एक महीने के वक़फ़े के बाद एक ग़ज़ल के साथ फिर हाज़िर हूँ
शायद पसंद आए
ग़ज़ल
***********
धड़कनें हों जिस में, वो ऐसी कहानी दे गया
चंद किरदारों की कुछ यादें पुरानी दे गया
*****
टूटे फूटे लफ़्ज़ मेरे शेर में ढलने लगे
मेरा मोह्सिन मुझ को ये अपनी निशानी दे गया
*****
रोज़ ओ शब की रौनक़ें, वो क़हक़हे, वो महफ़िलें
साथ अपने ले गया और बेज़बानी दे गया
*****
क्यों ख़ताएं उस की गिनवाते हो तुम शाम ओ सहर
बीज ख़ुद बोए थे तुम ने , बस वो पानी दे गया
बीज ख़ुद बोए थे तुम ने , बस वो पानी दे गया
*****
ज़िंदगी ख़ुद्दारियों के साए में ही कट गई
बस विरासत में वो अपनी जाँफ़ेशानी दे गया
*****
माँ का आँचल ,बाप की शफ़क़त के साए का सुकूँ
दूर सरहद पर जवाँ हर शादमानी दे गया
*****
इक मता’ ए फ़िक्र ओ फ़न ,हाथों में तेरे सौंप कर
ऐ ’शेफ़ा’ वो तेरे ज़िम्मे पासबानी दे गया
*******************************************
किरदार= चरित्र; मोहसिन= जिस ने उपकार किया हो
ख़ताएं= दोष; जाँफ़ेशानी= कड़ी मेहनत; शफ़क़त= स्नेह
शादमानी= ख़ुशी; मता’ ए फ़िक्र ओ फ़न= चिन्तन और कला की दौलत;
पासबानी= रक्षा