सैलाब मेरी आँखों में........
_____________________________
आ गया कैसा ये सैलाब मेरी आँखों में
सारे मंज़र हुए ग़रक़ाब मेरी आँखों में
क्यों नहीं अब मेरी उम्मीद की शम’एं रौशन
क्यों मचलते नहीं अब ख़्वाब मेरी आँखों में
मैं ने गर दे भी दिए सारे सवालों के जवाब
फिर भी कुछ ढूंढेंगे अह्बाब मेरी आँखों में
कोई आया ना बचाने मुझे मैं बेबस था
थी फ़क़त अश्कों की अहज़ाब मेरी आँखों में
मुज़्तरिब होता हूं पर लब ही नहीं खुलते हैं
और बिखर जाता है हर ख़्वाब मेरी आँखों में
अपनी उम्मीदों की ये जोत जलाए रखना
हैं ’शेफ़ा’ जीने के असबाब मेरी आँखों में
सैलाब=बाढ़; मंज़र=दृश्य; ग़रक़ाब =डूबना; अहबाब=दोस्त ; फ़क़त=केवल; अहज़ाब=सेना
मुज़्तरिब=बेचैन ; असबाब=कारण