एक ग़ज़ल पेशे ख़िदमत है ,आप के तब्सेरे मेरी मेहनत की कामयाबी का यक़ीन दिलाएंगे ,शुक्रिया
ग़ज़ल
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हो यक़ीं मोहकम, बहुत दुशवार है
अब भी उस के हाथ में तलवार है,
जो किसी के काम ही आए नहीं
हैफ़ ऐसी ज़िंदगी बेकार है,
क़त्ल ओ ग़ारत ,ख़ौफ़ ओ दहशत के लिए
भूक ताक़त की ही ज़िम्मेदार है
हंस के मेरे सारे ग़म वो ले गई
ये तो बस इक मां का ही किरदार है
मुन्हसिर इस बात पर है फ़ैसला
किस की कश्ती, किस की ये पतवार है
कल तलक जो सर की ज़ीनत थी तेरे
आज मेरे सर पे वो दस्तार है
रहज़नी ,आतिश्ज़नी और ख़ुदकुशी
बस यही अब हासिल ए अख़बार है
भूल जाए गर ’शेफ़ा’ एख़्लाक़ियात
फिर तो तेरी ज़हनियत बीमार है
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मोहकम=मज़बूत; दुशवार=कठिन; हैफ़=अफ़्सोस; मुन्हसिर=निर्भर; दस्तार=पगड़ी;
एख़लाक़ियात:सद्व्यवहार; ज़हनियत = मानसिकता
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
जवाब देंहटाएंहंस के मेरे सारे ग़म वो ले गई
जवाब देंहटाएंये तो बस इक मां का ही किरदार है
-बहुत खूब!
KITANI ACHCHHI GAZAL LIKHY HAI AAPNE ....IS TARAH KA LEKHAN MAN KO BAHUT SUKOON DILATA HAI..
जवाब देंहटाएंजो किसी के काम ही आए नहीं, हैफ़ ऐसी ज़िंदगी बेकार है.....
जवाब देंहटाएंमोहतरमा इस्मत साहिबा, शायरी में किस तरह बड़े पैग़ाम दिये जाते हैं, ये आपके कलाम से पता चल जाता है.
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
"जो किसी के काम ही आए नहीं
जवाब देंहटाएंहैफ़ ऐसी ज़िंदगी बेकार है"
यह लाइनें मेरी जिन्दगी का मकसद हैं ..जिन को हमेशा याद रखने की कोशिश करता रहता हूँ , ईश्वर से प्रार्थना है कि किसी कि मदद लायक बनाये रखे !
भूल जाए गर ’शेफ़ा’ एख़्लाक़ियात
जवाब देंहटाएंफिर तो तेरी ज़हनियत बीमार है
आज ज़हनी तौर पर बीमारों की संख्या बढ ही रही है ...सुन्दर शेर.
जो किसी के काम ही आए नहीं
हैफ़ ऐसी ज़िंदगी बेकार है,
किसी के काम आने की कोशिशें यदि हमारी तरफ़ से जारी रहीं, तो बहुत सी परेशानियां तो अपनेआप ही खत्म हो जायेंगीं. बहुत सुन्दर गज़ल. बधाई.
हंस के मेरे सारे ग़म वो ले गई
जवाब देंहटाएंये तो बस इक मां का ही किरदार है
bahut hi khoobsurat gazal .
बेसाख्ता वल्लाह-सुबहानअल्लाह जबान से निकल ही पड़े. बेहद कीमती और नए लहजे में कही गयी इस गजल का जवाब नहीं. दिन ब दिन आपके कलम की धार तेज़ से तेजतर हुई जाती है. खुदा इसे और भी धार अता करे. आमीन.
जवाब देंहटाएं'सुबह' के बारे में कुछ बताएंगी क्या?
"हो यक़ीं मोहकम, बहुत दुशवार है
जवाब देंहटाएंअब भी उस के हाथ में तलवार है"
इंसान के मन में उठ सकने वाले तमाम शुबः
शिकायतों और गिलों की सटीक निशाँदही करता हुए ये चंद अलफ़ाज़
अपनी मिसाल आप बन गए हैं ....
"अब भी उसके हाथ में तलवार है...."
वाह-वा !
