते हैं, इरतेक़ा ही नही
सच में..शेर जैसे ही शे'र हैं..
ज़मीर शर्म से ख़ाली हैं ,दिल मुहब्बत से
जवाब देंहटाएंहम इरतेक़ा जिसे कहते हैं, इरतेक़ा ही नहीं
तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
परिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
"ग़म ए जहां पे नज़र की तो ये हुआ मालूम
जफ़ा जो हम ने सही ,वो कोई जफ़ा ही नहीं"
हर एक शेर लाजवाब। आपकी गज़लों की फैन हूँ। काश कि मुझे भी उर्दू आती होती। उर्दू जुबान मे गज़ल की खूबसूरती ही कुछ और होती है। बधाई आपको ब्लाग की सालगिरह के लिये। ये सफर निरन्तर चलता रहे। शुभकामनायें
"ज़मीर शर्म से ख़ाली हैं ,दिल मुहब्बत से
जवाब देंहटाएंहम इरतेक़ा जिसे कहते हैं, इरतेक़ा ही नहीं
तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
परिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
ग़म ए जहां पे नज़र की तो ये हुआ मालूम
जफ़ा जो हम ने सही ,वो कोई जफ़ा ही नहीं
बग़ैर इल्म के ज़ुलमत कदा है ज़ह्न मेरा
जो कर दे फ़िक्र को रौशन ,वो इक ज़िया ही नहीं"
खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर गजल. आभार.
सादर
डोरोथी.
शरद भाई के ब्लाग से आपके ब्लाग तक पहुंचा। अच्छा लगा यहां आकर। ब्लाग की सालगिरह की बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंसाल पूरा करने की बधाई।
जवाब देंहटाएंसालगिरह की मुबारकवाद कबूल फरमाए ...
जवाब देंहटाएंमोहतरमा वंदना जी के ब्लॉग से होते हुए यहाँ पहुंचा हूँ ...
आकर बहुत खुशी हुई कि इतना अच्छा ब्लॉग मिल गया ... और दुःख हुआ कि अब तक क्यूँ नहीं मिला था ...
आपका सफर यूँ ही ज़ारी रहे ...
ग़ज़ल बेहतरीन है ...
ब्लॉग की सालगिरह बहुत बहुत मुबारक हो....
जवाब देंहटाएंऐसे ही आप लिखती रहें और हमें बेहतरीन रचनाएं मिलती रहें पढने को...
बहुत ही सुन्दर..................
चन्द्र मोहन गुप्त
तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
जवाब देंहटाएंपरिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
बहुत खूब
बहुत अच्छी गज़ल..
जवाब देंहटाएंआपने मुश्किल अलफ़ाज़ के मतलब बता कर आसान कर दिया..
मतला बहुत अच्छा लगा. "ज़मीर शर्म से खाली है.." सोचने पर मजबूर करता है.
"तख्युल्लात की परवाज़.." और "वगैर इल्म के.." वाले शेर भी बहुत भाये.