एक अलग मूड की ग़ज़ल जो मेरे लहजे से अलग है
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चलो कि बज़्म ए सुख़न सजा लें
कुछ उन की सुन लें तो कुछ सुना लें
हसीन जज़्बों को जम’अ कर के
हम अपनी दुनिया अलग बसा लें
वो ख़्वाब जिन में कि तुम हो शामिल
उन्हें इन आँखों में अब छिपा लें
हैं साहिलों पर ये सर पटकतीं
उठो कि लहरों का दिल संभालें
हो जिस में बारिश की सोंधी ख़ुश्बू
बस ऐसी मिट्टी से घर बना लें
जो पाल रक्खे हैं जाने कब से
’शिफ़ा’ दिलों से भरम निकालें
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