लंबा अरसा गुज़र जाता है और शायद आप लोग
भूलने लगते होंगे तो मैं फिर कुछ न कुछ
ले कर हाज़िर हो जाती हूँ और
आज तो
ब्लॉग की सालगिरह भी है
आज तो
ब्लॉग की सालगिरह भी है
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ग़ज़ल
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सपनों में तू आया कर
स्वर्ग की सैर कराया कर
नफ़रत की चिंगारी पर
प्रेम सुधा बरसाया कर
चाँद को पाना नामुमकिन
चातक को समझाया कर
नाउम्मीदी कुफ़्र भी है
आस के दीप जलाया कर
दिल तो ज़िद्दी बच्चा है
प्यार की बीन बजाया कर
वक़्त का पहिया घूमेगा
इतना मत इतराया कर
कमज़र्फ़ी के मारों को
आईना दिखलाया कर
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