"क़त्ल ओ ग़ारत ,ख़ौफ़ ओ दहशत के लिए
भूक, ताक़त की ही ज़िम्मेदार है..."
मुझे नहीं लगता क मैं इस सच्चे शेर की तारीफ़
किन लफ़्ज़ों में करूँ....
कडवे सच को बयान करना
कोई आसान काम तो नहीं...
लेकिन इस तरह के अश`आर
सब कह जाते हैं ...साफ़-साफ़ ,,,सपाट ....
और
माँ के प्यार की अज़मत में कुछ भी कह लो,,
कम ही रहता है....
और अगर
कोइ कसौटी है...तो शेर खरा है
"फिर तो तेरी ज़हनियत बीमार है..."
हौसला चाहिए
ऐसा सच कहने,,सुनने,,बाँटने के लिए
सच कहा आपने
(आप के तब्सेरे मेरी मेहनत की कामयाबी का यक़ीन दिलाएंगे)
सच में ...
तब्सिरे...आपकी मेहनतकी कामयाबी के आगे
कम पड़ जाएंगे.....
यक़ीन मानिए
mubarakbaad .
पिछली टिप्पडी की सन्दर्भ सहित व्याख्या
जवाब देंहटाएंपिछली टिप्पडी में पाठक कहना चाहता है की---
पोस्ट पढ़ ली है,,
बहुत खुशी हुई,,
अभी जल्दी में हूँ,,
जल्द ही फिर आऊंगा,,
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इस्मत जी,
सबसे पहले तो शुक्रिया, आपने कठिन शब्दों के अर्थ बता कर मेरे लिए गजल के भाव को समझ पाना आसान कर दिया,, नहीं तो जब समझ ही ना आता तो पसंद कैसे आता !:)
पूरी गजल बहुत बीरीकी से बुनी कालीन की तरह लगी,, जिसके किसी धागे के कही और होने पर ज्यादा खूबसूरती की कोई गुंजाईश नहीं दिखी
"मुन्हसिर" इस एक शब्द ने बहुत मुतासिर किया
आपका वीनस
ध्यान देने की बात ये है की मेरी दूसरी टिप्पडी तो इस्मत जी ने पब्लिश की है मगर पहली नहीं,
जवाब देंहटाएंजो केवल एक स्माईली थी
":०)"
यह बात इस लिए लिख रहा हूँ की पाठक ये ना समझें की मैंने पिछले कमेन्ट अर्थात मुफलिस जी के कमेन्ट की व्याख्या कर डाली है
"ना मेरी इतनी औकात है ना इतनी समझ"
मैंने तो अपनी पिछली टिप्पडी की व्याख्या की है
- वीनस
आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया ,आप की दुआएं मेरी हौसला अफ़्ज़ाई करती हैं
जवाब देंहटाएंसर्वत साहब आप ने जिस मिसरे
(हर सुबह ये सुर्ख़िये अख़्बार है )
में ’सुबह’लफ़्ज़ की तरफ़ जो ध्यान दिलाया है उस के लिये शुक्रिया
वो मिसरा यूं भी सही नहीं था कि है की जगह हैं सही होता लिहाज़ा मिसरा ही बदल दिया गया है ,
उम्मीद है कि अब कोई ग़लती बाक़ी न होगी
पहले तो बहुत बहुत शुक्रिया मेरे ब्लोग पर आप की क़ीमती राय के लिये.
जवाब देंहटाएंमुझे आप की नई गज़ल का इंतिज़ार रह्ता है.
बेहद खूबसूरत गज़ल कही है
"हंस के मेरे सारे ग़म वो ले गई
ये तो बस इक मां का ही किरदार है "
मुबरक हो आप को, और अच्छा अच्छा लिखती रहे आप .... अमीन
"कल तलक जो सर की ज़ीनत थी तेरे
जवाब देंहटाएंआज मेरे सर पे वो दस्तार है"
इस शेर पे जितनी भी दाद दूँ, कम है। शेष सब कुछ तो गुणीजनों ने कह ही दिया है....
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमोहतरमा इस्मत जी
जवाब देंहटाएंफिर उसी तेवर में आप हाज़िर हो गयीं......इसी की उम्मीद भी थी,
हो यक़ीं मोहकम, बहुत दुशवार है
अब भी उस के हाथ में तलवार है,
वाह क्या मतला गूंथा है आपने....
हंस के मेरे सारे ग़म वो ले गई
ये तो बस इक मां का ही किरदार है
मान एक शब्द नहीं एक ऐसा रिश्ता है जो दुनिया जहाँ के सारे एहसासों को अपने आप में समेटे हुए है ......आपने जिस अंदाज़ में मान के बारे में लिखा है वो लाजवाब है
मुन्हसिर इस बात पर है फ़ैसला
किस की कश्ती, किस की ये पतवार है
ओहो......क्या खूब है.....!
कल तलक जो सर की ज़ीनत थी तेरे
आज मेरे सर पे वो दस्तार है
वक्त कब बदल जाए पता नहीं चलता......आपका यह शेर इस की बयानी करता है....
मतले से मकते तक ग़ज़ल बहुत खूबसूरत बन पड़ी है........अगली पेशकस का बेसब्री से इन्तिज़ार रहेगा.
हंस के मेरे सारे ग़म वो ले गई
जवाब देंहटाएंये तो बस इक मां का ही किरदार है
यूँ तो पूरी ग़ज़ल कमाल की है ... पके हुवे आम की तरह ... पर ये शेर आत्मा की तरह धड़क रहा है पूरी ग़ज़ल में ... बहुतर खूब इस्मत साहिबा .....
कल तलक जो सर की जीनत ..वाह..
जवाब देंहटाएंकमाल ..
मगर हम नहीं खेलते कमेन्ट-कमेन्ट...
लेट क्या हुए..कि ग़ज़ल का एक शे'र ही बदल डाला...
अब हमें कैसे पता चले की अखबार वाला शे'र पहले कैसा था...?
:)
हो यक़ीं मोहकम, बहुत दुशवार है
जवाब देंहटाएंअब भी उस के हाथ में तलवार है,
कल तलक जो सर की ज़ीनत थी तेरे
आज मेरे सर पे वो दस्तार है
पूरी गजल के साथ ये दो पंक्तियां खासतौर पर पसंद कीं । बिल्कुल हकीकत है कि जब तक हाथों में तलवारें रहेंगी यकीन कैसे पैदा होगा ।
गजल पर आयी हुई टिप्पणियॉं भी गजल पर बढिया रोशनी डालने वाली हैं ।
सन्देश देती हुई , सद्व्यवहार सिखलाती हुई , दुखती रगों को छेड़ती हुई प्यारी सी ग़ज़ल ....बस हमारे लिए थोड़े से लफ्ज़ मुश्किल हैं ...मायने तो पढ़ कर समझ आ गए , ग़ारत का मतलब भी बताएं |
जवाब देंहटाएंरहज़नी ,आतिश्ज़नी और ख़ुदकुशी
जवाब देंहटाएंबस यही अब हासिल ए अख़बार है
--इस शेर के माध्यम से आपने सच्चाई बयां की है
हंस के मेरे सारे ग़म वो ले गई
जवाब देंहटाएंये तो बस इक मां का ही किरदार है
बहुत बढ़िया!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंक़त्ल ओ ग़ारत ,ख़ौफ़ ओ दहशत के लिए
जवाब देंहटाएंभूक ताक़त की ही ज़िम्मेदार है
हंस के मेरे सारे ग़म वो ले गई
ये तो बस इक मां का ही किरदार है
इस्मत जी आपके अशआर बड़ी उलझन में डाल देते हैं क्यूँ की उनकी तारीफ़ के लिए माकूल लफ्ज़ ही नहीं मिलते...ऐसे सूरते हाल में सिर्फ "लाजवाब" लफ्ज़ से ही काम चलाना पड़ रहा है, जो मुकम्मल नहीं है...आपके लिए दिल में जो इज्ज़त है उसे बयां करने को भी लफ्ज़ नहीं हैं मेरे पास...लिखती रहिये...
नीरज
हंस के मेरे सारे ग़म वो ले गई
जवाब देंहटाएंये तो बस इक मां का ही किरदार है
यह वाला शेर बहुत उम्दा है। सुन्दर है।