"उस का पावन मन देखा है"
इस तरही मिसरे पर लिखी गई ग़ज़ल पेश ए ख़िदमत है
............पावन मन देखा है
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अंबर छाया घन देखा है
तब मयूर नर्तन देखा है
धरती का मन आँगन भीगे
रिमझिम वो सावन देखा है
सूनी आँखें ,लब पर आहें
क़िस्मत से अनबन देखा है
झील सी गहरी उन आँखों में
"उस का पावन मन देखा है"
नाज़ुक जज़्बों का संवाहक
हाथों में कंगन देखा है
जो रिश्तों को बाँध के रक्खे
प्यार का वो बँधन देखा है
जीवन का हर रंग हो जिस में
ऐसा एक सपन देखा है
मैला मन भी पावन कर दे
मुस्काता बचपन देखा है
स्वार्थ ’शेफ़ा’ की आदत उस ने
दु:ख में बस अर्चन देखा है
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