............हो अमल सदाक़त का
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कहते हैं शायर की सभी तख़लीक़ात उसे प्यारी होती हैं ,मैं एक मुस्तनद शायेरा न सही पर जो थोड़ा बहुत काग़ज़ पर अल्फ़ाज़ बिखरते हैं उन के बारे में मैं ख़ुद क्या कहूं इसलिए आप सभी माहिरीन ए फ़न से ये गुज़ारिश है कि मेरी इस कोशिश की कमियों और ख़ूबियों पर तब्सेरे की ज़हमत फ़रमाएं ,
बहुत बहुत शुक्रिया.
जब हुआ तज़केरा इबादत का
लब पे नाम आ गया शहादत का
मेरे अल्फ़ाज़ खो रहे हैं असर
इन में फ़ुक़दान है फ़साहत का
रख दो बोहतान इंतेक़ामन ही
है ये मे’यार अब सहाफ़त का
फिर जलाओ मुहब्बतों के दिये
ता अंधेरा मिटे अ’दावत का
हो हवन या मज़ार पर पेशी
हर क़दम हो अमल सदाक़त का
ज़ुल्म सदियों का, उस की ख़ामोशी
लेके परचम उठी बग़ावत का
हर नए ज़ख़्म पर सिपाही में ,
शौक़ बढ़ता गया हिफ़ाज़त का
कुछ तो सीखो ’शेफ़ा’ बुज़ुर्गों से
उफ़रियत दूर हो जहालत का
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फ़ुक़्दान=अभाव ; फ़साहत=बात को सुंदरता से कहना ; सहाफ़त =पत्रकारिता
बोह्तान = आरोप ; ता= ताकि ;सदाक़त = सच्चाई ,ईमानदारी
परचम = पताका ; उफ़रियत = राक्षस
फिर जलाओ मुहब्बतों के दिये
जवाब देंहटाएंता अंधेरा मिटे अ’दावत का
हो हवन या मज़ार पर पेशी
हर क़दम हो अमल सदाक़त का
बहुत सही । आज की तारीख में इसकी बहुत जरूरत है ।
उस्तादों की बात उस्ताद बतायेंगे लेकिन हमें तो बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंमेरे अल्फ़ाज़ खो रहे हैं असर
इन में फ़ुक़दान है फ़साहत का
पढ़कर नंदनजी का यह शेर याद आ गया:
मैं कोई तो बात कह लूं कभी करीने से,
खुदारा मेरे मुकद्दर में वो हुनर कर दे।
बहुत अच्छा लगा पढ़कर।
फिर जलाओ मुहब्बतों के दिये
जवाब देंहटाएंता अंधेरा मिटे अ’दावत का
वाह...
पूरी इंसानियत के लिए है पैग़ाम
हो हवन या मज़ार पर पेशी
हर क़दम हो अमल सदाक़त का
कमाल का शेर है...
सभी शेर अच्छे लगे हैं... बधाई.
मोहतरमा...
जवाब देंहटाएंरमजान के पाक महीने में पाक ग़ज़ल पढना.....जैसे वुजू कर लिया हो. बाद मुद्दत के भारत लौटा तो सबसे पहले जिन ब्लोग्स को पढ़ा उनमे एक आप भी थीं....! यकीं मानिये सिंगापूर,वियतनाम में जिन चीजों सबसे ज्यादा मिस किया उनमे से आपकी ग़ज़लें भी थी.....!
इस्मत,
जवाब देंहटाएंएक शब्द में कहूँ तो वह शब्द 'बेहतरीन' होगा ! 'हर कदम पे हो अमल सदाकत का'--यह पुकार जितनी पवित्र है, उतनी ही पुरअसर भी हो, यही दुआ करता हूँ !
पिछली रचनाएँ भी पढ़ी हैं और बहुत-बहुत मुतासिर हुआ हूँ ! १५ दिनों के प्रवास में रहने के कारण तुम्हारी कई रचनाएँ मैं पढ़ नहीं सका था ! आज ये कमी पूरी हुई !
सस्नेह--आ.
