ग़ज़ल
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चला भी जाऊं तो तुम इंतेज़ार मत करना
और अपनी आंख कभी अश्कबार मत करना
उलझ न जाए कहीं दोस्त आज़माइश में
कि ख़्वाहिशें कभी तुम बेशुमार मत करना
मैं जानता हूं कि तख़रीब है तेरी आदत
हरे हैं खेत इन्हें रेगज़ार मत करना
मेरी हलाल की रोज़ी सुकूं का बाइस है
इनायतों से मुझे ज़ेर बार मत करना
जो वालेदैन ने अब तक तुम्हें सिखाया है
अमल करो, न करो, शर्मसार मत करना
सड़क भी देंगे वो पानी भी और उजाला भी
सुनहरे वादे हैं बस,ऐतबार मत करना
मुझे तो मेरे बुज़ुर्गों ने ये सिखाया है
उदू की फ़ौज पे भी छुप के वार मत करना
तुम्हारे काम ’शेफ़ा’ गर किसी को राहत दें
बजाना शुक्र ए ख़ुदा इफ़्तेख़ार मत करना
तख़रीब= बर्बाद करना ; रेग ज़ार =रेगिस्तान ; बाइस =कारण ; ज़ेर बार =एहसान से दबा हुआ इफ़्तेख़ार =घमंड