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शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

.........दोस्ती घबराएगी "

कभी कभी लिखना चाहते हुए भी कुछ लिखना मुहाल लगता है
ऐसे ही हालात में कही गई ग़ज़ल आप की ख़िदमत में हाज़िर है 

ग़ज़ल
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जान कर बच्चा हमें बहलाएगी 
झुनझुना वादों का फिर दे जाएगी
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उल्झनें जिस ज़ात से मनसूब हैं
मस’अलों को कैसे वो सुलझाएगी
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साँझ ने घूंघट उठाया रात का
चाँद की क़ुर्बत में शब शरमाएगी
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गेसू ए ज़ुल्मत बिखेरे रात ने 
फिर उरूस ए शब कोई बिक जाएगी
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दोस्तों के इस नए अंबोह में 
वो पुरानी दोस्ती घबराएगी 
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रात काटेगी हवेली जाग कर 
और कुटिया चैन से सो जाएगी
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मनसूब = जुड़ी हुई ,, संबंधित ; गेसू = बाल ; ज़ुलमत = अँधेरा
उरूस ए शब = रात की दुल्हन ; अंबोह = भीड़ ; क़ुर्बत = निकटता