कुछ दोहे
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पायल को छनकाय के ,गोरी यूँ शरमाय
छुईमुई की पाति ज्यों, सिमटी सिमटी जाय
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अहंकार में आग है, देगी सकल जलाय
औषधि है निरमल वचन,, शीतलता भर जाय
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टिक टिक कर के हर घड़ी, देती यही बताय
जीवन गति का नाम है, जड़ मानुष पछताय
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मावस की हर रात जब, अँधियारा घिर आय
नन्हा मिट्टी का दिया, उजियारा दे जाय
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कहाँ गई संवेदना, जो मन को हर्षाय
जग बौराया स्वार्थ में, अपना राग सुनाय
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