एक और हिंदी ग़ज़ल आप के समक्ष प्रस्तुत है
ग़ज़ल
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कैसे बिसराऊं भला बीता हुआ पल कोई
कल्पनाओं में जो बजती रहे पायल कोई
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कोई संवाद नहीं और कोई संबंध नहीं
भाव जीवन में नहीं रह गया कोमल कोई
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कितनी चिंताओं का वो बोझ लिये फिरता है
अब न बचपन है, न बच्चा रहा चंचल कोई
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कैसी संवेदना, कैसी करुणा और दया
हम ने जब छोड़ दिया रस्ते पे घायल कोई
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कामना है कि बनूँ ऐसी बयारें इक दिन
कर सकूँ तपता हुआ मन कभी शीतल कोई
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अब न करना कभी साहस उसे तुम छलने का
हिरनियाँ भी हैं सबल, समझे न निर्बल कोई
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ऐ ’ शेफ़ा’ छोड़ गई माँ तेरी जब से तुझ को
वैसा स्पर्श मिला तुझ को न आँचल कोई
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