सब से पहले तो उस बात की तरफ
जवाब देंहटाएंइशारा करना चाहूँगा
जो आपने बिलकुल ही गलत
कही/लिखी है ... !?!
एक तो वो जो आपने तम्हीद में कही है ..
"मैं एक मुस्तनद शायेरा न सही ..."
और दूसरा ....
"मेरे अल्फ़ाज़ खो रहे हैं असर
इन में फ़ुक़दान है फ़साहत का..."
बिलकुल,,,बिलकुल ग़लत कहा है आपने
आपकी तसानीफ़ से गुज़रते हुए सभी पढने वाले
बारहा इस एहसास से दो चार होते हैं कि
वो बहुत ही उम्दा और मेआरी लेखन तक
पहुँच गए हैं
और अब इस ग़ज़ल के अश`आर.....
"हो हवन या मज़ार पर पेशी
हर क़दम हो अमल सदाक़त का"
नफ़ीस ख़याल और पुख्ता बयान
और इन सब का पाकीज़ा इज़हार ...
हासिल-ए-ग़ज़ल शेर .......
"जब हुआ तज़केरा इबादत का
लब पे नाम आ गया शहादत का"
पढ़ते ही सर सिजदे में झुक गया ...
"ज़ुल्म सदियों का, उस की ख़ामोशी ,
लेके परचम उठी बग़ावत का..."
सच तो ये है कि तब्सेरा करना मुश्किल लग रहा है
ग़ज़ल की पुख्ता और क़दीम रिवायात को बखूबी
निभाता हुआ ये शेर किसी भी ललकार को
मात दे पाने में कामयाब है .... वाह !
सो....
एक मश्शाक़ सुखनवर के कामयाब कलम पर
मु बा र क बा द
कृपया ऊपर टिप्पणी में
जवाब देंहटाएंकामयाब कलम
की जगह
"कामयाब कलाम" पढ़ें
टंकण की इस त्रुटी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
फिर जलाओ मुहब्बतों के दिये
जवाब देंहटाएंता अंधेरा मिटे अ’दावत का
बहुत ही गहरी बात कही है इस शेर में .... ये सच है मुहब्बत हर दौर में इंसान को . रोशनी दिखाती है .... . के कारेब ले जाती है ....
हो हवन या मज़ार पर पेशी
हर क़दम हो अमल सदाक़त का
ये उस्तादों वाला शेर है .... ठहरा हुवा और पका हुवे शेर है .....
आपकी पूरी ग़ज़ल बहुत ही क़ाबिले तारीफ़ है ....
मेरे अल्फ़ाज़ खो रहे हैं असर
जवाब देंहटाएंइन में फ़ुक़दान है फ़साहत का
बहुत सुन्दर शेर है. और-
दर्द बढ़ने लगा जो सैनिक का
शौक़ बढ़ता गया हिफ़ाज़त का
और-
कुछ तो सीखो ’शेफ़ा’ बुज़ुर्गों से
उफ़रियत दूर हो जहालत का
बहुत सुन्दर गज़ल. बधाई.
हो हवन या मज़ार पर पेशी
जवाब देंहटाएंहर क़दम हो अमल सदाक़त का
लाजवाब शे'र...
बहुत जल्दी में मैम..
फिर आते हैं दोबारा...
जब हुआ तज़केरा इबादत का
जवाब देंहटाएंलब पे नाम आ गया शहादत का
बहुत प्यारा मतला..
ज़ुल्म सदियों का, उस की ख़ामोशी
लेके परचम उठी बग़ावत का
एक और खूबसूरत शे'र....
और..
इस शे'र को तो मुस्कराहट लिए पढ़ रहे हैं...
दर्द बढ़ने लगा जो सैनिक का
शौक़ बढ़ता गया हिफ़ाज़त का
:)
शिकायत रहती जी बहुत ..अगर नीचे कुछ बहुत जरूरी और नए ( कम से कम हमारे लिए तो ) शब्दों के अर्थ नहीं दिए होते..
