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शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

dharti ki pukar

मैं ,पावन धरती का बेटा,
इसके आँचल में मैं खेला ,
अन्नपूर्ण है ये मेरी,
नर्म बिछौना इस की गोदी.
बापू को देखा करता था,
भोर में उठ कर खेत को जाना,
अम्मां ka खाना ले जाना ,
साथ बैठ कर भोजन खाना .
गाँव की ऐसी स्वच्छ हवाएं ,
कुँए का पानी घिरी घटाएं,
चारों ओर बिछी हरियाली ,
कभी हुआ न पनघट खाली.
पर ये बातें हुईं पुरानी ,
जैसे हो परियों की कहानी,
कहने को तो पात्र वही हैं ,
दृश्य परन्तु बदल गए हैं.
नगरों की इस चकाचौंध ने,
सोंधी मिटटी को रौंदा है,
ऊंची ऊंची इमारतों से ,
खेतों का अधिकार छिना है.
युवकों की जिज्ञासु आँखें ,
सपने शहरों के बुनती हैं,
गावों की पावन धरती से ,
जुड़ने को बंधन कहती हैं
खेती को वे तुच्छ जानकर ,
shahron को भागे जाते hअं,
निश्छल मन और शुद्ध पवन को,
महत्वहीन दूषित पाते हें.
भारत की बढती आबादी,
कल को भूखी रह जायेगी ,
कृषि बिना क्या केवल मुद्रा ,
पेट की आग बुझा पाएगी?
धरती आज जो सोना उगले ,
कल को ईंट और गारा देगी,
महलों की ऊंची दीवारें ,
भूख तो देंगी अन्न न देंगी.
क्या महत्व खेती का समझो,
वरना हम अपने बच्चों को,
भूखा प्यासा भारत देंगे,
तब वे हम से प्रश्न करेंगे.
आपने पाया था जो भारत,
धन-धान्य से परिपूर्ण था,
आपने कैसा फ़र्ज़ निभाया ?
हम ने भूखा भारत पाया.

19 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच दृश्य पूरी तरह बदल चुका है. सुन्दर रचना. दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.

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  2. अच्छी रचना. आपका उद्वेग सच्चा है.
    दीपावली शुभ हो! आपका जीवन ज्योतिर्मय हो!

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  3. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
    दीप पर्व की शुभकामनाएं
    चौदस मनाने http://shilpkarkemukhse.blogspot.com पर आयें

    जवाब देंहटाएं
  4. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है !
    आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  5. aap sab ne blog jagat men mera swagat kar ke meri himmat badhai hai bahut bahut dhanyavad.anuragji vandana to meri dost hai lekin us ke baad aap hi pahle shakhs hain jin ka shubh aagman is blog par hua shukria.

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  6. bahut tamnna rahi aapki rachana padhne ki vandana ji ke blog par aapki rachana padhkar man prafullit ho gaya tha ab to sidhe ru-b-ru hone ka avasar aa gaya behad khushi ho rahi hai byaan nahi kar sakati ,is sundar rachana ke saath swagat hai aapka .

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  7. Iske aanchal me ham sab khele...lekin bhool rahe hain..Bahut sundar rachana...ek sachhe Hindustani kee..

    http://shamasansmaran.blogspot.com

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. बहुत सही बातें कहीं हैं। कहने का अन्दाज बहुत सहज/सरल है। बधाई!

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  10. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  11. sachmuch ek chintaniya rachna likhi
    hai aapne...! ab sabkuchh khota jaa raha hai..!

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  12. कितनी सुन्दर रचना है ..काश इस सन्देश को समझ पाते हम सब.

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  13. बिलकुल सही है गाँव अब उजड रहे हैं

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  14. सच्चाई को ब्यान करती सार्थक प्रस्तुति...

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  15. अत्यंत ही भावपूर्ण सार्थक चिंतन....अपनी धरती को कैसे विनाश की और धकेल रहे हैं हम ये कैसा विकाश है ??? सादर !!!

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ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया