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शुक्रवार, 28 मई 2010

दुआ

आज पहली बार एक नज़्म ले कर हाज़िर हुई हूं , तजुर्बा कितना कामयाब है ये आप के तब्सेरों पर मुन्हसिर(निर्भर) होगा ,शुक्रिया


दुआ
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मेरे मालिक ख़यालों को मेरे
पाकीज़गी दे दे ,
मेरे जज़्बों को शिद्दत दे ,
मेरी फ़िकरों को वुस’अत दे,
मेरे एह्सास उस के हों ,
मेरे जज़बात उस के हों ,
जियूं मैं जिस की ख़ातिर ,
बस वफ़ाएं भी उसी की हों,

मेरे मा’बूद मुझ को ,
ऐसी नज़रें तू अता कर दे
कि जब भी आंख ये उठे ,
ख़ुलूस ओ प्यार ही छलके ,
जिसे अपना कहा मैंने
उसे अपना बना भी लूं ,
मैं उस के सारे ग़म ले कर ,
उसे ख़ुशियां ही ख़ुशियां दूं ,

मेरे अल्लाह मुझ को ,
दौलत ओ ज़र की नहीं ख़्वाहिश,
नहीं अरमान मुझ को
रुत्ब ए आली के पाने का
अता कर ऐसी दौलत
जिस के ज़रिये, मैं
तेरे बंदों के काम आऊं
मुझे ज़रिया बना कर
उन के अरमानों को पूरा कर
करम ये मुझ पे तू कर दे
मुझे तौफ़ीक़ ऐसी दे
कि तेरी राह पर चल कर
मैं मंज़िल तक पहुंच पाऊं
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वुस’अत=फैलाव ; मा’बूद =भगवान ; ज़र= धन ; रुत्ब ए आली = बड़ा रुत्बा ; तौफ़ीक़ = ख़ुदा की मेहरबानी