मेरे अल्फाज़ खो रहे हैं असर...( कैसी बात करती हैं मैम..? )
इस्मत जी क्या कहूँ आप अपने कलम से हमेशा लाजवाब कर देती हैं...और इस बार भी आपने कमाल किया है...मतले से मकते तक का बेहद खूबसूरत सफ़र तय किया है आपने...एक एक शेर हीरे की तरह गढ़ कर पेश किया है हर शेर अपनी चमक अलग से दिखा रहा है...बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंमैं आपके इस शेर से कतई इतेफ्फाक नहीं रखता:-
मेरे अल्फ़ाज़ खो रहे हैं असर
इन में फ़ुक़दान है फ़साहत का
ऐसा सोचना भी आपके खूबसूरत शेरों के साथ ना इंसाफी होगी
आप का ये शेर पढ़ कर दिल में बसा लेने के काबिल है क्यूँ के अगर ये हम के दिलों में बस गया तो फिर इस दुनिया से खूबसूरत खुदा की जन्नत भी न होगी...
फिर जलाओ मुहब्बतों के दिये
ता अंधेरा मिटे अ’दावत का
और ये अह्ह्ह्ह...कितना पाक और मासूम शेर है...उठा कर कलेजे लगा लेने जैसा..
हो हवन या मज़ार पर पेशी
हर क़दम हो अमल सदाक़त का
मक्ता चीख चीख कर कह रहा है मुझ पर अमल करो क्यूँ इसे मानने में ही बरकत है...सुभान अल्लाह...
कुछ तो सीखो ’शेफ़ा’ बुज़ुर्गों से
उफ़रियत दूर हो जहालत का
आपकी इस बेजोड़ कलम को फर्शी सलाम बजा लता हूँ...वाह...दिल खुश हो गया...लिखती रहें...
नीरज
रमज़ान के मुक़द्दस महीने में यह तहारत और पाकीजगी की चाशनी में डूबी गज़ल, दिलो-दिमाग को सुकून बख्श गयी. फ़साहत और सहाफत वाले शेर तो कमाल के हैं. इनकी हिफाजत कीजिए.
जवाब देंहटाएंआप और चंद बंदे ऐसे हैं जिन्हें कमेन्ट देते वक्त बड़ी दुश्वारी होती है. दुहराना ख़राब लगता है, नए अल्फाज़ मिलते नहीं, जी में आता है क्या-क्या लिख दूं लेकिन दिमाग फकीर के कशकोल की तरह खाली पड़ा रहता है. मेरी हाजिरी ही मेरा कमेन्ट मान लिया जाए.
--
सर्वत एम्.
"हो हवन या मज़ार पर पेशी
जवाब देंहटाएंहर क़दम हो अमल सदाक़त का"
बहुत बढिया । हर शेर अच्छा लगा ।
sabhi sheir umda lajavab hai..........
जवाब देंहटाएं"मैं एक मुस्तनद शायेरा न सही..." मैम इतनी भी मोडेस्टी ठीक नहीं। आपकी ग़ज़लें और आपका ये कथन एक-दूसरे को कांट्राडिक्ट करते हैं, नहीं??? :-)
जवाब देंहटाएंग़ज़ल हमेशा की तरह अद्भुत है ,लाजवाब है। मतले में वैसे मैं "शहादत" की जगह "मुहब्बत रखता... :-)। और "हर नये ज़ख़्म पर सिपाही" वाला शेर अपना-सा लगा- बेहद अपना-सा।
आप कैसी हैं? गोवा ने कभी मुझे खास आकर्षित नहीं किया है। लेकिन अब एक वजह मिल गयी है....
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जवाब देंहटाएंज़ुल्म सदियों का, उस की ख़ामोशी
जवाब देंहटाएंलेके परचम उठी बग़ावत का
हर नए ज़ख़्म पर सिपाही में ,
शौक़ बढ़ता गया हिफ़ाज़त का
इशमत साहिबा!
बेहद जानदार और खूबसूरत अशआर। बेहतरीन अदायगी।
फिर जलाओ मुहब्बतों के दिये
जवाब देंहटाएंता अंधेरा मिटे अ’दावत का
हो हवन या मज़ार पर पेशी
हर क़दम हो अमल सदाक़त का
bahut hi khoobsurat hai .