एक तरही ग़ज़ल पेश ए ख़िदमत है जिस का तरही मिसरा था
"इब्ने मरियम हुआ करे कोई "
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ख़्वाब बन कर मिला करे कोई
दर्द की यूँ दवा करे कोई
ज़िदगी की तरफ़ जो ले आए
"इब्ने मरियम हुआ करे कोई "
अपनी जाँ पर सहे सितम सारे
ऐसे भी तो वफ़ा करे कोई
ज़ुलमतें दूर कर दे ज़हनों से
शम ’अ बन कर जला करे कोई
क़स्र ए सुल्ताँ में कौन सुनता है
कुछ कहे तो कहा करे कोई
ज़िंदगी में मिले सुकूँ लेकिन
ख़्वाहिशों से वग़ा करे कोई
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ज़ुल्मतें = अँधेरे ; क़स्र = महल ; वग़ा = युद्ध